
Dowry cases in Mumbai: दहेज प्रथा, जिसे खत्म करने के लिए देश में दशकों पहले कानून बनाए गए थे, आज भी भारतीय समाज के विभिन्न तबकों में गहराई से जमी हुई है. हाल ही में मुंबई और पुणे जैसे विकसित और शहरों से सामने आए आंकड़े इस सामाजिक बुराई की भयावहता को उजागर करते हैं. ये आंकड़े स्पष्ट रूप से बताते हैं कि दहेज के लिए महिलाओं को प्रताड़ित करना, आत्महत्या के लिए मजबूर करना या फिर उनकी हत्या कर देना अब केवल ग्रामीण या अशिक्षित समाज तक सीमित नहीं रहा.
मुंबई: एक साल में 438 दहेज प्रताड़ना के मामले
मुंबई पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, साल 2024 में 438 दहेज से जुड़ी मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना के मामले दर्ज हुए, जिनमें से 414 मामलों की जांच पूरी की जा चुकी है. वहीं, साल 2025 के पहले 4 महीनों (जनवरी से अप्रैल) में ही ऐसे 163 मामले सामने आए, जिनमें से 130 मामलों में पुलिस ने कार्रवाई की है. यह दर्शाता है कि केवल चार महीनों में ही पिछले साल की तुलना में एक-तिहाई से अधिक मामले सामने आ चुके हैं.
दहेज के कारण आत्महत्याएं और मौतें
- साल 2024 में 11 महिलाओं ने दहेज प्रताड़ना के चलते आत्महत्या की, जिनमें से 9 मामलों की जांच पूरी कर ली गई है. 2025 के पहले चार महीनों में 5 आत्महत्या के मामले सामने आए, और सभी में पुलिस ने कार्रवाई की.
- इसके अलावा, साल 2024 में 8 दहेज मृत्यु के मामले भी दर्ज हुए, जिनमें से 7 मामलों का पता लगाया गया. इस साल अब तक एक मामला सामने आया है, जिसे पुलिस ने सुलझा लिया है.
- साल 2024 में एक दहेज से जुड़ी हत्या का मामला दर्ज किया गया था, और उस पर भी पुलिस ने समय पर कार्रवाई की. जबकि 2025 में अप्रैल तक ऐसा कोई मामला दर्ज नहीं हुआ है.
पुणे में सियासी परिवार से जुड़ी घटना ने बढ़ाई चिंता
पुणे में हाल ही में एक राजनीतिक परिवार पर आरोप लगा कि उन्होंने अपनी बहू को दहेज के लिए प्रताड़ित किया, जिसके चलते उसने कथित रूप से आत्महत्या कर ली. यह मामला इसलिए भी चौंकाने वाला है क्योंकि यह उच्च शिक्षित, समृद्ध और प्रतिष्ठित वर्ग से जुड़ा है—जिससे यह साफ होता है कि दहेज प्रथा केवल गरीब या ग्रामीण समाज की समस्या नहीं रह गई है. अब यह सामाजिक कुरीति अमीर और प्रभावशाली तबकों में भी उतनी ही खतरनाक रूप में मौजूद है.
सख्त कानून के बावजूद क्यों नहीं रुक रही दहेज प्रथा?
भारत सरकार ने 1961 में ‘दहेज निषेध अधिनियम' लागू किया था, जिसका उद्देश्य था कि शादी के समय वर पक्ष को नकद, संपत्ति या कोई अन्य उपहार देने की परंपरा पर रोक लगाई जा सके. इस अधिनियम के तहत दहेज लेना और देना दोनों ही अपराध की श्रेणी में आते हैं.
इसके बावजूद, आज भी दहेज लेने-देने की घटनाएं खुलेआम होती हैं, और पीड़िता को मानसिक, शारीरिक और सामाजिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है.
यह विडंबना है कि एक ओर हम ‘नारी शक्ति' और ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' जैसे अभियानों की बात करते हैं, तो वहीं दूसरी ओर शादी के समय बेटियों को उनके अधिकारों से वंचित कर दहेज जैसी प्रथाओं की बलि चढ़ा देते हैं.
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