- BMC चुनाव 2026 में मराठी बनाम गैर-मराठी का मुद्दा प्रमुख होकर पहचान और अस्मिता की राजनीति पर केंद्रित होगा.
- शिवसेना ने अपनी पहली उम्मीदवार सूची में 88 प्रतिशत मराठी उम्मीदवारों को टिकट देकर मराठी अस्मिता पर जोर दिया.
- भाजपा ने पहली सूची में 70% मराठी उम्मीदवारों को जगह देकर मराठी और हिंदी भाषी वोटरों के बीच संतुलन बनाया.
BMC Election 2026: मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव 2026 की बिसात बिछते ही सियासी गलियारों में 'मराठी बनाम गैर-मराठी' का पुराना जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया है. इस बार मुकाबला सिर्फ गड्ढों, पानी और विकास के मुद्दों तक सीमित नहीं रहेगा. देश की सबसे अमीर महानगरपालिका की जंग अब पहचान और अस्मिता की राजनीति पर टिकती दिख रही है. पार्टियों की पहली उम्मीदवार सूची ने साफ कर दिया है कि टिकट बंटवारे में जाति, भाषा और वोट बैंक का गणित सबसे बड़ा फैक्टर बन गया है.
उद्धव ठाकरे की सेना: मराठी मानुस पर फोकस
शिवसेना (उद्धव ठाकरे) ने अपने पारंपरिक एजेंडे को और मजबूत किया है. पार्टी ने 75 उम्मीदवारों में से 66 टिकट मराठी चेहरों को दिए हैं, यानी करीब 88%. यह साफ संकेत है कि उद्धव ठाकरे मुंबई में मराठी अस्मिता के सहारे अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं.
बीजेपी का संतुलन साधने का प्रयास
भारतीय जनता पार्टी ने इस बार संतुलन बनाने की कोशिश की है. पहली सूची में 70% मराठी उम्मीदवारों को जगह दी गई है. इसका मकसद मराठी और हिंदी भाषी वोटरों के बीच बैलेंस बनाए रखना है.
कांग्रेस और एनसीपी: गैर-मराठी और मुस्लिम वोट बैंक पर नजर
कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव दिखाया है. पहली सूची में सिर्फ 41% मराठी उम्मीदवार हैं, जबकि 58% गैर-मराठी तबके से आते हैं. अजित पवार की एनसीपी भी इसी राह पर है. उसने 40% टिकट गैर-मराठी चेहरों को दिए हैं. दोनों पार्टियां मुंबई के प्रवासी और कॉस्मोपॉलिटन वोटरों को साधने की कोशिश कर रही हैं.
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मुस्लिम प्रतिनिधित्व: बीजेपी शून्य, कांग्रेस सबसे आगे
धार्मिक समीकरणों में सबसे बड़ा अंतर बीजेपी और कांग्रेस के बीच दिख रहा है. बीजेपी की पहली सूची में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं है. वहीं कांग्रेस ने 27% यानी 19 मुस्लिम चेहरों को टिकट दिया है. एनसीपी ने 24% मुस्लिम उम्मीदवारों को मौका दिया है. दिलचस्प बात यह है कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने भी 6% मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देकर अपनी छवि में बदलाव का संकेत दिया है.
पहचान की राजनीति में सिमटा चुनावी मैदान
पहली सूची से साफ है कि बीएमसी चुनाव 2026 में मुकाबला विकास से ज्यादा पहचान पर होगा. हर पार्टी अपने सुरक्षित वोट बैंक को साधने में लगी है. नामांकन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद तस्वीर और साफ होगी, लेकिन फिलहाल यह तय है कि मुंबई की जंग ‘कौन किसका है' के सवाल पर लड़ी जाएगी.
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