Ujjain Simhastha 2028: उज्जैन सिंहस्थ 2028 की तैयारी जहां एक ओर सरकारी मशीनरी को तेज रफ्तार दे रही है, वहीं दूसरी ओर जमीन और मुआवजे को लेकर किसानों का गुस्सा अब सड़क पर उतर आया है. दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे से जुड़े एक बड़े प्रोजेक्ट की डिजाइन और बेहद कम मुआवजे से खफा 62 गांवों के किसानों ने सोमवार को मोर्चा खोल दिया. सैकड़ों किसानों ने उज्जैन में MPRDC (मध्य प्रदेश सड़क विकास निगम) के दफ्तर का घेराव कर घंटों धरना दिया. उन्होंने साफ चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे भूख हड़ताल शुरू कर देंगे.
सिंहस्थ से पहले चौड़ी सड़कें, किसानों के लिए मुश्किल
दरअसल, प्रदेश सरकार का लक्ष्य है कि सिंहस्थ 2028 से पहले उज्जैन को एक मजबूत और चौड़े सड़क नेटवर्क से जोड़ दिया जाए. इसी योजना के तहत कई मौजूदा सड़कों को 4, 6, यहां तक कि 8 लेन तक अपग्रेड किया जा रहा है. इस महत्वाकांक्षी कड़ी का हिस्सा है उज्जैन-जावरा ग्रीनफील्ड एक्सेस कंट्रोल हाईवे, जो दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे को जोड़ेगा. इस परियोजना के कारण लगभग 62 गांवों के किसान सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं.
MPRDC दफ्तर पर 'हनुमान चालीसा' का पाठ
परियोजना से प्रभावित सैकड़ों किसान सोमवार को MPRDC कार्यालय पहुंच गए. किसानों ने न सिर्फ धरना दिया, बल्कि विरोध जताते हुए जोर-शोर से नारेबाजी भी की और हनुमान चालीसा का पाठ किया. उनका सीधा आरोप है कि इस हाईवे प्रोजेक्ट से उनकी खेती की जमीन, उनका रोजगार और उनका भविष्य सब दांव पर लग गया है. किसानों ने ठान लिया है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, यह आंदोलन जारी रहेगा.
किसानों का दर्द: कौड़ियों का मुआवजा
उन्हेल निवासी किसान मुकेश धानक ने अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि हमारी जिस जमीन की असल कीमत करीब 50 लाख रुपये प्रति बीघा है, उसके बदले सरकार हमें केवल 2 लाख रुपये का मुआवजा दे रही है. यह अन्याय है.
समस्या सिर्फ मुआवजे की नहीं है, बल्कि सड़क की डिजाइन की भी है. किसानों का कहना है कि हाईवे को 15 से 16 फीट ऊंचा बनाया जा रहा है और कोई सर्विस रोड भी नहीं दी जा रही. ऐसे में ट्रैक्टर या हार्वेस्टर जैसी बड़ी मशीनें खेतों तक ले जाना लगभग नामुमकिन हो जाएगा. इससे उनका धंधा भी चौपट होगा.
30-40 KM का लंबा चक्कर: खेती कैसे होगी?
किसानों की सबसे बड़ी चिंता यू-टर्न को लेकर है. उनका कहना है कि हाईवे पर यू-टर्न इतनी दूर-दूर बनाए जा रहे हैं कि उन्हें अपने ही खेत तक पहुंचने के लिए 30 से 40 किलोमीटर का अनावश्यक चक्कर लगाना पड़ेगा. इतनी लंबी दूरी तय करके रोज़ खेती करना संभव नहीं है. उन्होंने यह भी जोड़ा कि अगर कोई दुर्घटना होती है, तो एंबुलेंस को भी इतना लंबा रास्ता तय करना पड़ेगा, जिससे किसी की जान बचाना मुश्किल हो जाएगा.
किसानों की दो टूक चेतावनी
प्रदर्शनकारी किसानों की स्पष्ट मांग है कि या तो इस सड़क को देवास-बदनावर हाईवे की तरह ज़मीन के स्तर पर बनाया जाए, या फिर मौजूदा योजना को पूरी तरह रद्द किया जा. उनका कहना है कि उचित मुआवजा और सड़क की ऊंचाई कम किए बिना न तो उनका धरना समाप्त होगा और न ही वे सड़क का निर्माण शुरू होने देंगे.
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प्रशासन का पक्ष: फायदे भी कम नहीं
इस विरोध के बीच, प्रशासन ने हाईवे से होने वाले फायदे भी गिनाए. अधिकारियों का कहना है कि उज्जैन-जावरा ग्रीनफील्ड हाईवे के बन जाने से उज्जैन से दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे तक पहुंचने का समय करीब 2 घंटे से घटकर केवल 40 मिनट रह जाएगा. इससे सिंहस्थ के दौरान लगने वाले भीषण ट्रैफिक जाम से राहत मिलेगी और मुंबई-दिल्ली रूट के यात्रियों को बहुत सुविधा होगी. इसके अलावा, मंदसौर, झाबुआ, और रतलाम जैसे आसपास के जिलों में लॉजिस्टिक हब बनने की संभावना है, जिससे कृषि और औद्योगिक गतिविधियों को बड़ा बढ़ावा मिलेगा.
पहले भी हो चुका है जोरदार विरोध
यह विरोध नया नहीं है. इससे पहले रविवार को भी किसानों ने MPRDC कार्यालय का घेराव किया था. उस प्रदर्शन के दौरान एक किसान ने भावनात्मक होकर अधिकारी के पैर पकड़ लिए थे और सड़क की ऊंचाई कम करने और मुआवजा बढ़ाने की गुहार लगाई थी. पहले के प्रदर्शन में किसानों ने दफ्तर पर ताला जड़कर अधिकारियों को अंदर ही रोक दिया था.
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प्रशासन ने दिया भरोसा, समाधान जल्द
मामले को शांत करने पहुंचे एसडीएम पवन बारिया ने बताया कि किसानों की जो दो मुख्य मांगे हैं, उन्हें तुरंत भोपाल में उच्चाधिकारियों तक पहुंचा दिया गया है. उन्होंने आश्वासन दिया कि प्रशासन लगातार किसानों के साथ बातचीत कर रहा है और जो भी संभव होगा, उन्हें राहत देने की पूरी कोशिश की जाएगी. फिलहाल किसानों का धरना जारी है और सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि राज्य सरकार इस गंभीर गतिरोध को तोड़ने के लिए अगला कौन सा कदम उठाती है.
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