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मध्य प्रदेश में सोयाबीन किसानों की टूटी कमर, कहा- 'कर्ज लिया... खराब फसल, अब नहीं मिल रही MSP तक के दाम'

मध्य प्रेदश के सोयाबीन किसानों की इस बार कमर टूट गई है. फसल खराब होने के बाद उनकी हालत खराब है. कर्ज और उधार लेकर खेती की लेकिन फसल पूरी तरह से खराब हुई है.

मध्य प्रदेश में सोयाबीन किसानों की टूटी कमर, कहा- 'कर्ज लिया... खराब फसल, अब नहीं मिल रही MSP तक के दाम'
सोयाबीन की फसल खराब
Madhya Pradesh:

सोयबीन का कटोरा कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में किसानों की हालत खराब है. आधे हिंदुस्तान की सोयाबीन यहीं के खेतों में उपजती है, सरकार कहती है यह किसानों की मेहनत और हमारी व्यवस्थाओं की जीत है. लेकिन बारिश से भीगे खेत में खड़े किसान से पूछो तो कहानी बिल्कुल अलग है. सहरवासा गाँव के किसान पवन कुमार अपनी सड़ी हुई फसल की ओर इशारा करते हैं. “फसल पूरी तरह गल गई है. अगर सरकार थोड़ी मदद करे तो बचेंगे. बीज बोने के लिए कर्ज लिया था. अब अगर कुछ नहीं निकला तो ज़मीन बेचनी पड़ेगी.”

क्या कह रहे मजबूर किसान

वैजयंती की आवाज़ में भी वही टूटने सी सिसकी ... “मुझे अनाज चाहिए, कर्ज भी चुकाना है. फली में दाना ही नहीं, सिर्फ छोटे-छोटे कण हैं. क्या बचा? या तो गाँव छोड़ो या ज़मीन.”

कल्याण सिंह दांगी के लिए भी हालात वही, 30 बीघा बोया, सब उधार लेकर. खाद, दवा, बीज सब कर्ज पर. बारिश और बीमारी ने सब मिट्टी में मिला दिया.

गंभीर सिंह दांगी की जुबान पर भी वही बात, नुकसान बहुत हो गया है कर्जा लेकर खेती की थी भावांतर में पैसे थोड़े लेट आते हैं.

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5328 रुपये तय मिल रहे 3800

जिन्होंने किसी तरह मंडी तक फसल पहुंचाई, उनके हालात और बुरे हैं. सरकार ने सोयाबीन के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 5328 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है. लेकिन भोपाल की करौंद मंडी में किसानों को 3800 रुपये प्रति क्विंटल से ज़्यादा नहीं मिल रहा है. डोबरा के किसान गयाराम कहते हैं, बहुत नुकसान हो गया 40-50 क्विंटल का नुकसान हुआ. 15-20 हजार की दवा छिड़की, क्या कर सकते हैं. भावांतर में फायदा हो तो अच्छा है. 

डोबरा के ही किसान गणेश ने कहा 3200 में फसल बिकी इसमें क्या खर्चा ही निकला, बचत कुछ नहीं, बारिश से तापमान बिगड़ जाता है. वहीं पिपलिया से आए दीवान सिंह रघुवंशी ने बताया 1 एकड़ पर 4-5 क्विंटल सोयाबीन निकल रहा है, रेट बहुत ज्यादा खराब है. रेट की वजह से किसान की कमर टूट रही है. सोयाबीन 3200 में गई लागत नहीं निकलेगी.

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व्यापारी भी परेशान

व्यापारी भी मानते हैं कि खराब क्वालिटी मंडियों में भरी पड़ी है. मंडी संघ के अध्यक्ष हरीश ग्यानचंदानी कहते हैं, अभी जो क्वॉलिटी आ रही है उसमें नमी आ रही है, क्वॉलिटी लो है अभी जो माल किसान का खराब हो रहा वो किसान बेच रहा है. अभी क्वॉलिटी बिलो एफएक्यू है हमारे ग्राहक लेने में एतराज कर रहे हैं मंडी में माल आया है किसान की इच्छा है तो बेच रहा है, अच्छा माल 4200-4300 में बिक रहा है.

मुख्यमंत्री ने राहत का ऐलान किया है भावांतर भुगतान योजना. अगर किसान 3600 में सोयाबीन बेचता है, तो सरकार अंतर की राशि यानी 1728 रुपये प्रति क्विंटल देने का वादा करती है.

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इंसानी लालच ने भी किसान को किया तबाह

मध्यप्रदेश 66 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन बोने वाला सबसे बड़ा राज्य है. पिछले साल सरकार ने 7 लाख मीट्रिक टन खरीद कर 4892 करोड़ रुपये खर्च किए थे. पर इस साल सिर्फ आसमान ही नहीं, इंसानी लालच ने भी किसानों को तबाह किया है. नकली कीटनाशकों ने खेत जला डाले इस सच को राज्य और केंद्र दोनों के कृषि मंत्री मान चुके हैं.

हालांकि भावांतर को लेकर भाव मिले जुले हैं, किसानों के दिल में अब भी 2017 की चोट ताज़ा है. भावांतर योजना तब राहत से ज़्यादा आफ़त बन गई थी. सीमित समय में स्कीम आने से अचानक मंडियों में सप्लाई बढ़ गई. मांग घटी और भाव 800-1200 रुपये प्रति क्विंटल यानी 30-35% तक गिर गए. पैसा भी डेढ़-दो महीने बाद आया, जब तक किसान को मजदूरी देनी थी, खेत तैयार करना था, घर चलाना था.

दीवान सिंह रघुवंशी कहते हैं, “किसान को पैसा आज चाहिए, अगले महीने नहीं. उसे मजदूरों को देना है, खेत जोतना है, परिवार पालना है. भावांतर का पैसा देर से आता है.”

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योजना किसान के लिए नई बड़े उद्योग के लिए

कांग्रेस किसान सेल के नेता केदार सिरोही का आरोप है, “यह योजना किसान के लिए नहीं, बड़े उद्योग के लिए है. सरकार भाव गिरा देती है ताकि कंपनियां सस्ता खरीद कर साल भर का स्टॉक भर लें. किसान ठगा जाता है. बिना निगरानी के भावांतर मुनाफाखोरी का औजार है, राहत नहीं.” इसके बावजूद सरकार आगे बढ़ रही है. इस बार 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर तक भावांतर में पंजीकरण होगा. योजना 1 नवम्बर 2025 से 31 जनवरी 2026 तक चलेगी. राजस्व विभाग जमीन का सत्यापन करेगा और पैसा सीधे खातों में आएगा.

सवाल वही क्या इस बार सचमुच राहत मिलेगी? क्योंकि भारत का सोयाबीन कटोरा आज खाली फलियों, बढ़ते कर्ज़ और घटती उम्मीदों से भरा है. वो किसान, जो देश का पेट भरता है, खुद अपनी थाली में अधपका सपना लिए बैठा है.

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