पीएम मोदी (PM Narendra Modi) ने आज दावा किया कि भारतीय चुनावों के इतिहास में कभी भी सत्ता के पक्ष में ऐसी लहर नहीं देखी गई जैसी इस बार देखी जा रही है. हालांकि मौजूदा चुनाव के बारे में उनके इस दावे की हकीकत 23 मई को सामने आएगी, लेकिन क्या वास्तव में अतीत में कभी भी सत्ता के पक्ष में कोई लहर नहीं थी? पिछले कुछ लोकसभा चुनावों (Loksabha Elections) पर नजर डालें तो पीएम मोदी के दावे के विपरीत पूर्व में समय-समय पर सत्ता पक्ष के बढ़त लेने की बात आंकड़े साबित कर देते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने आज बनारस (Varanasi) में कहा कि देश में पहली बार सत्ता के पक्ष में लहर चल रही है. उन्होंने दावा किया कि देश में अब तक जितने चुनाव हुए हैं उनमें ऐसा पहली बार है कि देश में 'प्रो-इन्कम्बेंसी वेव' यानी सत्ता के पक्ष में लहर देखी रहा है. लेकिन क्या वाकई ऐसा है? क्या देश में इससे पहले हुए चुनावों में सत्तारूढ़ दल के पक्ष में कभी लहर नहीं चली?
हमने पुराने चुनावों के आंकड़ों को खंगालकर देखा. सन 1951-52 के पहले आम चुनाव में कांग्रेस को 44.99% वोट के साथ 364 सीटें मिली थीं. इसके बाद सन 1957 में हुए चुनाव में कांग्रेस के वोट बढ़कर 47.8% हो गए और उसे 371 सीटें मिलीं, यानी इस चुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस के वोट 2.81% बढ़ गए और सात सीटें बढ़ीं.
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इसी तरह अगर हम बाद में हुए कुछ चुनावों के आंकड़े भी देखें तो पाएंगे कि सत्तारूढ़ दल की सीटें भी बढ़ीं और वोट प्रतिशत भी. सन 1967 में 40.8% वोटों के साथ कांग्रेस को 283 सीटें मिली थीं और वह सत्ता में थी. बाद में पार्टी में बिखराव हुआ और पहली बार मध्यावधि चुनाव हुए. सन 1971 में 'गरीबी हटाओ' के नारे के साथ इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 43.71% वोटों के साथ 342 सीटें जीतीं. यानी सत्तारूढ़ कांग्रेस के वोट 2.91% और सीटें 59 बढ़ गईं. इसमें हमने गठबंधन सरकारों को नहीं गिना. सन 1984 के चुनाव के आंकड़े भी नहीं लिए क्योंकि वह चुनाव एक अलग परिस्थिति में हुए थे. तो क्या यह सत्ता के पक्ष में चली लहर नहीं थीं?
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मौजूदा लोकसभा चुनाव में सत्ता पक्ष बीजेपी के परिदृश्य को देखें तो आंकड़े बताते हैं कि बीजेपी ने इस लोकसभा चुनाव में अपने 102 मौजूदा सांसदों के टिकट काटे हैं. यानी 37.7% सांसदों को दोबारा टिकट नहीं मिला है. दूसरा आंकड़ा यह भी है कि एससी-एसटी सांसदों पर ज्यादा गाज गिरी है. कुल 63 में से 33 यानी 52.3% एससी-एसटी सांसदों को दोबारा टिकट नहीं मिला है. जबकि सामान्य वर्ग के 33.3% सांसदों के ही टिकट काटे गए. इसके अलावा बीजेपी ने बड़ी संख्या में फिल्मी सितारों को भी चुनाव मैदान में उतारा है. अगर सत्ता के पक्ष में लहर है तो फिर यह सब करने की क्या जरूरत थी?
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