2019 के लोकसभा चुनावों में बिहार महत्वपूर्ण रोल अदा करेगा. यहां लोकसभा की 40 सीटें हैं जो हर पार्टी और केंद्र के गठबंधन के लिए निर्णायक साबित होंगी. यही वजह थी कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह (Amit Shah) ने तमाम पुराने राजनीतिक मतभेद के बाद भी सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को सीट शेयरिंग के दौरान अपनी इच्छा की सूची देने की अनुमति दी थी. 68 साल के सीएम नीतीश कुमार 2005 से बिहार में राज कर रहे हैं. 2013 में उन्होंने बीजेपी से खुद को अलग कर लिया था क्योंकि एनडीए ने नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया था. हालांकि 2014 के चुनावों में जेडीयू को केवल 2 सीटें मिली थीं, इसके बावजूद जेडीयू को 17 सीटें दी गईं यानी बीजेपी के साथ 50-50 सीट शेयरिंग की गई. जेडीयू मुख्य रूप से 15 फीसदी वोटों पर कमांड रखती है जो जीत में अहम भूमिका निभाती है.
डाटा के मुताबिक बीजेपी और नीतीश कुमार का अलग होने से पहले 13 साल तक साथ था जिससे इनका बिहार में बड़ा वोट बैंक है. 50 फीसदी वोट पर जेडीयू और बीजेपी का असर है और 30 फीसदी वोट कांग्रेस और लालू यादव का है.
बड़ा मार्जिन यह सुनिश्चित करता है कि बीजेपी-जेडीयू गठबंधन वोट में बड़े बदलाव ला सकता है. आरजेडी और कांग्रेस की तुलना में इसे 10 फीसदी वोट में ज्यादा वोट मिल सकते हैं. 10 फीसदी वोटों पर बढ़त यह सुनिश्चित करती है कि बिहार की 40 सीटों में 37 सीटें इनके पक्ष में हैं.
बीजेपी का शहरी क्षेत्रों, पुरुषों और उच्च जातियों पर गहरा प्रभाव है वहीं जेडीयू का ग्रामीण, महिलाओं और पिछड़ी श्रेणी पर गहरा प्रभाव है.
बिहार में महिला वोटर बड़ा असर डालती हैं. पहली बार उन्होंने वोटर के मामले में पुरुषों को पीछे छोड़ा है.
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