शनिवार के दिन शिव की नगरी में गहमागहमी रही. ये गहमागहमी भीम आर्मी के चीफ चंद्रेशखर आज़ाद (Chandrashekhar Azad) के आने से हुई. चंद्रशेखर ने जैसे ही शिव की नगरी काशी में रोड शो का ऐलान किया वैसे ही कि आम जनता तो नहीं लेकिन पुलिस प्रशासन के साथ मीडिया हलकान होने लगा. सबसे बड़ी फ़जीहत तो खुफिया तंत्र की हुई. भीम आर्मी के चीफ चंद्रेशखर वाराणसी के खुफिया तंत्र पर भारी पड़ गए. चंद्रशेखर शहर की सीमा में कैसे दाखिल हुआ, इसे जानने के लिए खुफिया विभाग के अफसर रेलवे स्टेशन से लेकर बाबतपुर एयरपोर्ट तक हांफते रहे, लेकिन कोई खबर नहीं मिली. आलम ये था कि खुफिया विभाग के अफसरों ने दिल्ली और लखनऊ से आने वाली सभी फ्लाइटों की टिकटों को खंगाला लेकिन कोई कामयाबी नहीं मिली. सभा स्थल पर भी खुफिया तंत्र मीडिया के लोगों से टोह लेता रहा लेकिन उसके आने तक वो कहां है किसी को कुछ पता नहीं था.
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चंद्रशेखर के रोड शो के परमिशन को लेकर भी अच्छा खासा ड्रामा रहा. पहले तो प्रशासन परमिशन ही नहीं दे रहा था और जब देर रात दिया तो कई शर्तों के साथ. मसलन 10 से ज़्यादा दोपहिया वाहन नहीं होंगे, एक ही चार पहिया वाहन होगा और 500 से ज़्यादा आदमी नहीं रहेंगे. भीम आर्मी ने इन बातों का ख्याल रखा लेकिन लगता है कि प्रशासन चंद्रशेखर को लेकर बेहद सतर्क था तभी तो चंद्रशेखर का पूरा रोड शो संगीनों के साये में नज़र आया. लगभग आधा दर्ज़न थानों की पुलिस बुलाई गई थी, आगे और पीछे पुलिस का पहरा था.
11 बजे का प्रस्तावित रोड शो लगभग 2 घंटे के विलंब से एक बजे शुरू हुआ. भीम आर्मी के इस रोड शो में समर्थक ज़्यादा नहीं थे लेकिन जितने थे उनमें उत्साह बहुत था. चंद्रशेखर ने कचहरी के अम्बेडकर पार्क से शहर के भीतरी इलाकों से होते हुए रविदास मंदिर तक का सफ़र पैदल ही तय किया.
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चंद्रशेखर के इस रोड शो में भले ही उसके चंद समर्थक रहे हों और उसके यहां से चुनाव लड़ने पर बनारस की सीट पर कोई बड़ी हलचल भी नहीं होती नज़र आ रही लेकिन खुद चंद्रशेखर के लिये यहां से लड़ना फ़ायदेमंद नज़र आ रहा है. एक तो उसकी सीधी टक्कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से होगी दूसरे गठबंधन और कांग्रेस से कोई बड़ा नेता आता है तो उसके भी मुकाबिले वो दो दो हाथ करता नज़र आएगा. मीडिया, सोशल मीडिया उसे नज़र अंदाज़ नहीं कर पाएगी. वो भी एक धुरी कर राजीनीति के फ़लक पर चर्चा का विषय बना रहेगा. ये वो बातें हैं जो उसे किसी दूसरी जगह चुनाव लड़ने में नहीं मिलेंगी. यही वजह है कि बिना किसी संगठन के, बिना किसी नतीजों के परवाह के, बिना किसी जनाधार के, बिना किसी बड़ी नीति के सिर्फ अपनी राजनितिक महत्वाकांक्षा के लिये वो बनारस से चुनाव मैदान में उतरना चाह रहा है.
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