भारत के राष्ट्रगीत वंदेमातरम के रचयिता बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 26 जून 1838 को बंगाल के उत्तरी चौबीस परगना के कंथलपाड़ा में एक परंपरागत और समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ था. उनकी पढ़ाई और शिक्षा कोलकाता के हुगली कॉलेज और प्रेसीडेंसी कॉलेज में हुई थी. बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने उपन्यासों के माध्यम से देशवासियों में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह की चेतना का निर्माण करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
देश के राष्ट्रगीत और अन्य रचनाओं के लिए और उनकी साहित्यिक रचनाओं के लिए युगों-युगों तक याद किया जाता रहेगा। बंकिमचंद्र ने अपने लेखन की शुरुआत अंग्रेजी उपन्यास-राजमोहन'स स्पाउस से की थी, लेकिन बाद में उन्होंने देशवासियों को आंदोलन के लिए उद्वेलित करने के लिए हिंदी का रूख किया और अंग्रेजी उपन्यास को आधा-अधूरा ही छोड़ दिया.
इस कृति से लिया गया था राष्ट्रगान वंदेमातरम
आनंदमठ को बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की बेहतरीन कृति में गिना जाता है. इसी उपन्यास से राष्ट्रगान वंदेमातरम को लिया गया है. आनंदमठ में 1857 से पहले के संन्यासी विद्रोह का विस्तार से वर्णन किया गया है. संन्यासी विद्रोह 1772 से शुरू होकर लगभग 20 सालों तक चला था.
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8 अप्रैल, 1894 को दुनिया को कहा था अलविदा
एक महान राष्ट्र भक्त के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने 8 अप्रैल, 1894 को दुनिया को अलविदा कह दिया था, लेकिन उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए जो चिंगारी सुलगाई थी, उसने लोगों में अंग्रेजों से लड़ने के लिए जोश जगा दिया था. और आज भी उनकी रचनाओं से लोगों में देशभक्ति आती है.
देश के राष्ट्रगीत और अन्य रचनाओं के लिए और उनकी साहित्यिक रचनाओं के लिए युगों-युगों तक याद किया जाता रहेगा। बंकिमचंद्र ने अपने लेखन की शुरुआत अंग्रेजी उपन्यास-राजमोहन'स स्पाउस से की थी, लेकिन बाद में उन्होंने देशवासियों को आंदोलन के लिए उद्वेलित करने के लिए हिंदी का रूख किया और अंग्रेजी उपन्यास को आधा-अधूरा ही छोड़ दिया.
इस कृति से लिया गया था राष्ट्रगान वंदेमातरम
आनंदमठ को बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की बेहतरीन कृति में गिना जाता है. इसी उपन्यास से राष्ट्रगान वंदेमातरम को लिया गया है. आनंदमठ में 1857 से पहले के संन्यासी विद्रोह का विस्तार से वर्णन किया गया है. संन्यासी विद्रोह 1772 से शुरू होकर लगभग 20 सालों तक चला था.
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8 अप्रैल, 1894 को दुनिया को कहा था अलविदा
एक महान राष्ट्र भक्त के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने 8 अप्रैल, 1894 को दुनिया को अलविदा कह दिया था, लेकिन उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए जो चिंगारी सुलगाई थी, उसने लोगों में अंग्रेजों से लड़ने के लिए जोश जगा दिया था. और आज भी उनकी रचनाओं से लोगों में देशभक्ति आती है.
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