राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) की आज पुण्यतिथि है. दिनकर (Dinkar) का निधन 24 अप्रैल, 1974 को हुआ था. रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) राष्ट्रकवि होने के साथ ही जनकवि भी थे. दिनकर ऐसे कवियों में से हैं जिनकी कविताएं आम आदमी से लेकर बड़े-बड़े विद्वान पसंद करते हैं. देश की आजादी की लड़ाई से लेकर आजादी मिलने तक के सफर को दिनकर ने अपनी कविताओं द्वारा व्यक्त किया है. यहीं नहीं देश की हार जीत और हर कठिन परिस्थिति को दिनकर ने अपनी कविताओं में उतारा है. एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है. दिनकर की कविताओं का जादू आज भी उतना ही कायम है. दिनकर किसी एक विचारधारा का समर्थन नहीं करते थे.
वे लिखते हैं-
"अच्छे लगते मार्क्स, किंतु है अधिक प्रेम गांधी से.
प्रिय है शीतल पवन, प्रेरणा लेता हूं आंधी से."
अपनी प्रारंभिक कविताओं में क्रांति का उद्घोष करके युवकों में राष्ट्रीयता व देशप्रेम की भावनाओं का ज्वार उठाने वाले दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) आगे चलकर राष्ट्रीयता का विसर्जन कर अंतरराष्ट्रीयता की भावना के विकास पर बल देते हैं. सत्ता के करीब होने के बावजूद भी दिनकर कभी जनता से दूर नहीं हुए. जनता के बीच उनकी लोकप्रियता हमेशा बनी रही.
हरिवंश राय बच्चन का कहना था, ‘दिनकर जी को एक नहीं बल्कि गद्य, पद्य, भाषा और हिंदी के सेवा के लिए अलग-अलग चार ज्ञानपीठ मिलने चाहिए थे'
राजनीति हो या देशभक्ति हर जगह लिया जाता है रामधारी सिंह 'दिनकर' की कविताओं का सहारा
कुछ ऐसा था रामधारी सिंह दिनकर का जीवन
रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार राज्य में पड़ने वाले बेगूसराय जिले के सिमरिया ग्राम में हुआ था. रामधारी सिंह दिनकर के पिता एक साधारण किसान थे. दिनकर दो वर्ष के थे, जब उनके पिता का देहावसान हो गया था. दिनकर और उनके भाई-बहनों का पालन-पोषण उनकी माता ने किया. साल 1928 में मैट्रिक के बाद उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान में बीए किया. उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था. वह मुजफ्फरपुर कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे, भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति के पद पर कार्य किया. उसके बाद भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बने.
जब रामधारी सिंह दिनकर ने इस कवि से कहा, तुमने अभी ‘आत्मजयी' लिख डाली है तो बुढ़ापे में क्या लिखोगे!'
उनकी पहली रचना 'रेणुका' 1935 से प्रकाशित हुई. तीन वर्ष बाद जब उनकी रचना 'हुंकार' प्रकाशित हुई, तो देश के युवा वर्ग ने उनकी कविताओं को बहुत पसंद किया. 1952 में जब भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ, तो उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया और वह दिल्ली आ गए. दिनकर को साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मविभूषण आदि तमाम बड़े पुरस्कारों से नवाजा गया. उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से भी अलंकृत किया गया था. दिनकर की चर्चित किताब ‘संस्कृति के चार अध्याय' की प्रस्तावना तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लिखी है. इस प्रस्तावना में नेहरू ने दिनकर को अपना ‘साथी' और ‘मित्र' बताया है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं