
Ramdhari Singh Dinkar ki Kavitayen: यूं तो कवि रामधारी सिंह दिनकर को ओज की विधा का कवि कहा जाता है, लेकिन उनकी लिखी श्रृंगार की कविताएं कितनी ही खूबसूरत है. उन्हें यूं ही नहीं राष्ट्र कवि का दर्जा मिला है. वीर रस की कविता हो या श्रृंगार रस की कविता उन्होंने हर रंग में खूबसूरती भरी है, जिसे पढ़ने के बाद दिल भर आता है. वैसे तो प्रेम को कई महान लोगों ने अपने-अपने अनुभवों से प्रेम का बखान किया है, लेकिन रामधारी सिंह दिनकर ने भी प्रेम के बारे में क्या खूब लिखा है, जिसे पढ़कर आप भी पसंद करेंगे. स्त्री-पुरुष प्रेम पर दिनकर ने लिखी दिल छू लेने वाली 12 पद्य.
प्रेम की आकुलता का भेद
छिपा रहता भीतर मन में
काम तब भी अपना मधु वेद
सदा अंकित करता तन में
2
सुन रहे हो प्रिय?
तुम्हें मैं प्यार करती हूँ।
और जब नारी किसी नर से कहे,
प्रिय! तुम्हें मैं प्यार करती हूँ,
तो उचित है, नर इसे सुन ले ठहर कर,
प्रेम करने को भले ही वह न ठहरे।
3
मंत्र तुमने कौन यह मारा
कि मेरा हर कदम बेहोश है सुख से?
नाचती है रक्त की धारा,
वचन कोई निकलता ही नहीं मुख से।
4
पुरुष का प्रेम तब उद्दाम होता है,
प्रिया जब अंक में होती।
त्रिया का प्रेम स्थिर अविराम होता है,
सदा बढ़ता प्रतीक्षा में।
5
प्रेम नारी के हृदय में जन्म जब लेता,
एक कोने में न रुक
सारे हृदय को घेर लेता है।
पुरुष में जितनी प्रबल होती विजय की लालसा,
नारियों में प्रीति उससे भी अधिक उद्दाम होती है.
प्रेम नारी के हृदय की ज्योति है,
प्रेम उसकी जिन्दगी की साँस है;
प्रेम में निष्फल त्रिया जीना नहीं फिर चाहती
6
शब्द जब मिलते नहीं मन के
प्रेम तब इंगित दिखाता है
बोलने में लाज जब लगती
प्रेम तब लिखना सिखाता है
7
पुरुष प्रेम संतत करता है, पर, प्रायः, थोड़ा-थोड़ा,
नारी प्रेम बहुत करती है, सच है, लेकिन, कभी-कभी।
8
स्नेह मिला तो मिली नहीं क्या वस्तु तुम्हें?
नहीं मिला यदि स्नेह बन्धु!
जीवन में तुमने क्या पाया।
9
फूलों के दिन में पौधों को प्यार सभी जन करते हैं,
मैं तो तब जानूँगी जब पतझर में भी तुम प्यार करो।
जब ये केश श्वेत हो जायें और गाल मुरझाये हों,
बड़ी बात हो रसमय चुम्बन से तब भी सत्कार करो।
10
प्रेम होने पर गली के श्वान भी
काव्य की लय में गरजते, भूँकते हैं
11
प्रातः काल कमल भेजा था शुचि, हिमधौत, समुज्जवल,
और साँझ को भेज रहा हूँ लाल-लाल ये पाटल
दिन भर प्रेम जलज सा रहता शीतल, शुभ्र, असंग,
पर, धरने लगता होते ही साँझ गुलाबी रंग
12
उसका भी भाग्य नहीं खोटा
जिसको न प्रेम-प्रतिदान मिला
छू सका नहीं, पर, इन्द्रधनुष
शोभित तो उसके उर में है
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