'हमारे कुछ गुनाहों की सजा भी साथ चलती है.
हम अब तनहा नहीं चलती दवा भी साथ चलती है
अभी ज़िंदा है मां मेरी मुझे कुछ नहीं होगा,
मैं घर से जब निकलता हूं दुआ भी साथ चलती है'
मां के लिए मुनव्वर राणा की ये शायरी किसी भी दिल को पिघला सकती है. मुनव्वर ने बहुत से विषयों को अपनी लेखनी और शायरी में छुआ, लेकिन मां पर लिखी उनकी शायरी ने सभी के दिलों को छू लिया... बीते साल ही की मां का देहांत हुआ था. मुनव्वर बताते हैं कि मां इतने साल जिंदा रहीं, क्योंकि मुनव्वर उन्हें कहते थे ' अगर तू चली गई, तो पीछे-पीछे मैं भी चला आऊंगा.'
मुनव्वर ने ही तो सबको बताया था कि – लबों पर उसके कभी बददुआ नहीं होती,
बस एक मां है जो कभी ख़फ़ा नहीं होती
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
मां बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है.
मुनव्वर, जिसने शायरी किसी माशूका के लिए नहीं लिखी, उसने तो मां से ही इश्क किया और उसी पर अपनी शायरी न्यौछावर की. खुद मुनव्वर कहते कि उन्हें अपनी मां से इश्क किया है... जब भी मुनव्वर मां शब्द बोलते हैं उनकी आवाज में रुबाई को महसूस किया जा सकता है. मुनव्वर की शायरी और उस शायरी को पढ़ते हुए मुनव्वर ऐसा लगता है बस मां से शुरू और मां पर खत्म...
मां से बेइंतहां मुहब्बत करने वाले मुनव्वर राणा कहते कि अगर मैं अपनी शायरी से एक भी मां को ओल्ड एज होम से घर पर वापस ला सकूं तो मेरी शायरी कामयाब मानूंगा...
मां के प्यार में मुनव्वर का इतना यकीन है कि वे कह चुके हैं कि अगर भारत और पाकिस्तान को फिर से एक करना है तो दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों को अपनी अपनी मां के साथ मिलना चाहिए. मुनव्वर ने अंबानी बंधुओं के अलग होने के पीछे भी मां के चले जाने को ही एक वजह बताया था.
शायरी की दुनिया का बड़ा नाम मुनव्वर राणा गले के कैंसर से पीडि़त हैं. मुनव्वर राणा की उम्र 65 साल है. पिछले साल देश असहिष्णुता के मुद्दे पर लेखकों द्वारा सम्मान लौटाने वाले लोगों में एक नाम मुनव्वर राणा का भी है. मुनव्वर राणा को 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था.
शायर मुनव्वर राणा की कई रचनाएं प्रकाशित हुई हैं. मुनव्वर राणा ने जिन विषयों पर लिखा उनमें सबसे अहम रहा मां विषय. वे मां पर बेहद भावुक कर देने वाली शायरी लिखते थे. गजल गांव, मां,पीपल छांव, नीम के फूल, मकान, फिर कबीर, सब उसके लिए और नए मौसम के फूल उनके प्रमुख प्रकाशित रचना संकल हैं.