गए वे दिन
जब शोर के उठने से
पता चलता था बाजार किधर है
गए वे दिन
जब महक से पता चलता था
कि कहां क्या बिक रहा है
गए वे दिन
जब अफरातफरी से पता चलता था
कि बाजार कितना गर्म है
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)यूं ही नहीं बसा है चीजों का ये निजाम
मैं खुद ही उजड़ गया हूं करने में इंतजाम
बंदों से कहीं ज्यादा चीजों का रख-रखाव
साहब हों या कि बीवी चीजों के सब गुलाम.
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