विज्ञापन
This Article is From May 19, 2017

बुक रिव्यू: बाजारवादी संस्कृति पर करारी चोट है 'मॉल में कबूतर'

यह बहस का विषय है कि 'उदारीकरण' और 'बाजारवाद' ने कुछ खास वर्ग के लोगों का ही भला किया है और आम जनों के लिए यह एक विभीषिका बनकर आया है.

बुक रिव्यू: बाजारवादी संस्कृति पर करारी चोट है 'मॉल में कबूतर'

गए वे दिन
जब शोर के उठने से
पता चलता था बाजार किधर है
गए वे दिन
जब महक से पता चलता था
कि कहां क्या बिक रहा है
गए वे दिन
जब अफरातफरी से पता चलता था
कि बाजार कितना गर्म है

यूं ही नहीं बसा है चीजों का ये निजाम
मैं खुद ही उजड़ गया हूं करने में इंतजाम
बंदों से कहीं ज्यादा चीजों का रख-रखाव
साहब हों या कि बीवी चीजों के सब गुलाम.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com