
नई दिल्ली:
इतिहासकार आंद्रे त्रस्चके ने औरंगजेब की आत्मकथा लिखी है, जिसमें विवादास्पद मुगल शासक पर नये नजरिये से बात की गयी है. 'औरंगजेब: दि मैन एंड दि मिथ' किताब छापने वाले प्रकाशक पेंग्विन रेंडम हाउस ने कहा कि हालांकि बहुत से लोग औपनिवेशिक युग के विचारकों से सहमत हैं कि धर्मांन्ध औरंगजेब हिन्दुओं से घृणा करता था, लेकिन उनके बारे में एक अनकहा पहलू भी है कि वह हिन्दूओं का प्रिय राजा बनने का भी प्रयास करता है.
प्रकाशक ने कहा कि बेबाक और मनोरम आत्मकथा से आंद्रे त्रस्चके ने मुगल बादशाह के नये पहलू पर बहस शुरू कर दी है. उल्लेखनीय है कि औरंगजेब आलमगीर :1658-1707: छठवां मुगल शासक था. इस समय देश के लोगों में औरंगजेब के प्रति पर्याप्त नफरत है. औरंगजेब को हिन्दुओं से घृणा करने वाला, हिन्दुओं का हत्यारा और धर्म के प्रति कट्टर और आधुनिक परिप्रेक्ष्य में एक बदनाम शासक कहा जाता है.
त्रस्चके न्यूजर्सी में नेवार्क के रटगर्स यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशियाई इतिहास का अध्यापन एवं शोध कार्य करती हैं. वह अत्याधुनिक एवं आधुनिक भारत की सांस्कृतिक, शाही और बौद्धिक इतिहास की विशेषज्ञ हैं. उनकी पहली किताब 'कल्चर ऑफ इनकाउंटर्स:संस्कृत एट दि मुगल कोर्ट' साहित्य, सामाज और राजनीति में संस्कृत के महत्व को रेखांकित करने वाली पुस्तक है. संस्कृत ने 1560 से 1650 के दौरान फारसी बोलने वाली इस्लामी मुगल अदालतों में पर्याप्त वृद्धि की थी.
प्रकाशक ने कहा कि बेबाक और मनोरम आत्मकथा से आंद्रे त्रस्चके ने मुगल बादशाह के नये पहलू पर बहस शुरू कर दी है. उल्लेखनीय है कि औरंगजेब आलमगीर :1658-1707: छठवां मुगल शासक था. इस समय देश के लोगों में औरंगजेब के प्रति पर्याप्त नफरत है. औरंगजेब को हिन्दुओं से घृणा करने वाला, हिन्दुओं का हत्यारा और धर्म के प्रति कट्टर और आधुनिक परिप्रेक्ष्य में एक बदनाम शासक कहा जाता है.
त्रस्चके न्यूजर्सी में नेवार्क के रटगर्स यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशियाई इतिहास का अध्यापन एवं शोध कार्य करती हैं. वह अत्याधुनिक एवं आधुनिक भारत की सांस्कृतिक, शाही और बौद्धिक इतिहास की विशेषज्ञ हैं. उनकी पहली किताब 'कल्चर ऑफ इनकाउंटर्स:संस्कृत एट दि मुगल कोर्ट' साहित्य, सामाज और राजनीति में संस्कृत के महत्व को रेखांकित करने वाली पुस्तक है. संस्कृत ने 1560 से 1650 के दौरान फारसी बोलने वाली इस्लामी मुगल अदालतों में पर्याप्त वृद्धि की थी.
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