बिहार के बाद देशभर के कई राज्यों में चुनाव आयोग की तरफ से वोटर लिस्ट रिवीजन का प्रोसेस शुरू किया जा रहा है. इसे SIR यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन कहा जाता है. इसमें वोटर्स को ये बताना होगा कि वो उसी जगह के निवासी है, जहां उनका वोटर आईडी कार्ड बना हुआ है, ये साबित नहीं कर पाने पर वोटर लिस्ट से नाम हटा दिया जाएगा. इसमें उन लोगों की भी पहचान होगी, जो भारतीय नागरिक नहीं हैं और उन्होंने वोटर आईडी बनवा लिया है. ऐसे में आइए जानते हैं कि नागरिकता साबित करने के लिए भारत में किस दस्तावेज की जरूरत पड़ती है.
आधार और वोटर कार्ड नहीं है सबूत
अगर आपको भी लगता है कि आप जेब से आधार कार्ड या फिर वोटर आईडी कार्ड निकालकर अपनी नागरिकता का सबूत दे सकते हैं तो आप गलत हैं. ये सिर्फ आपकी पहचान या पते को दर्शाने वाले दस्तावेज हैं, इनसे नागरिकता साबित नहीं की जा सकती है. इसीलिए नागरिकता के लिए आपको एक खास दस्तावेज की जरूरत पड़ेगी.
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क्या है नागरिकता?
नागरिकता को लेकर हर देश के अपने कानून होते हैं. भारत में संविधान के आर्टिकल 5 से लेकर 11 में नागरिकता को लेकर जिक्र किया गया है. इसमें ये बताया गया है कि 26 जनवरी 1950 को यानी जिस दिन देश का संविधान बना था, तब भारत में रहने वाला हर व्यक्ति भारतीय नागरिक कहलाएगा, जिसका जन्म भारत में हुआ हो.
इसके बाद 1955 में नागरिकता कानून लाया गया, जिसमें बताया गया कि किसे नागरिकता मिल सकती है और किसकी नागरिकता कब खत्म हो सकती है. इसमें वंश के आधार पर, जन्म के आधार पर, रजिस्ट्रेशन के आधार पर, नैचुरलाइजेशन के आधार पर और किसी देश के भारत में शामिल होने पर नागरिकता देने की बात कही गई है.
क्या है नागरिकता का सबूत?
भारत में आधिकारिक तौर पर यूं तो नागरिकता साबित करने का कोई एक दस्तावेज नहीं है. क्योंकि भारतीय संविधान में साफ है कि भारत में जन्म लेने वाला व्यक्ति भारत का नागरिक हो सकता है. ऐसे में जन्म प्रमाण पत्र या बर्थ सर्टिफिकेट दिखाकर ये साबित किया जा सकता है कि आपका जन्म भारत के ही किसी राज्य में हुआ है. इसीलिए इसे नागरिकता साबित करने वाला दस्तावेज कहा जा सकता है. इसे नगर निगम, ग्राम पंचायत या फिर नगर पालिका से जारी करवाया जाता है.
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