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भारत में कैसे हुई थी इंग्लिश मीडियम पढ़ाई की शुरुआत, कौन सा है पहला अंग्रेजी स्कूल

आपने कभी सोचा है कि जिस देश की पहचान उसकी मातृभाषा हिंदी से होती है, वहां अंग्रेजी ने इतनी तेज़ी से कैसे अपने पैर कैसे पसार लिए.

भारत में कैसे हुई थी इंग्लिश मीडियम पढ़ाई की शुरुआत, कौन सा है पहला अंग्रेजी स्कूल
भारत में इंग्लिश मीडियम की शुरुआत मुग़ल शासन के खत्म होने और अंग्रेज़ों के दौर के आने के साथ हुई.

Indian education system : बड़े शहरों के नामी-गिरामी स्कूल्स की तो बात ही छोड़ दीजिए, अब छोटे कस्बों और गांवों तक में इंग्लिश मीडियम के स्कूल तेजी से खुल रहे हैं.माता-पिता के लिए भी अब अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाना एक प्राथमिकता बन गया है. क्योंकि उनका मानना है कि अंग्रेज़ी सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि बेहतर करियर और उज्जवल भविष्य की चाबी है. यही वजह है कि आज हर जगह इंग्लिश स्कूल्स की डिमांड बढ़ गई है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जिस देश की पहचान उसकी मातृभाषा हिंदी से होती है, वहां अंग्रेज़ी ने इतनी तेज़ी से कैसे अपने पांव पसार लिए? इसके पीछे की कहानी जितनी दिलचस्प है उतनी चौंकाने वाली भी.

पहला इंग्लिश मीडियम स्कूल

भारत में इंग्लिश मीडियम की शुरुआत मुगल शासन के खत्म होने और अंग्रेज़ों के दौर के आने के साथ हुई. औरंगज़ेब की मौत के करीब 8 साल बाद, 1715 में अंग्रेज़ों ने मद्रास अब चेन्नई में पहला इंग्लिश मीडियम स्कूल खोला. इस स्कूल का नाम सेंट जॉर्ज एंग्लो-इंडियन हायर सेकेंडरी स्कूल रखा गया. मज़ेदार बात ये है कि आज भी इस स्कूल में एडमिशन पाना आसान नहीं है.

स्कूल की खासियतें

यह स्कूल सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के सबसे पुराने स्कूलों में गिना जाता है. चेन्नई के शेनॉय नगर में 21 एकड़ में फैले इस स्कूल में नर्सरी से लेकर 12वीं तक की पढ़ाई होती है.

  • यहां बोर्डिंग हाउस, डॉर्मेट्री, किचन और बड़े-बड़े खेल के मैदान मौजूद हैं.
  • लाल ईंटों से बनी इसकी शानदार बिल्डिंग आज भी मजबूती से खड़ी है.
  • मौजूदा समय में यहां 1000 से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं और करीब 36 टीचर्स पढ़ाते हैं.
  • इतना ही नहीं, इस ऐतिहासिक इमारत को चेन्नई की संरक्षित इमारतों में शामिल किया गया है.
भारतीय बच्चों के लिए ‘नो-एंट्री'

शुरुआत में यह स्कूल ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों के बच्चों के लिए खोला गया था. उस दौर में भारतीय बच्चों को यहां दाखिला नहीं मिलता था. दरअसल, अंग्रेज़ भारतीयों को अपनी सुख-सुविधाओं वाली जगहों में घुसने नहीं देते थे. बाद में धीरे-धीरे भारतीयों को भी इंग्लिश एजुकेशन का मौका मिला और यहीं से देश में इंग्लिश मीडियम एजुकेशन की नींव पड़ी.

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