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दशहरे पर रावण के साथ दो लोग कौन होते हैं? जिनका हर बार जलाया जाता है पुतला

Dussehra 2025: दशहरे के मेले में आपने कई बार रावण जलते हुए देखा होगा, लेकिन रावण के अलावा भी दो पुतले खड़े होते हैं, जिनके बारे में कुछ लोग नहीं जानते हैं.

दशहरे पर रावण के साथ दो लोग कौन होते हैं? जिनका हर बार जलाया जाता है पुतला
रावण के साथ जलाए जाते हैं ये पुतले

Dussehra 2025: दशहरे का त्योहार लोगों को याद दिलाता है कि बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, आखिरकार अच्छाई की विजय होती है. हर साल दशहरे पर लोग एक दूसरे को यही संदेश देते हुए रावण दहन करते हैं. ये प्रथा कई साल पहले से चली आ रही है और देशभर में दशहरे के मौके पर 10 सिर वाले रावण को जलाया जाता है. आपने रावण दहन कई बार देखा होगा, इस दौरान आपको रावण के अगल-बगल खड़े दो पुतले और नजर आए होंगे. क्या आप जानते हैं कि रावण के साथ खड़े ये दो लोग कौन होते हैं, जिन्हें दशहरे के मौके पर आग लगाई जाती है? अगर नहीं तो हम आपको आज इसकी पूरी कहानी बताने जा रहे हैं. 

रावण के साथ जलते हैं दो पुतले

देशभर में दशहरे के दौरान रावण के कई फीट ऊंचे पुतले जलाए जाते हैं, लेकिन तमाम बड़ी जगहों पर रावण के साथ-साथ दो और पुतलों का ऑर्डर दिया जाता है. सबसे बड़ा रावण होता है और उसकी दोनों तरफ ये थोड़े छोटे दिखने वाले पुतले खड़े किए जाते हैं. रावण दहन के बाद इनका भी दहन किया जाता है. कुछ जगहों पर इनकी संख्या ज्यादा भी हो सकती है.

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कौन हैं ये दो लोग?

रावण के साथ जलने वाले ये दो लोग उसी के परिवार के हैं. पहला पुतला रावण के पुत्र मेघनाद का होता है, जिसे इंद्रजीत के नाम से भी जाना जाता है. वहीं दूसरा पुतला रावण के भाई कुंभकरण का होता है, जो काफी खतरनाक और विशालकाय था. मेघनाद का वध श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण ने किया था, वहीं कुंभकरण को खुद प्रभु श्रीराम ने मारा था. 

इनके अलावा कई लोग अहिरावण, ताड़िका, देवांतक, प्रहस्त, अक्षय कुमार, सुबाहु आदि के पुतले भी बनवाते हैं, जिनकी लंबाई 10 से 15 फीट तक होती है. इन सभी पुतलों को एक सात दशहरे की शाम जलाया जाता है. 

जान लीजिए इतिहास 

रावण के अंत पर जश्न की प्रथा सदियों से चली आ रही है, हालांकि मुगलों और अंग्रेजों के जमाने में ये त्योहार भव्य रूप से नहीं मनाया जाता था. आजादी के बाद से भारत के तमाम हिस्सों में दशहरा धूमधाम से मनाया जाने लगा. बताया जाता है कि झारखंड के रांची में पहली बार सामूहिक रावण दहन किया गया था. हालांकि राजा महाराजाओं के जमाने में दशहरे के मौके पर मेले का आयोजन किया जाता था, जो परंपरा आज भी चली आ रही है. 
 

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