Delhi Khooni Darwaza History: दिल्ली की गलियों में जितनी रौनक है, इतिहास में भी उतनी ही गहराई छिपी है. लाल किला, कुतुब मीनार और इंडिया गेट जैसे ढेरों मशहूर स्मारकों के बीच एक ऐसा दरवाजा भी है, जिसके नाम से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. हम बात कर रहे हैं खूनी दरवाजा की. इतिहास में आपने कई बार इस दरवाजे का जिक्र पढ़ा या सुना होगा. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इसका नाम कैसे पड़ा, आखिर यहां हुआ क्या था. अगर नहीं तो इस आर्टिकल में जानिए खूनी दरवाजा का इतिहास.
काबुली दरवाजा से बना खूनी दरवाजा
इतिहासकारों के मुताबिक, खूनी दरवाजा 16वीं सदी में अफगान शासक शेरशाह सूरी ने बनवाया था. उस वक्त इसे काबुली दरवाजा कहा जाता था, क्योंकि काबुल जाने वाले काफिले यहीं से होकर गुजरते थे. लेकिन इस दरवाजे ने सिर्फ लोगों का आना-जाना नहीं देखा, बल्कि खून से लथपथ कई डरावनी घटनाओं का गवाह बना. पुराने समय में अपराधियों को सजा के तौर पर इसी गेट पर फांसी दी जाती थी. उनके सिर यहां टांग दिए जाते थे ताकि बाकी लोग सबक सीखें. धीरे-धीरे ये जगह डर और सजा का प्रतीक बन गया.
1857 की बगावत और खूनी दरवाजे की कहानी
अब आते हैं उस घटना पर, जिसने इस दरवाजे को 'खूनी' बना दिया. 22 सितंबर 1857 को भारत की आजादी की पहली लड़ाई अपने चरम पर थी. दिल्ली अंग्रेजों और भारतीय सैनिकों के बीच जंग का मैदान बन चुकी थी. इस बगावत का नेतृत्व बहादुर शाह जफर कर रहे थे. जब अंग्रेजों ने दिल्ली दोबारा कब्जे में ली, तो बहादुर शाह जफर को पकड़ने की जिम्मेदारी कैप्टन विलियम होडसन को दी गई. बहादुर शाह जफर ने जान बख्श देने की शर्त पर आत्मसमर्पण कर दिया.
तीन राजकुमारों की बेरहम हत्या
होडसन को आदेश मिला कि जफर के बेटों मिर्जा मुगल, खिजर सुल्तान और मिर्जा अबु बक्र को भी गिरफ्तार किया जाए. तीनों ने आत्मसमर्पण किया, लेकिन जब उन्हें खूनी दरवाजे के पास लाया गया, तो हालात अचानक बदल गए. लोगों की भीड़ जुट गई, माहौल गरमा गया और तभी होडसन ने अपनी बंदूक निकाली. उसने तीनों राजकुमारों को उतरने को कहा, उनके ऊपरी कपड़े उतरवाए और सार्वजनिक रूप से गोली मार दी. तीनों की लाशें तीन दिन तक इसी दरवाजे पर टंगी रहीं, ताकि लोग ब्रिटिश सत्ता की ताकत को याद रखें.यही वह दिन था, जब काबुली दरवाजा ने हमेशा के लिए अपना नाम खो दिया औरखूनी दरवाजा कहलाया.
जनता के लिए बंद है खूनी दरवाजा
खूनी दरवाजा दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग पर मौजूद है. यह जगह पुरातत्व विभाग के अधीन है, लेकिन अब आम जनता के लिए बंद कर दिया गया है. इसका कारण समय-समय पर यहां कुछ आपराधिक घटनाएं और असामाजिक हरकतें हुईं, इसलिए अब इसे सुरक्षा कारणों से सीमित कर दिया गया है. अगर कभी दिल्ली जाएं तो लाल किले और जामा मस्जिद के बीच इस जगह की झलक जरूर देखें. भले अंदर न जा सकें लेकिन बाहर से ही इसे देखकर इतिहास का अंदाजा लगा सकते हैं.
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