विज्ञापन

भारत में ज्यादा जीती हैं महिलाएं, 2036 में पुरुषों के लिए भी गुड न्यूज, जानिए कितनी बढ़ेगी उम्र

साल  2031-36 तक पुरुषों की औसत उम्र 71.2 साल और महिलाओं की औसत उम्र 74.7 साल तक पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है. यह महिलाओं के साथ ही पुरुषों के लिए भी किसी गुड न्यूज से कम नहीं है. उनकी औसत उम्र भी बढ़ने की संभावना जताई जा रही है.

भारत में ज्यादा जीती हैं महिलाएं, 2036 में पुरुषों के लिए भी गुड न्यूज, जानिए कितनी बढ़ेगी उम्र
साल 2036 तक कितनी होगी महिलाओं और पुरुषों की औसत उम्र, जानिए.
दिल्ली:

साल 2036 तक, भारत की जनसंख्या (India Population) 152.2 करोड़ के करीब पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा सोमवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2011 में 48.5% की तुलना में 48.8% के साथ महिलाओं के प्रतिशत में सुधार हुआ है. आंकड़े ये भी बताते हैं कि भारत में महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज्यादा जीती हैं. साल 1990 के बाद से, जीवन प्रत्याशा लगातार बढ़ रही है. 2016-20 के दौरान पुरुषों की औसत उम्र 68.6 साल और महिलाओं की औसत उम्र 71.2 साल पहुंच गई थी. साल  2031-36 तक पुरुषों की औसत उम्र 71.2 साल और महिलाओं की औसत उम्र 74.7 साल तक पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है. यह महिलाओं के साथ ही पुरुषों के लिए भी किसी गुड न्यूज से कम नहीं है. उनकी औसत उम्र भी बढ़ने की संभावना है.

महिलाओं की कम उम्र की वजह?

लिंग चाहे जो भी हो, जीने के लिए अच्छी हेल्थ सबसे ज्यादा जरूरी होती है. महिलाओं के कम जीवन स्तर के लिए बहुत से फैक्टर जिम्मेदार होते हैं, जिनमें स्वास्थ्य सबसे बड़ा कारक है. गर्भावस्था, पीरियड्स और स्त्री रोग संबंधी अन्य स्थितियों की वजह से भी महिलाएं पुरुषों की तुलना में कम जीती हैं. मातृ मृत्यु दर भी एक बड़ा कारक है. हेल्थ केयर सिस्टम तक महिलाओं और लड़कियों की पहुंच पुरुषों की तुलना में ज्यादा कठिन होती है. सही जानकारी के अभाव में वह कई बीमारियों से पीड़ित हो जाती हैं. महिलाओं को अनचाहे गर्भ और सर्वाइकल कैंसर, कुपोषण, बाल विवाह जैसी कम उम्र में सेक्स जैसी मुश्किलों से जूझना पड़ता है. ये वजह उनकी मौत का कारण बन जाती है. 

बदल रही महिलाएं, बढ़ रही औसत उम्र

बच्चा पैदा करने की उम्र भी मां और बच्चे, दोनों के ही स्वास्थ्य पर असर डालती है. पहले की तुलना में अब महिलाएं ज्यादा जागरुक हो गई हैं. उनको सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की भी जानकारी है और वह खुद के स्वास्थ्य पर पहले की तुलना में ज्यादा ध्यान देने लगी हैं, इसकी एक वजह शिक्षा भी है. पढ़ाई-लिखाई के साथ ही महिलाओं की समझ काफी बढ़ने लगी है. घर के कामकाज तो वह पहले भी बखूबी करती थीं, लेकिन जब बारी खुद पर ध्यान देने की आती थी तो वह इस मामले में बिल्कुल भी जागरुक नहीं थी. लेकिन अब जागरुकता बढ़ी है. शिक्षित लड़कियां जागरुक महिलाएं बन रही हैं, यही वजह है कि अब वह अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरुक हो रही हैं और उनको शादी करने की सही उम्र के साथ ही बच्चा पैदा करने की सही उम्र को लेकर जानकारी है. ये महिलाओं की जीवन प्रत्याशा बढ़ने की बड़ी वजह है. 

Latest and Breaking News on NDTV

घट रहा एज-स्पेसिफिक फर्टिलिटी रेट

एज-स्पेसिफिक फर्टिलिटी रेट से प्रजनन क्षमता के आयु पैटर्न को समझा जा सकता है. इससे साफ है कि साल 2016 से 2020 तक  20 से 24 साल की उम्र में फर्टिलिटी 135.4 113.6और 25 से 29 साल की उम्र में फर्टिलिटी 166.0 से घटकर प्रतिशत घटकर 139.6 हो गई है, जिसका मुख्य कारण जागरुकता है. अच्छी शिक्षा, आर्थिक रूप से आजादी और नौकरी कर रही महिलाएं पहले की महिलाओं के मुकाबले ज्यादा जागरुक होती हैं. महिलाएं अब कम उम्र में शादी करने और बच्चे पैदा करने की गलत सोच को तोड़ रही हैं.

35 से 39 साल की उम्र के लोगों के लिए एएसएफआर 32.7 से बढ़कर 35.6 हो गया है, जिससे पता चलता है कि महिलाएं लाइफ में सेटल होने के बाद ही परिवार आगे बढ़ाने के बारे में सोच रही हैं. युवा फर्टिलिटी रेट 15 से 19 साल की उम्र में रेंडम ट्रेंड दिखाता है, लेकिन साल 2020 में यह दर 11.3 होना चिंता की बात है, इसके लिए सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों के जरिए इस संवेदनशील मुद्दे पर लड़कियों को जागरुक करने की जरूरत है. 

Latest and Breaking News on NDTV

 साल 2017 में शादी की उम्र 22.1 साल से थोड़ा बढ़कर 22.7 साल हो गई.  ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह 21.7 साल से बढ़कर 22.2 साल, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 23.1 से बढ़कर 23.9 साल हो गई. 

एज-स्पेसिफिक फर्टिलिटी की अगर बात करें तो साल 2020 में गैर-पढ़े लिखी आबादी के लिए 15 से 19 साल में युवा प्रजनन क्षमता दर 33.9 थी, जबकि पढ़ी-लिखी आबादी के बीच यह दर 11.0 थी. वहीं ग्रैजुएट और इससे ज्यादा पढ़े-लिखे लोगों के लिए यह जीरो प्रतिशत थी. इस दर को कम करने में शिक्षा अहम कारक साबित हुई है. 

घट रही टोटल फर्टिलिटी रेट

वहीं बात अगर टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) की करें तो यह साल 2016 में 2.3 से घटकर साल 2020 में 2.0 पर आ गया. ग्रामीण इलाकों में टीएफआर 2.5 से घटकर 2.2 हो गया, जब कि शहरी इलाकों में यह 1.8 से घटकर 1.6 हो गई. यह माताओं की शिक्षा की वजह से ही संभव हो सका है. 

शिशु मृत्यु दर में भी आई कमी

रिपोर्ट के मुताबिक, शिशु मृत्यु दर (IMR)में भी कमी देखी गई है. सरकार ने एमएमआर को कम करने का लक्ष्य हासिल कर लिया है. पिछले कुछ सालों में लड़के और लड़कियों, दोनों में शिशु मृत्यु दर में कमी आई है. लड़कों की तुलना में लड़कियों की आईएमआर हमेशा ज्यादा रही है.

Latest and Breaking News on NDTV

साल 2020 में लड़के और लड़कियां,दोनों प्रति 1000 जीवितों पर 28  के स्तर पर बराबर थे. वहीं 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर के आंकड़ों से सामने आया है कि यह साल 2015 में 43 से घटकर 2020 में 32 रह गई है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com