
- बिहार के सरकारी स्कूलों में कक्षा एक से आठ तक करीब आठ लाख विद्यार्थियों को अभी तक मुफ्त किताबें नहीं मिली हैं
- पटना की तुलना में बेगूसराय और अन्य जिलों में किताबें मिलने की स्थिति और भी खराब है
- तीसरी से आठवीं कक्षा के अनेक बच्चे अपनी कक्षा की किताबें भी नहीं पढ़ पाते हैं
बिहार की राजधानी पटना के करीब सौ साल पुराने स्कूल से पढ़कर कितने विद्यार्थियों ने अपने सपने पूरे किए. आज भी क्लासरूम में पढ़ रहे यह बच्चे भी अपनी छोटी आंखों में बड़े बड़े सपने लेकर आए हैं, कोई डॉक्टर बनना चाहता है तो कोई इंजीनियर, कोई पुलिस में जाना चाहता है. छठी क्लास के मोहित पुलिस में जाना चाहते हैं, देश की सेवा करना चाहते हैं, उसके लिए मेहनत करना चाहते हैं, पढ़ना चाहते हैं लेकिन रोहित के पास पढ़ने के लिए किताबें ही नहीं हैं. सेशन शुरू होने के 4 महीने बाद भी उन्हें किताबें नहीं मिली हैं.
रोहित ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा, “दोस्तों से लेते हैं, पढ़ते हैं और लौटा देते हैं. बहुत दिक्कत है. पढ़ने में मन नहीं लगता है, कुछ मिला नहीं है तो पढ़ेंगे कैसे? समझ में कुछ नहीं आ रहा है. किताब होती तो घर पर भी बनाते. पहले हम अच्छा से पढ़ते थे, अब अच्छे से समझ में नहीं आता. हम चाहते हैं कि किताब मिल जाए”.
इसी स्कूल के रोहित किताबों के बिना 4 महीने से पढ़ रहे हैं. वे आर्मी में जाना चाहते हैं लेकिन उन्हे डर है कि किताबों के बिना उनका सपना सपना ही न रह जाए. दरअसल, बिहार के स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक स्कूली बच्चों को सरकार मुफ्त किताब उपलब्ध कराती है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 8 लाख बच्चों को अब तक किताबें नहीं मिली हैं.
पटना के मुकाबले दूसरे जिलों की तस्वीर और बदतर है. बेगूसराय के बिहट मध्य विद्यालय में 30 फीसदी बच्चों को किताबें नहीं मिली हैं. उन्हें परीक्षा में फेल होने का डर सता रहा. एक छात्र ने कहा, “दोस्तों की किताब से पढ़ लेती हूं टीचर जो बताते हैं ब्लैक बोर्ड पर उसे पढ़लेटी हूं. लेकिन घर जाने पर बहुत दिक्कत होती है. पहले होम वर्क नहीं बन पाता है मेरा और सेल्फ स्टडी नहीं हो पाती है. पढ़ेंगे नहीं तो एग्जाम में अच्छा नंबर नहीं आएगा”.
वैष्णवी और स्वस्ति जैसे लाखों बच्चे किताब का इंतजार कर रहे हैं, शिक्षा विभाग के मुताबिक 7 लाख 92 हजार विद्यार्थियों को किताबें नहीं मिली हैं लेकिन किताब न पाने वाले बच्चों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है. किताब वितरण में यह लेट लतीफी हर साल होती है. इसका असर बच्चों की पढ़ने की क्षमता पर पड़ता है. असर की रिपोर्ट भी यही बताती है.
असर की रिपोर्ट के मुताबिक
- बिहार में तीसरी क्लास के 80 % बच्चे दूसरी क्लास की किताब नहीं पढ़ पाते
- पांचवी क्लास के 58.8 % बच्चे दूसरी क्लास की किताब नहीं पढ़ पाते
- आठवीं के 28.3 % बच्चे दूसरी की किताब नहीं पढ़ पाते
बच्चों को किताबें समय पर मिले इसके लिए कई संगठनों ने विभाग को पत्र लिखा और दबाव बनाने की कोशिश की. बिहार के आरटीआई फोरम के संयोजक अनिल कुमार ने कहा, “1 अप्रैल से सेशन शुरू हुआ है और जुलाई खत्म हो रहा है अभी तक 30 फीसदी बच्चों को किताबें नहीं पहुंची हैं मतलब 30% बच्चों को अपने वंचित रखा है और अपनी कोशिश की है कि वह सार्वजनिक एजुकेशन के सिस्टम से वह बाहर चला जाए. वे या तो कोई विकल्प ढूंढ ले या ड्रॉप आउट हो जाए”.
सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि ड्रॉप आउट होने वालों में वंचित समूहों के विद्यार्थियों की संख्या ज्यादा है. आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं. शिक्षा विभाग ने विधानसभा में बताया कि 1 करोड़ 11 लाख स्टूडेंट को किताबें दी जा चुकी हैं. विद्यालयों से मिली एडिशनल डिमांड 7 लाख 92 हजार विद्यार्थियो के लिए किताबें 31 जुलाई तक भेज दी जाएंगी लेकिन विद्यालयों को पुरानी डिमांड के हिसाब से भी किताबें नहीं मिल पाई हैं.
“अभी तक हमारे स्कूल में 70 फीसदी बच्चों को किताबें उपलब्ध हुई हैं. 30 फीसदी बच्चों को किताबें नहीं मिली हैं, जबकि हमारे हमेशा से मांग रही है कि जितनी स्ट्रेंथ हमारी है, उससे दस फीसदी किताब अधिक दी जाए क्योंकि नामांकन सितंबर तक चलता है”. विभाग कह रहा है कि शुरुआती मांग के अनुसार किताबें उपलब्ध करा दी गई हैं लेकिन जमीन पर तस्वीर बिल्कुल उलट है. विभाग ने पहले 2 मई तक सभी बच्चों को किताबें उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा था लेकिन यह लक्ष्य पूरा नहीं हुआ. सितंबर के दूसरे सप्ताह में अर्द्धवार्षिक परीक्षा होनी है लेकिन बच्चे अभी भी किताबों के इंतजार में हैं.
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