- संसद के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन विपक्ष प्रदूषण और बेरोजगारी के मुद्दे पर सरकार को घेरने की तैयारी में है.
- प्रदूषण पर दीर्घकालिक नीति और नौकरियों पर पारदर्शिता की मांग को विपक्ष अपने राजनीतिक दबाव का केंद्र बना रहा है
- प्रियंका गांधी समेत विपक्ष का कहना है कि इन वास्तविक मुद्दों पर बहस लोकतंत्र की जरूरत है, न कि कोई ड्रामा.
देश के उत्तरी हिस्से में भले ही ठंड बढ़ रही है पर राजधानी दिल्ली स्थित संसद में शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन राजनीतिक तापमान बढ़ने वाला है. पहले दिन की कार्यवाही में तीखी नोकझोंक और कई व्यावधानों के बाद आज दूसरे दिन विपक्ष सरकार को प्रदूषण और बेरोजगारी जैसे दो बड़े मुद्दे पर घेरने की तैयारी में है. एक तात्कालिक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है तौ दूसरा दीर्घकालिक आर्थिक और व्यवस्थागत चुनौती और दोनों ही विपक्ष की राजनीति के केंद्र में है. विपक्ष SIR के साथ-साथ इन दो अहम मुद्दों पर सरकार की जवाबदेही तय करने की कोशिश करेगा.
प्रदूषण संकट बना विपक्ष का नया हथियार
दिल्ली-एनसीआर में लगातार ‘बहुत खराब' और ‘गंभीर' श्रेणी के एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) के बीच विपक्ष इस मुद्दे को संसद में जोरदार ढंग से उठाने के लिए तैयार है. आज विपक्षी दल इस पर बहस की मांग करेंगे. इस दौरान सरकार से प्रदूषण पर एक विस्तृत नीति, दीर्घकालिक समाधान और योजनाओं को अमलीजामा पहनाने पर स्पष्ट जवाब मांगा जाएगा. विपक्ष का आरोप है कि हर साल सर्दियों के दौरान जब प्रदूषण चरम पर पहुंचता है, तो सरकारें केवल तात्कालिक कदमों तक सीमित रह जाती हैं- जैसे निर्माण कार्य पर रोक, पराली जलाने पर कड़े नियम, या ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) के विभिन्न चरणों को लागू करना, लेकिन जमीनी तौर पर इन नियमों का पालन अधूरा रहता है.
सरकार के संभावित जवाब
निश्चित रूप से सरकार भी अपने जवाब के साथ पार्लियामेंट में हाजिर होगी. जहां उसका कहना होगा कि कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) इसकी लगातार निगरानी कर रहा है, स्मॉग गन और मॉनिटरिंग स्टेशनों की संख्या बढ़ाई गई है और कई राज्यों के साथ समन्वय करके दीर्घकालिक उपायों पर काम चल रहा है. केंद्र यह भी कह सकता है कि दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण राज्य विशेष पर आधारित समस्या है (पराली को लेकर पंजाब पर आरोप मढ़ा जाता रहा है), लिहाजा सभी सरकारों से सहयोग की अपेक्षा जताई जा सकती है.
हालांकि विपक्ष प्रदूषण की विकराल समस्या से स्वास्थ्य पर पड़ रहे असर, सांस से संबंधित रोगियों की बढ़ रही संख्या और आर्थिक नुकसान का हवाला जरूर देगा. वो लगातार स्कूलों के बंद होने, दिल्ली-एनसीआर जैसे देश के सबसे महानगरों में प्रदूषण की वजह से निर्माण कार्यों के रोके जाने से मजदूरों की उत्पादकता में कमी आने और बढ़ते स्वास्थ्य खर्चों को अपने तर्क का आधार बनाएगा. इस दौरान प्रदूषण के सबसे हॉट फ्लैशपॉइंट बनते जा रहे पंजाब और दिल्ली के सांसदों के भी सदन में बोलने की संभावना है.
'जॉब्स' राजनीतिक दबाव का सबसे बड़ा मुद्दा
प्रदूषण की बात और इससे जुड़ी चिंताएं जहां साल के तीन-चार महीनों के दौरान सबसे अधिक चर्चा में रहती हैं. वहीं बेरोजगारी ऐसा राजनीतिक मुद्दा है जो पूरे देश में पूरे साल गूंजता रहता है. पिछले कुछ सालों के दौरान इसे लेकर सड़कों पर युवा उतरे हैं. तो विपक्ष लंबे समय से बेरोजगारी, भर्ती परीक्षाओं में देरी, कॉन्ट्रैक्ट पर आधारित नौकरियों पर अपनी नाराजगी और निजी क्षेत्र में क्वालिटी रोजगार की कमी पर सरकार को घेरता रहा है.
विपक्षी दल दूसरे दिन संसद में यह सवाल उठाने की तैयारी में हैं कि आर्थिक विकास के दावों के बावजूद नौकरियों की असली स्थिति क्या है. वे सरकार से नए श्रम आंकड़े जारी करने और नई रोजगार योजनाओं पर पारदर्शिता की मांग करेंगे.
संसद के पटल पर अगर इस मुद्दे पर चर्चा हुई तो सरकार अपनी उपलब्धियों का हवाला देगी, जैसे- PM Vishwakarma योजना, PLI स्कीम से निर्माण क्षेत्र में बढ़त, स्टार्टअप से पैदा हुए रोजगार, EPFO में बढ़ती रजिस्ट्रेशन संख्या और इंफ्रास्ट्रक्चर में बढ़ा पूंजी निवेश. लेकिन विपक्ष के लिए बेरोजगारी केवल आंकड़ों का बहस नहीं बल्कि वह इसे 2026 में होने वाले राज्यों के चुनावों में एक अहम मुद्दा बनाना चाहता है ताकि युवा वोटर्स में नौकरी को लेकर असंतोष को अपने पक्ष में भुना सके.
बायकॉट नहीं, मुद्दे पर सरकार को घेरने की तैयारी
इस बार शीतकालीन सत्र में विपक्ष केवल वॉकआउट और नारेबाजी पर निर्भर नहीं रहना चाहता. न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट्स के मुताबिक पहले दिन के बाद कई दलों ने बैठकों में यह रणनीति बनाई कि वे एक साथ मिलकर और डेटा पर आधारित मुद्दे उठाएंगे. लिहाजा दूसरे दिन विपक्ष संसद में कई स्थगन प्रस्ताव ला सकता है, जिनमें प्रदूषण, नौकरियां और महंगाई जैसे मुद्दों पर तत्काल चर्चा की मांग की जा सकती है.
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने पहले दिन कहा कि दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण और युवाओं की नौकरी की चिंता जैसे वास्तविक मुद्दों पर बहस की मांग करना ड्रामा नहीं, बल्कि लोकतंत्र की जरूरत है. उन्होंने यह स्पष्ट किया कि चाहे काम हो या न हो जनता को इन मुद्दों पर जवाब चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर जनता के सवालों चर्चा करना ड्रामा है तो उन्हें चुप करा देना असली ड्रामा है.
#WATCH | Delhi | On PM Narendra Modi's statement, Congress MP Priyanka Gandhi Vadra says, "... Election situation, SIR, and pollution are huge issues. Let us discuss them. What is the Parliament for? It's not drama. Speaking about and raising issues is not drama. Drama is not… pic.twitter.com/rAunLwGXhS
— ANI (@ANI) December 1, 2025
सरकार का प्रयास होगा कि वह रक्षात्मक मुद्रा में न दिखाई दे. उसके रणनीतिकार आर्थिक विकास, बढ़ते निवेश, वैश्विक चुनौतियों के बावजूद भारत की स्थिर अर्थव्यवस्था के साथ ही वो नए इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स का हवाला देगी. प्रदूषण पर सरकार यह संदेश देगी कि यह एक जटिल मुद्दा है जिसका समाधान केंद्र और राज्यों के संयुक्त प्रयास से ही संभव है. वहीं रोजगार पर सरकार नए उद्योगों, तकनीकी विकास और निर्माण क्षेत्र में संभावनाओं पर जोर देगी. सरकार विपक्ष पर यह आरोप भी लगा सकती है कि वह देश के दीर्घकालिक विकास को नजरअंदाज करते हुए तात्कालिक समस्याओं पर राजनीति कर रहा है.
नैरेटिव सेट करने के लिए अहम दूसरा दिन
अगर विपक्ष SIR समेत प्रदूषण और नौकरियों पर बहस को आगे बढ़ाने में सफल रहा, तो सरकार को जवाब देना पड़ेगा और एक नैरेटिव सेट होगा जिस पर मीडिया का ध्यान भी टिकेगा. वहीं, सरकार अगर इसे राजनीतिक नाटक बताकर किनारे कर देती है, तो वह अपना नैरेटिव मजबूती से स्थापित कर सकती है.
कुल मिलाकर, धुंध और चिंताओं से घिरे माहौल में शुरू हो रहा शीतकालीन सत्र का दूसरा दिन एक बड़ा राजनीतिक मुकाबला बनने जा रहा है—जहां सरकार की रणनीति और विपक्ष का दबाव, दोनों की परख होगी.
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