
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम 2025 के तहत (विदेशी शिक्षा संस्थानों की अर्हताओं को मान्यता और समतुल्यता प्रदान करना) वाला विधेयक 4 अप्रैल को जारी कर दिया गया. इसके तहत अब विदेशी विश्वविद्यालयों के भारत (Foreign Universities In India) में कैंपस खोलने और डिग्री देने का रास्ता साफ़ हो गया है. इसके तहत भारत में आने वाले विदेशी विश्वविद्यालयों को अपने मूल देश में वहां के क़ानून के मुताबिक़ मान्यता प्राप्त होना जरूरी है.
विदेशी विश्वविद्यालय भारत में फ़िलहाल चिकित्सा, नर्सिंग, क़ानून और आर्किटेक्ट के क्षेत्र में डिग्री या डिप्लोमा नहीं दे सकते. उनके लिए एक समीक्षा समिति बनेगी, जो उनकी मान्यता, डिग्री और कोर्स के बारे में सभी बिन्दुओं को देखेगी फिर उनको देश में यूनिवर्सिटी स्थापित करने की इजाज़त देगी.
समिति बनेगी, कोर्स और पढ़ाई के घंटे जांचेगी
समीक्षा समिति विदेशी विश्वविद्यालयों की डिग्री को भारत के परिपेक्ष्य में समतुल्य मानने से पहले कोर्स, पढ़ाई के घंटे के आधार पर डिग्री या डिप्लोमा को लेकर क्रेडिट जारी करेगी. फ़िलहाल ब्रिटेन का साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय भारत में कैंपस खोलने की प्रक्रिया में है, जबकि ऑस्ट्रेलिया के डीकिन और वोलोंगोंग विश्वविद्यालय पहले से गुजरात के गिफ्ट सिटी में कैंपस स्थापित कर चुके हैं.
शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बताया कि भारत में क़रीब 50 विदेशी विश्वविद्यालय आने के इच्छुक हैं. इस संदर्भ में भारत सरकार का ये गजट उनके लिए नए दरवाजे खोलेगा. हालांकि विदेशी विश्वविद्यालयों के आने से भारत में ब्रेन ड्रेन कम होने की संभावना है. इसके अलावा हर साल भारत से क़रीब 4 लाख छात्र विदेश पढ़ाई के लिए जाते थे, उनमें भी कमी देखी जा सकती है. जानकारों के मुताबिक़ इससे क़रीब 3 बिलियन डॉलर के आने वाले खर्च में भी कमी आएगी.
विदेशी विश्वविद्यालयों से भारत को क्या फायदा?
हालांकि विदेशी विश्वविद्यालयों के भारत में आने को लेकर शिक्षाविदों की अलग अलग राय है. शिक्षाविद रसाल सिंह मानते हैं कि विदेशी विश्वविद्यालयों के भारत में आने से सबसे बड़ा फ़ायदा ये है कि अच्छे शिक्षक और छात्र अब विदेशों की ओर कम रुख़ करेंगे. एक अच्छी प्रतिस्पर्धा होगी और भारतीय ख़ज़ाने पर भी कम बोझ पड़ेगा.
प्रतिभा पलायन रुकेगा या बढ़ेगा बाजारीकरण?
वहीं यूजीसी के पूर्व सदस्य एमएम अंसारी कहते हैं कि हैरानी की बात यह है कि सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) कोटे के जरिए सामाजिक न्याय और कल्याण को बढ़ावा देते हुए, फीस संरचना पर कोई सीमा तय किए बिना यह फैसला लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने शैक्षणिक गतिविधियों से लाभ कमाने पर सैद्धांतिक तौर पर रोक लगा रखी है, लेकिन सवाल ये उठता है कि ये विदेशी विश्वविद्यालय भारत में शिक्षा का स्तर उठाने के लोक कल्याण की भावना से तो आएंगे नहीं. इनका मकसद लाभ कमाना होगा. तो ऐसी स्थिति में क्या भारत में शिक्षा का बाजारीकरण नहीं बढ़ेगा?
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