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बीजेपी के लिए क्यों खास है दक्षिण भारत, 2019 में 29 सीटें; अबकी बार मिलेंगी कितनी?

पीएम नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद पर रहने की हैट्रिक लगाना चाहते हैं, दक्षिण भारत के पांच राज्यों- तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के साथ दो केंद्रशासित प्रदेशों पुडुचेरी और लक्षद्वीप में कुल 131 लोकसभा सीटें हैं.

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बीजेपी के लिए क्यों खास है दक्षिण भारत, 2019 में 29 सीटें; अबकी बार मिलेंगी कितनी?
पीएम मोदी दक्षिण भारत के दौरे पर हैं.
नई दिल्ली:

यह साल चुनाव का साल है और इस साल पीएम नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद पर रहने की हैट्रिक लगाना चाहते हैं. जिस तरह दक्षिण भारत पर लगातार उनका फोकस है, उसमें सवाल है कि क्या दक्षिण भारत उन्हें जीत का नजराना देगा?

जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार भगवान के मंदिरों में जा रहे हैं तो कहा जा रहा है कि ये सारी कवायद लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर में अपने बहुमत के आंकड़े को और बढ़ाने के लिए की जा रही है. वैसे भी बीजेपी का लक्ष्य अब की बार चार सौ पार वाला है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इशारों में ही बता चुके हैं कि इस बार 2019 का भी रिकॉर्ड टूट सकता है.

बीजेपी को पिछली बार 303 सीटों की शानदार जीत मिली तो इसके पीछे पूरे उत्तर भारत का मोदीमय हो जाना था. लेकिन बगैर दक्षिण भारत जीते चार सौ सीटें कैसे होंगी? दक्षिण भारत के पांच राज्यों- तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के साथ दो केंद्रशासित प्रदेशों पुडुचेरी और लक्षद्वीप को जोड़ दें तो कुल 131 सीटें होती हैं. 

दक्षिण भारत में 5 राज्यों और 2 यूटी जोड़कर लोकसभा की 131 सीटें हैं. बीजेपी पिछली बार तमिलनाडु में शून्य पर रही जबकि जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके से इसका गठबंधन था. पीएम मोदी की कोशिश अबकी बार तमिलनाडु से खाता खोलने की है.वैसे ही केरल में भी पिछली बार बीजेपी शून्य पर ही ठहर गई थी जहां इस बार एक तो धार्मिक आस्था और दूसरे आरएसएस की पैठ के आधार पर बीजेपी अपने लिए संभावनाओं का दरवाजा खटखटा रही है.

आंध्र प्रदेश में बीजेपी शून्य है लेकिन वहां भी जगन सरकार की नाकामियों और मोदी की कामयाबियों से ही उसे उम्मीद है. लक्षद्वीप में भी पार्टी जीरो है लेकिन वहां जो बाजी खेलनी थी, प्रधानमंत्री खेल चुके हैं.

कर्नाटक में बीजेपी ने पिछली बार जरूर शानदार प्रदर्शन किया था और 28 में से 25 सीटें जीती थीं. लेकिन इस बार दिक्कत यह है कि वहां कांग्रेस शानदार तरीके से जीत चुकी है. ऐसे में बीजेपी देवेगौड़ा की जेडीएस से गठबंधन कर लिया है. पिछले दिनों ही देवेगौड़ा परिवार से पीएम मोदी की मुलाकात हुई थी.

तेलंगाना में भी विधानसभा चुनावों में बीजेपी और बीआरएस दोनों को कांग्रेस ने हरा दिया. बीआरएस को लगता है कि बीजेपी की उभार की वजह से ही उसकी नैया डूबी. तो क्या इस बार कांग्रेस से निपटने के लिए बीजेपी और बीआरएस हाथ मिला सकते हैं?

दक्षिण भारत में तमिलनाडु में बीजेपी को 2019 में एक भी सीट नहीं मिली. इस बार उसके सामने खाता खोलने की चुनौती है. केरल में भी 2019 में बीजेपी को कोई सीट नहीं मिली. यहां उसे अब धार्मिक आस्था और RSS से उम्मीद है.

आंध्रप्रदेश में भी 2019 में बीजेपी का खाता नहीं खुला था. अब जगन रेड्डी की नाकामी और पीएम मोदी की कामयाबी से उसे उम्मीद है. लक्षद्वीप में 2019 में बीजेपी असफल रही थी. पीएम मोदी इस बार के लिए दांव खेल चुके हैं.

कर्नाटक में 2019 में बीजेपी को 25 सीटें मिली थीं. लेकिन विधानसभा चुनाव जीतने से कांग्रेस मजबूत हो गई है. अब बीजेपी देवेगौड़ा से हाथ मिला सकती है. तेलंगाना में 2019 में चार सीटें मिलीं थीं. BRS को लगता है कि BJP के उभार से कांग्रेस जीती. संभव है अब बीजेपी और बीआरएस हाथ मिला लें. हालांकि प्रधानमंत्री मोदी पहले ही कह चुके हैं कि वे एनडीए में आने का बीआरएस का आग्रह ठुकरा चुके हैं.

दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा 39 सीटें तमिलनाडु में ही हैं. इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी का तमिलनाडु पर पूरा फोकस है. उसमें तमिलनाडु के विकास की दुहाई है तो गुजरात से संबंध निकालकर वे उसे भावनात्मक रूप से भी जोड़ते रहते हैं.

प्रधानमंत्री मोदी उम्मीदों के किसी भी दरवाजे को बगैर खटखटाए आगे नहीं बढ़ते. इसीलिए जिस वाराणसी से वे सांसद हैं, उसका तमिलनाडु कनेक्शन भी निकाल लिया. तमिल संगम इसकी बानगी है.

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