पठानकोट एयरबेस पर मीडिया को संबोधित करते रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर।
नई दिल्ली:
अब जबकि पठानकोट एयरबेस पर चल रहा ऑपरेशन छह आतंकवादियों के मारे जाने के बाद लगभग समाप्ति की ओर है, ऐसी बातें सामने आ रही हैं कि कमांड और कंट्रोल के मामले में इस ऑपरेशन में कई कमियां रहीं। इसके दौरान आर्मी, एयरफोर्स और एनएसजी के बीच ऑपरेशन के कंट्रोल को लेकर गतिरोध रहा, जिससे नुकसान उठाना पड़ा।
ऑपरेशन की नजदीकी से निगरानी करने वाले एक वरिष्ठ आर्मी ऑफिसर ने मुझे बताया, 'प्लानिंग की दृष्टि से यह पिछले तीन दशक से भी अधिक समय का सबसे खराब ऑपरेशन रहा।'
मुझसे बात करने वाले ऑर्मी के कम से कम दो शीर्ष अधिकारियों, जाहिर तौर पर जिनका नाम नहीं बताया जा सकता, का यह मानना था कि इस ऑपरेशन की संपूर्ण कमांड हमेशा की तरह आर्मी के पास ही रहनी चाहिए थी, क्योंकि इससे पहले ऐसा कोई भी मामला नहीं हुआ है, जिसमें किसी भी सक्रिय ऑपरेशन की कमांड आर्मी से लेकर गृह मंत्रालय के अधीन आने वाली प्रतिष्ठित पुलिस फोर्स नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स को दी गई हो। इस मामले में, पठानकोट एयरबेस पर मंडरा रहे आतंकी हमले के खतरे को देखते हुए आर्मी के दो कॉलम (लगभग 60 जवान) तैनात किए जाने के बाद कमान एनएसजी को दे दी गई। पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक ने कहा, 'आर्मी को किसी आतंकी हमले के ऑपरेशन के लिए बुलाए जाने पर उसकी कमांड आर्मी को सौंप दी जाती हैृ और फिर यह तो एयरफील्ड ऑपरेशन के डिफेंस का मामला था।'
विश्वस्त सूत्रों ने मुझे यह भी बताया कि एक आर्मी ब्रिगेडियर कमांडिंग ऑपरेशन्स और गृह मंत्रालय के आदेश पर पहुंची एनएसजी टीम के इंस्पेक्टर जनरल (ऑपरेशन्स) के बीच इसे लेकर जबर्दस्त गतिरोध रहा। यह स्थिति उस समय और पेचीदा हो गई, जब एयर ऑफिसर कमांडिंग, वेस्टर्न एयर कमांड को इस ऑपरेशन के संचालन से जुड़े महत्वपूर्ण फैसले लेने के लिए पठानकोट जाने को कहा गया। इससे नया गतिरोध पैदा हो गया, जो इस बार एयर फोर्स और एनएसजी के बीच था। इन विभिन्न एजेंसियों के बीच सहयोग और समन्वय की जबर्दस्त कमी रही।
आखिरकार, आर्मी ब्रिगेडियर, जो मेजर जनरल रैंक वाले एनएसजी के आईजी (ऑपरेशन्स) से जूनियर थे, वे पीछे हट गए। इस प्रकार एनएसजी ने बचे हुए ऑपरेशन की संपूर्ण कमांड अपने हाथ में ले ली, जबकि एयरबेस पर एयर ऑफिसर कमांडिंग, एक एयर मार्शल भी मौजूद रहे।
आर्मी के शीर्ष सूत्रों ने NDTV को यह भी बताया कि उनका इरादा इसे आर्मी विरुद्ध एनएसजी बनाने का बिल्कुल नहीं था, क्योंकि दोनों फोर्स के जवानों द्वारा आतंकवादियों के खिलाफ वास्तविक लड़ाई तो आर्मी के ही हथियारों जैसे BMP-2 आर्मर्ड पर्सनल कैरियर और कैस्पिर माइन-प्रोटेक्टेड व्हीकल से ही लड़ी जानी थी, क्योंकि ये गोलियों, रॉकेट या ग्रेनेड को डिफ्लेक्ट कर सकते हैं या उनका मजबूती से सामना कर सकते हैं। हालांकि, वे पठानकोट में मौजूद सेना की दो डिवीजन के बराबर क्षमता रखने वाले जबर्दस्त सैन्य संसाधनों से लैस आर्मी के 50, 000 जवानों के बदले इन ऑपरेशनों में एनएसजी को प्राथमिकता देने पर सवाल उठा रहे हैं। जनरल मलिक के अनुसार, 'एनएसजी को भेजने का फैसला गलत था। यह ऑपरेशन घटनास्थल से भलीभांति परिचित सैन्य बलों की डिवीजन के जवानों द्वारा ही संचालित किया जाना चाहिेए था। इससे प्रक्रिया में तेजी आ जाती।'
इसमें भी ध्यान देने वाली बात यह है कि भारतीय सेना की एक विशेष सैन्य टुकड़ी, जो आतंकवादियों से मुकाबला करने के लिए प्रशिक्षित है उसे आतंकी हमला होने से पहले ही पठानकोट में तैनात कर दिया गया था, लेकिन इस लड़ाई के दौरान वह आतंकियों के साथ कभी भी सीधे मुकाबले में नहीं रही। इसके बदले उसे बेस की 'रणनीतिक संपत्तियों' जैसे फाइटर्स, हेलीकॉप्टर्स, जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलों या राडार प्रणाली की सुरक्षा में लगा दिया गया।
आर्मी की प्रतिष्ठित 1 पैरा स्पेशल फोर्स की पूरी बटालियन (लगभग 800 जवान) जो पठानकोट से 30 मिनट से भी कम की हवाई दूरी पर नहान में मौजूद है, उसे भी जरूरत पड़ने पर शॉर्ट नोटिस पर ही तैनात किया जा सकता था।
विशेषज्ञ रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के इस बयान से भी असहमत हैं, जिसमें उन्होंने एनएसजी की तैनाती का बचाव करते हुए कहा था, 'वहां आम नागरिक भी थे। इस कैंपस में लगभग 3000 आम नागरिक रहते हैं, इसके हिसाब से एनएसजी बेहतर ढंग से प्रशिक्षित होती है।'
आर्मी के पूर्व डायरेक्टर जनरल (इन्फैंट्री), लेफ्टिनेंट जनरल शंकर प्रसाद के अनुसार, 'पठानकोट में तैनात किए गए एनएसजी के स्पेशल एक्शन ग्रुप (एसएजी) को आक्रामक प्रतिरोधों, बंधकों को छुड़ाने और एयरक्राफ्ट हाइजैक जैसी परिस्थितियों के लिए प्रशिक्षित किया गया है। उन्हें किसी भी प्रकार की संपत्ति, नागरिक या अन्य की सुरक्षा के लिहाज से प्रशिक्षित नहीं किया गया है। उनका काम किसी भी परिस्थिति को सीधे दखल से हल करना होता है।' लेफ्टिनेंट जनरल के अनुसार एनएसजी को ऐसी किसी भी परिस्थिति के लिए स्टैंडबाई स्थिति में रखा जा सकता है, लेकिन उसे ऐसे किसी भी ऑपरेशन का चार्ज नहीं दिया जा सकता, जैसा कि आर्मी कश्मीर में कई वर्षों से लगातार चला रही है।
भले ही पठानकोट में ऑपरेशन खत्म हो गया हो, लेकिन उससे जुड़े तथ्य बरकरार रहेंगे। भले ही सैकड़ों जवानों ने बेस को रक्तरंजित होने से बचा लिया, लेकिन सवाल यह है कि आतंकियों से मुकाबले के लिए पूरी तरह तैयार एयरबेस में छह आतंकी घुसपैठ करने में कैसे सफल हो गए? इतना ही नहीं उन्होंने सात भारतीय जवानों की शहादत कैसे ले ली और 20 को घायल करने में कैसे सफल हो गए?
ऑपरेशन की नजदीकी से निगरानी करने वाले एक वरिष्ठ आर्मी ऑफिसर ने मुझे बताया, 'प्लानिंग की दृष्टि से यह पिछले तीन दशक से भी अधिक समय का सबसे खराब ऑपरेशन रहा।'
मुझसे बात करने वाले ऑर्मी के कम से कम दो शीर्ष अधिकारियों, जाहिर तौर पर जिनका नाम नहीं बताया जा सकता, का यह मानना था कि इस ऑपरेशन की संपूर्ण कमांड हमेशा की तरह आर्मी के पास ही रहनी चाहिए थी, क्योंकि इससे पहले ऐसा कोई भी मामला नहीं हुआ है, जिसमें किसी भी सक्रिय ऑपरेशन की कमांड आर्मी से लेकर गृह मंत्रालय के अधीन आने वाली प्रतिष्ठित पुलिस फोर्स नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स को दी गई हो। इस मामले में, पठानकोट एयरबेस पर मंडरा रहे आतंकी हमले के खतरे को देखते हुए आर्मी के दो कॉलम (लगभग 60 जवान) तैनात किए जाने के बाद कमान एनएसजी को दे दी गई। पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक ने कहा, 'आर्मी को किसी आतंकी हमले के ऑपरेशन के लिए बुलाए जाने पर उसकी कमांड आर्मी को सौंप दी जाती हैृ और फिर यह तो एयरफील्ड ऑपरेशन के डिफेंस का मामला था।'
विश्वस्त सूत्रों ने मुझे यह भी बताया कि एक आर्मी ब्रिगेडियर कमांडिंग ऑपरेशन्स और गृह मंत्रालय के आदेश पर पहुंची एनएसजी टीम के इंस्पेक्टर जनरल (ऑपरेशन्स) के बीच इसे लेकर जबर्दस्त गतिरोध रहा। यह स्थिति उस समय और पेचीदा हो गई, जब एयर ऑफिसर कमांडिंग, वेस्टर्न एयर कमांड को इस ऑपरेशन के संचालन से जुड़े महत्वपूर्ण फैसले लेने के लिए पठानकोट जाने को कहा गया। इससे नया गतिरोध पैदा हो गया, जो इस बार एयर फोर्स और एनएसजी के बीच था। इन विभिन्न एजेंसियों के बीच सहयोग और समन्वय की जबर्दस्त कमी रही।
आखिरकार, आर्मी ब्रिगेडियर, जो मेजर जनरल रैंक वाले एनएसजी के आईजी (ऑपरेशन्स) से जूनियर थे, वे पीछे हट गए। इस प्रकार एनएसजी ने बचे हुए ऑपरेशन की संपूर्ण कमांड अपने हाथ में ले ली, जबकि एयरबेस पर एयर ऑफिसर कमांडिंग, एक एयर मार्शल भी मौजूद रहे।
आर्मी के शीर्ष सूत्रों ने NDTV को यह भी बताया कि उनका इरादा इसे आर्मी विरुद्ध एनएसजी बनाने का बिल्कुल नहीं था, क्योंकि दोनों फोर्स के जवानों द्वारा आतंकवादियों के खिलाफ वास्तविक लड़ाई तो आर्मी के ही हथियारों जैसे BMP-2 आर्मर्ड पर्सनल कैरियर और कैस्पिर माइन-प्रोटेक्टेड व्हीकल से ही लड़ी जानी थी, क्योंकि ये गोलियों, रॉकेट या ग्रेनेड को डिफ्लेक्ट कर सकते हैं या उनका मजबूती से सामना कर सकते हैं। हालांकि, वे पठानकोट में मौजूद सेना की दो डिवीजन के बराबर क्षमता रखने वाले जबर्दस्त सैन्य संसाधनों से लैस आर्मी के 50, 000 जवानों के बदले इन ऑपरेशनों में एनएसजी को प्राथमिकता देने पर सवाल उठा रहे हैं। जनरल मलिक के अनुसार, 'एनएसजी को भेजने का फैसला गलत था। यह ऑपरेशन घटनास्थल से भलीभांति परिचित सैन्य बलों की डिवीजन के जवानों द्वारा ही संचालित किया जाना चाहिेए था। इससे प्रक्रिया में तेजी आ जाती।'
इसमें भी ध्यान देने वाली बात यह है कि भारतीय सेना की एक विशेष सैन्य टुकड़ी, जो आतंकवादियों से मुकाबला करने के लिए प्रशिक्षित है उसे आतंकी हमला होने से पहले ही पठानकोट में तैनात कर दिया गया था, लेकिन इस लड़ाई के दौरान वह आतंकियों के साथ कभी भी सीधे मुकाबले में नहीं रही। इसके बदले उसे बेस की 'रणनीतिक संपत्तियों' जैसे फाइटर्स, हेलीकॉप्टर्स, जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलों या राडार प्रणाली की सुरक्षा में लगा दिया गया।
आर्मी की प्रतिष्ठित 1 पैरा स्पेशल फोर्स की पूरी बटालियन (लगभग 800 जवान) जो पठानकोट से 30 मिनट से भी कम की हवाई दूरी पर नहान में मौजूद है, उसे भी जरूरत पड़ने पर शॉर्ट नोटिस पर ही तैनात किया जा सकता था।
विशेषज्ञ रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के इस बयान से भी असहमत हैं, जिसमें उन्होंने एनएसजी की तैनाती का बचाव करते हुए कहा था, 'वहां आम नागरिक भी थे। इस कैंपस में लगभग 3000 आम नागरिक रहते हैं, इसके हिसाब से एनएसजी बेहतर ढंग से प्रशिक्षित होती है।'
आर्मी के पूर्व डायरेक्टर जनरल (इन्फैंट्री), लेफ्टिनेंट जनरल शंकर प्रसाद के अनुसार, 'पठानकोट में तैनात किए गए एनएसजी के स्पेशल एक्शन ग्रुप (एसएजी) को आक्रामक प्रतिरोधों, बंधकों को छुड़ाने और एयरक्राफ्ट हाइजैक जैसी परिस्थितियों के लिए प्रशिक्षित किया गया है। उन्हें किसी भी प्रकार की संपत्ति, नागरिक या अन्य की सुरक्षा के लिहाज से प्रशिक्षित नहीं किया गया है। उनका काम किसी भी परिस्थिति को सीधे दखल से हल करना होता है।' लेफ्टिनेंट जनरल के अनुसार एनएसजी को ऐसी किसी भी परिस्थिति के लिए स्टैंडबाई स्थिति में रखा जा सकता है, लेकिन उसे ऐसे किसी भी ऑपरेशन का चार्ज नहीं दिया जा सकता, जैसा कि आर्मी कश्मीर में कई वर्षों से लगातार चला रही है।
भले ही पठानकोट में ऑपरेशन खत्म हो गया हो, लेकिन उससे जुड़े तथ्य बरकरार रहेंगे। भले ही सैकड़ों जवानों ने बेस को रक्तरंजित होने से बचा लिया, लेकिन सवाल यह है कि आतंकियों से मुकाबले के लिए पूरी तरह तैयार एयरबेस में छह आतंकी घुसपैठ करने में कैसे सफल हो गए? इतना ही नहीं उन्होंने सात भारतीय जवानों की शहादत कैसे ले ली और 20 को घायल करने में कैसे सफल हो गए?