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"दंगों के बारे में क्यों पढ़ाया जाए?": किताबों में बाबरी मस्जिद का जिक्र हटाने पर बोले NCERT चीफ

एनसीईआरटी पाठ्यक्रम का पालन सीबीएसई से संबद्ध लगभग 30,000 स्कूल करते हैं. सन 2014 के बाद से एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में संशोधन का यह चौथा दौर है.

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"दंगों के बारे में क्यों पढ़ाया जाए?": किताबों में बाबरी मस्जिद का जिक्र हटाने पर बोले NCERT चीफ
प्रतीकात्मक तस्वीर.
नई दिल्ली:

देश की शीर्ष शिक्षा संस्था राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने हाल ही में अपनी किताबों में बदलाव किए हैं जिसको लेकर विवाद शुरू हो गया है. इस बीच एनसीईआरटी के प्रमुख ने कहा है कि घृणा और हिंसा शिक्षा के विषय नहीं हैं और स्कूली किताबों में इन पर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए. किताबों में किए गए बदलावों में बाबरी मस्जिद को ढहाने की घटना और बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व वाली राम रथ यात्रा के संदर्भों को हटाना भी शामिल है. 

एनसीईआरटी की ओर से तैयार पाठ्यक्रम का पालन केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) से संबद्ध करीब 30,000 स्कूल करते हैं.

समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए गए एक इंटरव्यू में एनसीईआरटी के डायरेक्टर दिनेश प्रसाद सकलानी (Dinesh Prasad Saklani ) ने स्कूली पाठ्यक्रम के भगवाकरण के आरोपों को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि पाठ्यपुस्तकों में बदलाव वार्षिक संशोधन का हिस्सा हैं.

यह पूछे जाने पर कि बाबरी मस्जिद विध्वंस या उसके बाद हुई सांप्रदायिक हिंसा का संदर्भ क्यों हटा दिया गया, सकलानी ने जवाब दिया कि, "हमें स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में दंगों के बारे में क्यों पढ़ाना चाहिए? हम सकारात्मक नागरिक बनाना चाहते हैं, न कि हिंसक और अवसादग्रस्त व्यक्ति."

बदलावों को लेकर व्यर्थ शोर-शराबा
उन्होंने कहा कि, "क्या हमें अपने छात्रों को इस तरह पढ़ाना चाहिए कि वे आक्रामक हो जाएं, समाज में नफरत पैदा करें या नफरत का शिकार बनें? क्या यही शिक्षा का उद्देश्य है? क्या हमें ऐसे छोटे बच्चों को दंगों के बारे में पढ़ाना चाहिए... जब वे बड़े हो जाएंगे, तो वे इसके बारे में जान सकते हैं, लेकिन स्कूली पाठ्यपुस्तकों में क्यों? उन्हें बड़े होने पर यह समझने दें कि क्या हुआ और क्यों हुआ. बदलावों के बारे में शोर-शराबा व्यर्थ है."

कक्षा 12वीं की राजनीति विज्ञान की नई पाठ्यपुस्तक में अयोध्या की बाबरी मस्जिद को "तीन गुंबद वाली संरचना" बताया गया है, जिसे 6 दिसंबर 1992 को ध्वस्त कर दिया गया था. इसमें सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का खास उल्लेख किया गया है जिसके तहत राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ.

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किताबों में नई जानकारियां शामिल कीं
उन्होंने कहा, "यदि सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर, बाबरी मस्जिद या राम जन्मभूमि के पक्ष में फैसला दिया है तो क्या इसे हमारी पाठ्यपुस्तकों में शामिल नहीं किया जाना चाहिए, इसमें क्या समस्या है? हमने नई जानकारियां शामिल की हैं. यदि हमने नई संसद का निर्माण किया है, तो क्या हमारे छात्रों को इसके बारे में नहीं जानना चाहिए? प्राचीन घटनाक्रमों और हाल के घटनाक्रमों को शामिल करना हमारा कर्तव्य है."

शिक्षा के भगवाकरण के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए सकलानी ने कहा, "अगर कोई चीज अप्रासंगिक हो गई है, तो उसे बदलना होगा. इसे क्यों नहीं बदला जाना चाहिए? मुझे यहां कोई भगवाकरण नहीं दिखता. हम इतिहास इसलिए पढ़ाते हैं ताकि छात्रों को तथ्यों के बारे में पता चले, न कि इसे युद्ध का मैदान बनाने के लिए."

भारतीय ज्ञान प्रणाली के बारे में पढ़ाना भगवाकरण कैसे?
एनसीईआरटी के प्रमुख ने सवाल उठाया कि भारतीय ज्ञान प्रणाली के बारे में पढ़ाना किस तरह भगवाकरण है. उन्होंने पूछा, "अगर हम महरौली में लौह स्तंभ के बारे में बता रहे हैं और कह रहे हैं कि भारतीय किसी भी धातु वैज्ञानिक से बहुत आगे थे, तो क्या हम गलत हैं? यह भगवाकरण कैसे हो सकता है?"

सकलानी इससे पहले हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास विभाग के प्रमुख रह चुके हैं. बाद में 2022 में उन्होंने एनसीईआरटी का कार्यभार संभाला था.

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