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This Article is From May 05, 2016

कीनन-रूबेन की तरह इन्होंने भी अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई और गवां दी जान...

कीनन-रूबेन की तरह इन्होंने भी अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई और गवां दी जान...
कीनन और रूबेन (फाइल फोटो)
गुरुवार को मुंबई की एक कोर्ट ने कीनन-रूबेन हत्याकांड में सभी चारों आरोपियों को हत्या का दोषी करार दिया है। इन चारों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई गई है। जिन्हें पूरा मामला नहीं पता उन्हें बता दें कि 20 अक्टूबर 2011 को मुंबई के अंधेरी उपनगर के अंबोली इलाके में कीनन सांटोस और रूबेन फर्नांडिज़ ने जब अपनी महिला मित्रों के साथ कुछ लोगों की बदतमीज़ी का विरोध किया तो उन पर धारदार हथियारों से हमला किया गया।

इस हमले में 25 साल के कीनन की उसी वक्त मौत हो गई, वहीं रूबेन ने 10 दिन बाद अस्पताल में दम तोड़ दिया। पांच साल बाद इस मामले पर आए फैसले के बाद कीनन के पिता वैलेरियन सांटोस ने एनडीटीवी से कहा 'एक लड़का जिसने समाज के लिए कुछ अच्छा किया, उसे न्याय मिलने में पांच साल लग गए। हमें न्याय के लिए भीख मांगनी पड़ी।'

कीनन और रूबेन की ही तरह 'समाज के लिए कुछ अच्छा' करने वालों की कुछ और मिसालें भी हैं जिन्हें ऐसा करते हुए अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। साल 2000 के बाद की बात करें तो कुछ ऐसे मामले सामने आए जिसमें व्हिसलब्लोअर की मौत ने देश भर में गुस्सा और विरोध का बिगुल बजाया। ऐसे ही दो मामले जिनका ज़िक्र अक्सर होता आया है -
 

मंजूनाथ - आईआईएम लखनऊ से पढ़ाई करने के बाद मंजूनाथ आईओसी (इंडियन ओयल कॉरर्पोरेशन) के अधिकारी के पद के लिए चुने गए थे जिनकी साल 2005 में उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। दरअसल मंजूनाथ ने पेट्रोल में मिलावट करने वाले एक गिरोह का भांडाफोड़ किया था और एक रिपोर्ट के मुताबिक़ उन्होंने पवन कुमार मित्तल के लखीमपुर खीरी स्थित पेट्रोल पंप पर तेल में मिलावट पाई थी।

बाद में जब मित्तल पेट्रोल पंप पर मिलावटी तेल का नमूना लेने के लिए मंजूनाथ जा रहे थे तभी उन्हें गोली मार दी गई। 10 साल की कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार 2015 में भारत की सुप्रीम कोर्ट ने मंजूनाथ की हत्या के मामले में छह लोगों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई जिसमें मित्तल पेट्रोल पंप के मालिक पवन मित्तल भी शामिल थे। बताया जाता है कि मंजूनाथ ने भारत की सबसे बड़ी पब्लिक सेक्टर तेल कंपनी में अपनी पहली नौकरी करने के लिए कई निजी कंपनियों के ऑफर ठुकरा दिए थे।
 

सत्येंद्र दुबे - राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ी परियोजना में दुबे बतौर सिविल इंजीनियर बिहार में काम कर रहे थे। इस दौरान दुबे ने NHAI में हो रहे भष्ट्रचार के खुलासों से जुड़ा एक पत्र तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लिखा। इसके बाद 27 नवंबर 2003 को वह एक शादी से अपने घर लौट रहे थे, तब गया सर्किट हाउस के पास उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्या ने राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं में चल रही धांधलियों का पर्दाफाश किया और इस मामले को सीबीआई के हाथों सौंप दिया गया। 2010 में सीबीआई की विशेष अदालत ने तीन अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई। हालांकि दुबे के भाई धनंजय ने फैसले को निराशाजनक बताते हुए कहा कि जिन्हें सज़ा दी जा रही है, वह दरअसल 'निर्दोष' हैं, असल दोषी तो खुलेआम घूम रहे हैं।

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