![बिहार में नीतीश कुमार से गठबंधन तोड़ने के लिए BJP के कौन नेता हैं ज़िम्मेदार...? बिहार में नीतीश कुमार से गठबंधन तोड़ने के लिए BJP के कौन नेता हैं ज़िम्मेदार...?](https://c.ndtvimg.com/lqcu9eo10ji_nitish-kumar-amit-shah_625x300.jpg?im=Resize=(1230,900))
बिहार (Bihar) में जनता दल यूनाइटेड (JDU) और भाजपा (BJP) का गठबंधन टूट चुका है. जनता दल यूनाइटेड ने खासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने इसके कई कारण गिनाये हैं. भाजपा में जैसा होता है इस बात पर बैठकों और धरना का दौर अब चल रहा है, लेकिन भाजपा के अधिकांश नेता मानते हैं कि उनके पार्टी के कम से कम आधे दर्जन नेताओं के कारण नीतीश एक बार फिर राष्ट्रीय जनता दल के साथ जाने को मजबूर हुए हैं. भाजपा में सब इन नेताओं के नाम पर खुल कर चर्चा हो रही है. ये नेता कौन हैं और इनके बारे में क्या चर्चा है इसके बारे में हम देखते हैं.
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1.भूपेन्द्र यादव : अब केंद्रीय मंत्री और बिहार के लंबे समय तक प्रभारी रहे भूपेन्द्र यादव का नाम इस सूची में सबसे ऊपर हैं, जिन्होंने इस गठबंधन को तोड़ने में अहम भूमिका निभायी है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भूपेन्द्र यादव के प्रति नाराजगी के कारण कुछ महीने पूर्व केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को नीतीश कुमार से बातचीत कर सहज करने का जिम्मा मिला, लेकिन भूपेन्द्र ने अपने एक से अधिक कई कदमों से नीतीश और गठबंधन को असहज रखा. पिछले विधानसभा चुनाव में सीटों के तालमेल से प्रचार अभियान में उनकी भूमिका नीतीश समर्थकों के अनुसार संदेहास्पद थी. फिर आरसीपी सिंह के अनुसार मिलकर जनता दल यूनाइटेड को कमजोर करने की उनकी रणनीति से भी नीतीश खफा दिखे. भूपेन्द्र बिहार में जिन-जिन नेताओं को प्रमोट करते थे वो नीतीश कुमार के प्रति काफी आक्रामक रहे.
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2. नित्यानंद राय : अब केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय जब से 2020 में बिहार में सरकार बनी इस बाद को हवा दिया कि वो मुख्यमंत्री बनने वाले हैं और नीतीश चंद दिनों के मेहमान हैं. नित्यानंद ने बिहार भाजपा में अपना गुट बनाया जो लगातार नीतीश कुमार को सरकार से सड़क तक निशाने पर रखता था और ये सब कुछ खुलेआम होता था जो नीतीश कुमार को सीधी चुनौती था. तेजस्वी यादव को अपनी ओर लाने में नित्यानंद के बढ़ते प्रभाव को नीतीश ने मुख्य आधार बनाया और हाथ मिलाकर साबित कर दिया कि राजनीति में वो अभी भी उनसे कई कदम आगे की सोचते हैं. नित्यानंद नीतीश मंत्रिमंडल में रामसूरत राय जैसे लोगों को संरक्षण देते थे, जिनकी कारगुजरियां जगजाहिर थीं और नीतीश ने तो इस बार उनके विभाग के तबादले को रद्द तक कर दिया जो बहुत ही बिरले होता है. नित्यानंद अपने आप को इतना मजबूत और महत्वपूर्ण समझते थे कि कुछ महीने पूर्व तिरंगा कार्यक्रम जो भोजपुर जिले के जगदीशपुर में आयोजित था उसके आयोजन के सिलसिले में अपने पार्टी के कई विधायकों को बेज्जत करने से भी नहीं हिचके.
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3. डॉक्टर संजय जायसवाल : अगर एक व्यक्ति जिसने नीतीश कुमार को अपने बयानों से सबसे अधिक किरकिरी की वो हैं डॉक्टर संजय जायसवाल. भले वो सहयोगी दल के अध्यक्ष हो लेकिन वो खुलेआम विपक्ष के नेता के रूप में बर्ताव करते थे. कोई मुद्दा हो वो नीतीश की आलोचना करने में सबसे आगे रहते थे. अग्निपथ के खिलाफ जब आंदोलन हुआ तो अपनी सरकार होने के बाबजूद उन्होंने चेतावनी दी. वैसे ही विकास के मुद्दों पर अपनी बातें सोशल मीडिया में रखने से परहेज नहीं करते थे, जिससे नीतीश कुमार की अखबारों और अन्य जगह एक नकारात्मक इमेज बनती जा रही थी. सरकार या गठबंधन के वो सबसे बड़े खलनायक बनकर अब सामने आ रहे हैं. और नीतीश ने वापस तेजस्वी के साथ सरकार बनायी तो उनके हर बयान और पार्टी में उठाये कदम की भूमिका सबसे अधिक कारण बना.
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4. विजय कुमार सिन्हा : बिहार विधानसभा के अध्यक्ष के रूप में विजय कुमार सिन्हा को पद तो मिला, लेकिन नीतीश कुमार का मानना था कि उन्होंने इस पद का दुरुपयोग सबसे अधिक किया. पहले सत्र से विधानसभा के आखिरी सत्र तक नीतीश कुमार उनकी सरकार के प्रति कॉमेंट को लेके असहज रहते थे. बजट सत्र में सिन्हा जैसे अपने विधानसभा क्षेत्र के कुछ अधिकारियों के तबादले को मुद्दा बनाकर सवाल करवाते थे उस पर नीतीश अपना आपा खो बैठे. फिर पिछले सत्र में सर्वश्रेठ विधायक के मुद्दे पर बहस जब उन्होंने शुरू किया तो नीतीश कुमार की पूरी पार्टी ने सदन का अलिखित बहिष्कार किया. फिर पिछले महीने जब प्रधानमंत्री विधानसभा के कार्यक्रम में आये तो ना निमंत्रण कार्ड पर नीतीश का नाम ना स्मारिका में उनका फोटो था, जो नीतीश के लिए गठबंधन तोड़ने के लिए मज़बूत आधार बना.
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5. अमित शाह : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की भी जिम्मेदारी इसलिए बनती है कि उन्होंने बिहार भाजपा में जो नये प्रयोग किये उसका खामियाजा पूरी पार्टी ने नीतीश कुमार को खोकर उठाया. जैसे उन्होंने चिराग पासवान के माध्यम से नीतीश कुमार के विधायकों की संख्या कम करने का एक नायाब तरीका खोजा, लेकिन नीतीश इससे इतने असहज हुए कि बार-बार चिराग फोरम्युला की याद सबको दिलाते हैं. दूसरा उन्होंने बिहार के क़द्दावर ज़मीन से जुड़े नेताओं जैसे सुशील मोदी, नंद किशोर यादव और प्रेम कुमार को किनारे किया और उनकी जगह तारकिशोर प्रसाद , रेणु देवी को सरकार में उप मुख्यमंत्री बनाया, जिनकी कोई विधायक नहीं सुनता था. बिहार भाजपा के हर फैसले उनके मर्ज़ी से होते थे, जिसमें काफी समय लगता था. इसके अलावा 200 विधानसभाओं में प्रवास का कार्यक्रम चला, जिससे नीतीश काफ़ी नाराज हुए. उन्होंने बिहार भाजपा में जो भी नया किया उन सबका परिणाम विपरीत आया.
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