बिहार की रूपौली विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव का नतीजा शनिवार को घोषित हुआ.वहां निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह ने आठ हजार से अधिक वोटों से जीत दर्ज की है.उन्होंने बिहार में सरकार चला रही जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के कलाधर प्रसाद मंडल को हराया.इस सीट पर राजद की बीमा भारती तीसरे स्थान पर रहीं. भारती के दलबदल की वजह से ही इस सीट पर चुनाव कराया गया.वो जेडीयू के टिकट पर तीन बार इस सीट से चुनाव जीत चुकी हैं. लेकिन इस बार उन्हें तीसरे स्थान से ही संतोष करना पड़ा.रूपौली के नतीजे बिहार की राजनीति में मजबूत दखल रखने वाले अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) में आरजेडी की पकड़ की ओर इशारा कर रहे हैं. बिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में आरजेडी के लिए यह कमजोर कड़ी साबित हो सकता है.
क्या कहते हैं रूपौली विधानसभा सीट के नतीजे
रूपौली उपचुनाव में जीते निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह राजपूत जाति के हैं.वहीं मंडल और भारती दोनों गंगोटा जाति के है. यह जाति बिहार में ईबीसी में आती है. लेकिन दोनों को हार का सामना करना पड़ा.
भारती लोकसभा चुनाव से पहले जेडीयू छोड़कर राजद में शामिल हो गई थीं.राजद ने उन्हें पूर्णिया सीट से उम्मीदवार बनाया था.लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा.लोकसभा चुनाव में भी वो तीसरे स्थान पर ही रही थीं.पूर्णिया से निर्दलीय राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने 5.67 लाख वोट लाकर जीत दर्ज की थी.वहीं बीमा भारती को केवल 27 हजार वोट मिले थे. इस चुनाव में जेडीयू के संतोष कुमार को दूसरा स्थान मिला था. रूपौली विधानसभा सीट पूर्णिया लोकसभा सीट के तहत ही आती है.
पूर्णिया में ईबीसी का दबदबा
पूर्णिया सीट को ईबीसी बहुल सीट माना जाता है.ऐसा अनुमान है कि पूर्णिया में ईबीसी मतदाताओं की आबादी 25 फीसदी से अधिक है.इस सीट पर राजपूत आबादी करीब सात फीसदी है. ऐसे में बीमा भारती की छह महीने के अंदर में दो चुनावों में मिली हार इस बात सबूत है कि आरजेडी की ईबीसी में पकड़ नहीं है. वहीं यह परिणाम नीतीश कुमार की जेडीयू की ईबीसी में पकड़ की ओर भी इशारा करता है. इसलिए जेडीयू के नेता रूपौली में मिली आरजेडी की हार को अपनी जीत के रूप में देख रहे हैं.
रूपौली के उपचुनाव में पप्पू यादव का समर्थन बीमा भारती को मिला था, लेकिन उनका आशीर्वाद भी उनके काम नहीं आया.दरअसल पप्पू का आरजेडी नेतृ्त्व से संबंध अच्छे नहीं हैं. वो आरजेडी नेतृत्व के मुखर विरोधी रहे हैं. यही वजह है कि पप्पू के कांग्रेस में जाने के बाद भी आरजेडी ने पूर्णिया से अपना उम्मीदवार उतार दिया था.हालांकि इसके बाद भी आरजेडी पप्पू को जीतने से नहीं रोक पाई थी.
बिहार की राजनीति में ईबीसी
बिहार सरकार की ओर से पिछले साल अक्तूबर में जारी जातिय सर्वे के आंकड़े के मुताबिक राज्य में अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की आबादी 36.01 फीसदी और अति पिछड़ा वर्ग की आबादी 27.12 फीसदी है. यह बिहार का सबसे बड़ा जातिय समूह है.इसमें 113 जातियां शामिल हैं. इनमें मल्लाह, कानू, चंद्रवंशी (कहार), धानुक, नोनिया, नाई और मल्लाह जैसी जातियां शामिल हैं. ये जातियां केवल सामाजिक और आर्थिक रूप से ही नहीं बल्कि राजनीतिक रूप से भी पिछड़ी हुई हैं.बिहार के मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर की जाति नाई भी ईबीसी में ही आती है.जातिय सर्वेक्षण के आंकड़े सामने आने के बाद ही बीजेपी की केंद्र सरकार ने ठाकुर को देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान'भारत रत्न' से सम्मानित किया था. कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर को नीतीश कुमार ने अपने कोटे से केंद्र सरकार में मंत्री बनवाया है.
ईबीसी में आरजेडी की पकड़
बिहार का सबसे बड़ा जातिय समूह होने के बाद भी आरजेडी ईबीसी को अपनी ओर करने की कोशिश करती नहीं दिखती है. बीते लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने ईबीसी को केवल दो सीटों पर टिकट दिया था. दोनों को हार का सामना करना पड़ा था. वहीं चार फीसदी से थोड़ी अधिक की आबादी वाले कुशवाहा को उसने तीन सीटों पर उम्मीदवार बनाया था. उसे उम्मीद थी कि 14 फीसदी यादव और करीब 18 फीसदी मुसलमान वोट उसके लिए जीत की सीढ़ी तैयार कर देंगे.लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इसका परिणाम यह हुआ कि आरजेडी केवल चार सीट ही जीत पाई. इसका मतलब यह हुआ कि ईबीसी ने आरजेडी को तरजीह नहीं दी.
बिहार में यादव और मुसलमान को आरजेडी का कोर वोटर माना जाता है. ईबीसी को अपनी ओर करने के लिए आरजेडी ने मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को अपनी ओर मिलाया था और उसे लड़ने के लिए तीन सीटें दी थीं.लेकिन उन्हें तीनों सीटों मोतिहारी, झंझारपुर और गोपालगंज से हार का सामना करना पड़ा था.सहनी निषाद या मल्लाह जाति में आधार होने का दावा करते हैं, जिसकी बिहार में आबादी 2.6 फीसदी है. लोकसभा चुनाव के नजीते बताते हैं कि ईबीसी में पैठ बनाने की आरजेडी की कोई भी कोशिश कामयाब नहीं हुई है. इसी बात की तस्दीक रूपौली उपचुनाव के नतीजे करते हैं.
लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी-जेडीयू-एलजेपी और हम के गठबंधन एनडीए ने बड़ी जीत दर्ज की थी. राज्य की 40 में से 30 सीटें जीती थीं. इनमें से 12-12 सीटें बीजेपी और जेडीयू ने जीती थीं. वहीं पांच सीटें एलजेपी (रामविलास) और एक सीट जीकनराम मांझी की हम को मिली थी. वहीं विपक्षी इंडिया गठबंधन को नौ सीटें मिली थीं. इनमें से चार सीटें आरजेडी, तीन सीटें कांग्रेस और सीपीआई (एमएल) ने दो सीटों पर जीत दर्ज की थी.
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