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This Article is From Sep 28, 2022

क्या है PFI ? जिस पर सरकार ने लगाया पांच साल का प्रतिबंध, गिनाए कई आरोप

द पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) की एक शाखा है. सरकार ने सिमी को साल 2001 में प्रतिबंधित कर दिया था.

क्या है PFI ?  जिस पर सरकार ने लगाया पांच साल का प्रतिबंध, गिनाए कई आरोप
द पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया क्या है, जिस पर सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया है.
नई दिल्ली:

द पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) की एक शाखा है. सरकार ने सिमी को साल 2001 में प्रतिबंधित कर दिया था. पीएफआई को दक्षिण के तीन संगठनों को मिलाकर बनाया गया था. फरवरी 2009 में कोझिकोड में एक बैठक के दौरान तीन घटक राष्ट्रीय विकास मोर्चा (एनडीएफ) केरल, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी (केएफडी) कर्नाटक, और मनीथा नीथी पासराय (एमएनपी) तमिलनाडु का विलय कर पीएफआई का गठन किया गया. पीएफआई को लेकर ईडी और एनआईए ने एक रिमांड नोट जारी किया है, जिसके अनुसार हम आपको बता रहे हैं कि पीएफआई क्या है इस पर क्या आरोप हैं. 

देश के 16 राज्यों में सक्रिय है PFI 
आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, दिल्ली, गोवा, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में पीएफआई संगठन सक्रिय है.

झारखंड सरकार ने 2019 में किया था बैन
12 फरवरी, 2019 को झारखंड सरकार ने आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 1908 की धारा 16 के तहत पीएफआई को एक गैरकानूनी संगठन घोषित किया था.

पीएफआई ने अपनी स्थापना के बाद से सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई), नेशनल वीमेन फ्रंट (एनडब्ल्यूएफ), ऑल इंडिया इमाम काउंसिल (एआईआईसी), नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन( एनसीएचआरओ), रिहैब इंडिया फाउंडेशन (आरआईएफ) जैसे निकायों का गठन किया.

सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) :  यह राजनीतिक ताकत हासिल करने के लिए मुसलमानों और अन्य पिछड़े वर्गों के वोट बैंक को जुटाने के उद्देश्य से 29 जुलाई, 2009 को शुरू की गई पीएफआई की राजनीतिक शाखा है. SDPI को 12 अप्रैल, 2011 को भारत के चुनाव आयोग में एक राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत किया गया है.

कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई): यह 30 अगस्त, 2005 को एनडीएफ द्वारा शुरू की गई पीएफआई की छात्र शाखा है और बाबरी मस्जिद विध्वंस, इजरायली आक्रमण, फिलीस्तीन, ईशनिंदा,संघ परिवार,फासीवाद विरोध जैसे मुद्दों पर कॉलेज परिसरों में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करता रहा है. सीएफआई कैडर के लोग महाराजा कॉलेज, एर्नाकुलम, केरल के परिसर में एक छात्र अभिमन्यु (एसएफआई कार्यकर्ता) की हत्या में शामिल थे।ये हत्या 2 जुलाई 2018 को हुई थी.

पीएफआई पर पर क्या हैं आरोप
पीएफआई पर नये युवाओं को संगठन में भर्ती कर कट्टरपंथी विचारधारा को विकसित करने का आरोप है. संगठन पर अपनी हिंसक जरूरतों को पूरा करने के लिए एक मजबूत और जीवंत कैडर बल बनाए रखने के लिए एक बहु-स्तरीय प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित किया है. भर्ती के बाद, युवाओं को बाबरी मस्जिद विध्वंस, गुजरात और देश के अन्य हिस्सों में सांप्रदायिक दंगों जैसे भावनात्मक मुद्दों पर चुनिंदा वीडियो क्लिपिंग दिखाए, इसके लिए क्लास ली गई, जिसका उद्देश्य  'मुस्लिम उत्पीड़न' को लेकर राज्यों और समुदायों में अविश्वास की भावना पैदा करना है. 

  • साल 2010 जुलाइ में एक शिक्षक टीजे जोसेफ के हाथ काटने का आरोप पीएफआई के सदस्यों पर लगा था.
  • फरवरी 2019 - धर्मांतरण गतिविधियों के बारे में कुछ मुसलमानों के साथ बहस के बाद पीएमके के एक सदस्य रामलिंगम की हत्या. रामलिंगम की एक साजिश के तहत हत्या कर दी गई थी, जब उन्होंने पीएफआई की टीम की अगुवाई में धर्मांतरण में हस्तक्षेप करने की कोशिश की थी.
  • जनवरी 2020 - पीएफआई को सीएए विरोधी प्रदर्शनों के फंडिंग में शामिल पाया गया.
  • फरवरी 2020- पीएफआई ने सीएए विरोध के दौरान उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों में अहम भूमिका निभाई।
  • अगस्त 2020- एसडीपीआई ने एक भड़काऊ फेसबुक पोस्ट के खिलाफ बेंगलुरु दंगों में अहम भूमिका निभाई।
  • सितंबर 2021 - पीएफआई को असम के दरांग जिले में उग्रवादियों खिलाफ पुलिस बेदखली अभियान के दौरान हिंसा भड़काने में शामिल पाया गया.
  • जनवरी 2022- CFI ने 4 मुस्लिम छात्रों को उडुपी जिले, कर्नाटक में हिजाब विवाद के लिए उकसाया.
  • जुलाई 2022 - निजामाबाद में यूएपीए के तहत चार पीएफआई सदस्यों पर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के लिए मामला दर्ज किया गया.
  • पीएफआई अपनी वित्तीय आवश्यकताओं के लिए खाड़ी में फैले प्रवासी मुस्लिम समुदाय पर बहुत अधिक निर्भर होने के लिए जाना जाता है. 


खाड़ी देशों से फंड हासिल करने का आरोप
कई हवाला चैनलों का उपयोग खाड़ी देशों से फंड हासिल करने के लिए किया जाता है और हवाला चैनलों के माध्यम से फंड ज्यादातर कर्नाटक और केरल में आया है. पीएफआई एफसीआरए पंजीकृत नहीं है. फंड जुटाने की पीएफआई की दावा की गई क्षमता और कई अखिल भारतीय/राज्य स्तरीय अभियानों/सेमिनारों और सामुदायिक सेवा कार्यक्रमों के बीच एक स्पष्ट बेमेल है. जिसे संगठन अपनी स्थापना के बाद से आयोजित करने में कामयाब रहा है.

पीएफआई से जुड़े कई पीएफआई समर्थित संगठन हैं
रिहैब इंडिया फाउंडेशन : PFI की चैरिटी विंग को सऊदी अरब से फंड मिला है. साथ ही पीएफआई के मुखपत्र 'थेजस' को सऊदी अरब स्थित केरल के मुस्लिम प्रवासियों से कई मुस्लिम व्यापारिक प्रतिष्ठानों से फंड प्राप्त होता था. पीएफआई/एसडीपीआई के कई वरिष्ठ नेता थिंक टैंक और गैर सरकारी संगठनों से मिलने के लिए तुर्की की यात्रा कर रहे हैं जो संभवतः अवैध गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं. हाल ही में, PFI/SDPI के वरिष्ठ नेताओं ने IHH से मिलने के लिए JEIH के वरिष्ठ नेताओं के साथ तुर्की की यात्रा की, जिसके बारे में माना जाता है कि वह सीरिया में टेरर-फंडिंग में शामिल है.

पीएफआई द्वारा अपने कैडरों के निरंतर कट्टरपंथीकरण के परिणामस्वरूप केरल के इसके कई कैडर 2016 के बाद से अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों, मुख्य रूप से इस्लामिक स्टेट की ओर आकर्षित हो रहे हैं. अबू ताहिर पलक्कड़ केरल का रहने वाला एक पीएफआई का समर्थक जो थेजस का कर्मचारी (पीएफआई के मुखपत्र) था, सीरिया में जबाहत अल नुसरा में शामिल होने वाला पहला शख्स था. उसके बाद एसडीपीआई फेसबुक पेज 'एसडीपीआई केरलम' के संस्थापक व्यवस्थापकों में से एक सजीर अब्दुल्ला अफगानिस्तान में आईएस के साथ चला गया. कुख्यात 'अंसार उल खलीफा, केरल के इस आईएस मॉड्यूल में पीएफआई कैडर के (मंजीद @ उमर अल हिंदी और सफवान जो थेजस का एक कर्मचारी था) इसके प्रमुख सदस्य थे.

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