परिसीमन आयोग ने जम्मू-कश्मीर के परिसीमन पर रिपोर्ट जारी की है.
बीते दिन जम्मू-कश्मीर के परिसीमन को लेकर परिसीमन आयोग की रिपोर्ट आई है. आयोग ने राज्य की विधानसभा सीटों को लेकर फेरबदल किया है. इसी बहाने हम यहां परिसीमन का अर्थ और मायने समझने की कोशिश कर रहे हैं. परिसीमन या Delimitation का सरल शब्दों में मतलब समझा जाए तो किसी भी राज्य के निर्वाचन क्षेत्र की सीमा तय करने को परिसीमन कहते हैं. विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र की सीमाओं के निर्धारण या पुनर्निर्धारण को ही परिसीमन कहा जाता है. ये किसी राज्य, केंद्र शासित प्रदेश या राष्ट्रीय स्तर पर जनसांख्यिकीय परिवर्तनों को दर्शाने के लिए किया जाता है. किसी भी इलाके के क्षेत्रफल, इलाके की आबादी, भौगोलिक व राजनीतिक स्थिति और वहां की संचार सुविधाओं के आधार पर परिसीमा का निर्धारण किया जाता है. ये काम परिसीमन आयोग करता है. चलिए जानते हैं परिसीमन आयोग क्या है, और यह आयोग किस तरह काम करता है.
क्या है परिसीमन आयोग?
परिसीमन आयोग को भारतीय सीमा आयोग के नाम से भी जाना जाता है. ये लेजिस्लेटिव बैकअप के साथ स्थापित एक पैनल है और इसे अपने कामकाज में सरकार और राजनीतिक दलों से स्वतंत्रता मिली हुई है. सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज परिसीमन आयोग के प्रमुख होते हैं, जो भारत के चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोगों से अपने सदस्यों को लेते हैं. नेशनल लेवल पर अब तक चार परिसीमन आयोगों का गठन निर्वाचन क्षेत्रों की नई सीमाओं को चित्रित करने और निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या का सुझाव देने के लिए किया गया है.
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परिसीमन आयोग का गठन
परिसीमन अधिनियम के अन्तर्गत भारत सरकार की तरफ से परिसीमन आयोग को स्थापित किया गया है. जब इस आयोग का गठन किया जाता है तो इसके लिए भारत के राष्ट्रपति की ओर से अधिसूचना जारी होती है. सबसे पहले 1952 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था. इसके बाद 1962, 1972 और 2002 में परिसीमन आयोग का गठन हुआ है. कुल मिलाकर अब तक 4 बार परिसीमन आयोग का गठन किया जा चुका है.
परिसीमन आयोग कैसे करता है काम
परिसीमन आयोग जनगणना के आधार पर देश के सभी विधानसभा और लोकसभा के निर्वाचन क्षेत्रों की फिर से सीमाएं निर्धारित करता है. सीमाओं के पुनर्निर्माण के दौरान राज्य में प्रतिनिधित्व को स्थिर रखने का काम परिसीमन आयोग करता है. हालांकि आयोग चुनाव क्षेत्र की सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं कर सकता. इसके अलावा परिसीमन आयोग सिर्फ गणना के आधार पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सीटों की संख्या आरक्षित करता है.
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कितने सालों में होता है परिसीमन
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 82 में परिसीमन का उल्लेख किया गया है जो इस आयोग को काम करने की शक्ति देता है. 10 साल में एक बार जब भी देश की जनगणना होती है तो उसके बाद परिसीमन किया जाता है. हालांकि साल 1981 और 1991 की जनगणना के बाद परिसीमन नहीं किया गया. 2002 में 84वें संविधान संशोधन के साथ इस प्रतिबंध को वर्ष 2026 तक के लिये बढ़ा दिया गया.परिसीमन की प्रक्रिया को प्रतिबंधित करने के पीछे सरकार का तर्क यह था कि वर्ष 2026 तक सभी राज्यों में जनसंख्या वृद्धि का औसत समान हो जाएगा. लोकसभा का 1971 में और राज्य की विधानसभाओं का 2001 में जनसंख्या के आधार पर परिसीमन किया गया. 1952 में परिसीमन होने के बाद 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन किया गया. अब अगली परिसीमन की प्रक्रिया की बात की जाए तो 2026 में सभी राज्यों में परिसीमन की प्रक्रिया होगी.
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