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42 साल तक जिंदा लाश बनकर रही... जानिए क्या है अरुणा शानबाग केस? कोलकाता रेप और हत्या मामले पर क्यों हो रही चर्चा

मुंबई के अस्पताल में करीब 51 साल पहले नर्स के साथ ऐसा क्या हुआ था, जो कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर (Kolkata Rape And Murder Case) के साथ हुई हैवानियत के बाद फिर से चर्चा में है. जानिए पूरी कहानी.

42 साल तक जिंदा लाश बनकर रही... जानिए क्या है अरुणा शानबाग केस? कोलकाता रेप और हत्या मामले पर क्यों हो रही चर्चा
मुंबई के अरुणा शानबाग रेप केस के बारे में जानिए.
दिल्ली:

कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में 8-9 अगस्त की रात ट्रेनी डॉक्टर के साथ जो भी हैवानियत हुई, उसने एक बार फिर से 27 नवंबर 1973 की उस वारदात को फिर से सभी के जहन में जिंदा कर दिया, जिससे पूरा देश कांप उठा था. कोलकाता की बेटी के साथ अस्पताल के भीतर जो भी दरिंदगी (Kolkata Rape And Murder Case) हुई वैसा ही करीब 51 साल पहले मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल में भी हुआ था. फर्क बस इतना है कि अभी निशाने पर एक डॉक्टर रही, जिसकी मौत हो गई. तब दरिंदगी का शिकार एक नर्स हुई थी, जो मरी तो नहीं लेकिन 42 साल तक जिंदा लाश बनकर रही. सुप्रीम कोर्ट ने भी महिला डॉक्टर्स की सुरक्षा की चिंता जताते हुए अरुणा शानबाग केस (Aruna Shanbag Case) का उदाहरण दिया. आखिर ये केस है क्या, जानिए.

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क्या है अरुणा शानबाग केस?

ये कहानी है अरुणा शानबाग नाम की उस नर्स की, जिसके साथ अस्पताल के भीतर सोहनलाल बाल्मीकि नाम के एक वॉर्डबॉय ने न सिर्फ रेप किया था बल्कि हैवानियत की वो हद पार की, जिसकी वजह से अरुणा जिंदा तो रही, लेकिन एक लाश की तरह. रेप के बाद पकड़े जाने के डर से वॉर्डबॉय ने कुत्ते की चेन से नर्स का गला घोंट दिया था. उसको लगा कि उसकी कहानी उसी पल त्म हो गई, अब सच किसी के सामने नहीं आएगा. लेकिन वह तो जिंदा थी. इसे बदकिस्मत कहा जाए तो गलत नहीं होगा क्यों कि न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक तौर पर भी इतनी दरिंदगी और दर्द झेलने के बाद भी नर्स अरुणा बच तो गई लेकिन वह कोमा में चली गई. 42 साल तक वह एक जिंदा लाश बनी रही. 

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अरुणा को इच्छामृत्यु क्यों नहीं मिली?

अरुणा के लिए इच्छामृत्यु की गुहार लेकर न जाने कितने लोग अदालत तक पहुंचे. लेकिन कोर्ट ने उसे इच्छामृत्यु देने से इनकार कर दिया. साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रेप पीड़िता को इस बात की इजाजत नहीं दी जा सकती, उसे जीना होगा. अपना फैसला सुनाने से पहले कोर्ट ने अरुणा का मेडिकल चेकअप भी करवाया था. जिसके बाद कोर्ट ने दलील दी कि वह खुद क्या चाहती है ये तो पता लगाना मुश्किल है लेकिन स्टाफ के साथ उसका व्यवहार बताता है कि वह जीना चाहती है. उनको जीवन से अब भी लगाव है. 42 साल तक मानसिक और शारीरिक तौर पर वह दर्द झेलने के बाद में 2015 में आखिरकार वह उसी जगह चली गईं, जिसकी गुहार अदालत से उनके लिए लगाई जा रही थी. 

नर्स अरुणा के साथ क्या हुआ था?

मुंबई के अस्पताल में करीब 51 साल पहले कोलकाता की डॉक्टर की तरह ही हैवानियत का शिकार होने वाली नर्स अरुणा की अस्पताल के ही एक डॉक्टर से शादी होने वाली थी. लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था. शादी से महज 1 महीना पहले अरुणा शानबाग के साथ वो हो गया, जिसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी. उनके साथ न सिर्फ रेप हुआ, बल्कि कुत्ते की चेन से गला घोंटकर उनको मारने की भी पूरी कोशिश की गई. लेकिन उनको मौत तक नसीब नहीं हो पाई. 

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आरोपी वॉर्डबॉय को हुई सिर्फ 7 साल की सजा

मुंबई रेप मामले में हैरान करने वाली बात ये रही कि नर्स के साथ हैवानियत करने वाले को सिर्फ 7 साल की ही सजा काटनी पड़ी. साल 1980 में वह जेल से बाहर निकल आया और नाम और पहचान बदलकर दूसरे अस्पताल में फिर से नौकरी करने लगा. हालांकि आरोपी सोहनलाल ने एक इंटरव्यू में अपने किए पर पछतावा जाहिर करते कहा था कि नर्स अरुणा के साथ उसने जो भी किया, उसका उसे बहुत पछतावा है. वह भगवान से भी इसकी माफबी मांगता है. उसकी एक बेटी थी, जो मर गई. उसे गलत किया तो इसकी सजा ईश्वर ने उसे दे दी. 

कोलकाता की डॉक्टर के साथ क्या हुआ?

बात अगर कोलकाता की करें तो ट्रेनी डॉक्टर के साथ संजय रॉय नाम के एक शख्स ने न सिर्फ रेप किया बल्कि उसकी निर्ममता से हत्या कर दी. इस घटना के बाद से पूरे देश में उबाल है. डॉक्टर सुरक्षा की मांग कर रहे हैं. इस घटना ने एक बार फिर से मुंबई की नर्स अरुणा शानबाग के साथ 51 साल पहले हुई उस हैवानियत की यादें फिर से ताजा कर दी हैं. लोग कोलकाता की बेटी के गुनहगार के लिए फांसी की सजा की मांग कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट भी मामले में बहुत ही सख्त है. मामले पर सुनवाई के दौरान CJI ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि मेडिकल प्रोफेशनल को कई तरह की हिंसा का सामना करना पड़ता है. 

SC को क्यों याद आया अरुणा शानबाग केस?

सीजेआई ने कहा कि वे चौबीसों घंटे काम करते हैं. काम की परिस्थितियों ने उन्हें हिंसा के प्रति संवेदनशील बना दिया है. मई 2024 में पश्चिम बंगाल में ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टरों पर हमला किया गया, जिनकी बाद में मौत हो गई. बिहार में एक नर्स को मरीज के परिजनों ने धक्का दिया. हैदराबाद में एक और डॉक्टर पर हमला हुआ. यह डॉक्टरों की कार्य स्थितियों के लिए एक बड़ी विफलता और व्यवस्थागत विफलता का संकेत है. पितृसत्तात्मक पूर्वाग्रहों की वजह से मरीजों के रिश्तेदारों द्वारा महिला डॉक्टरों पर हमला करने की संभावना अधिक होती है. यौन हिंसा के प्रति भी वह अधिक संवेदनशील होती हैं. उन्होंने इसके लिए अरुणा शानबाग केस का उदाहरण दिया. 

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