योगेंद्र यादव ने कृषि कानून के विरोध में जंतर-मंतर पर धरने की इजाजत की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार पर एनडीटीवी से विशेष बातचीत की. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की हर बात सर माथे में है, लेकिन 2-4 बात स्पष्ट करना चाहता हूं. जो संगठन आज सुप्रीम कोर्ट में गया, जिसके नेता रामपाल जाट जी हैं, इस संगठन का संयुक्त किसान मोर्चा से कोई संबंध नहीं है. ये पहले भी सुप्रीम कोर्ट की कमेटी के पास जा चुके हैं, हमने स्पष्ट किया था कि ये इनका व्यक्तिगत मामला है. ये जंतर-मंतर जाएं, जो कुछ सुप्रीम कोर्ट कहना चाहे कहे, उसका हमारे पर कोई असर नहीं है.
साथ ही उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है आप पहले सुप्रीम कोर्ट जाते हैं न्याय मांगने के लिए, फिर आप सड़क पर हंगामा करते हैं. संयुक्त किसान मोर्चा या इसका कोई भी संगठन सुप्रीम कोर्ट के पास नहीं गया. ये किसानों और नेताओं के बीच का मामला है, हम इसमें न्यायपालिका को नहीं घसाटना चाहते. सुप्रीम कोर्ट की कमेटी से भी हमारा कोई लेना देना नहीं है. आज सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हम मामले की सुनवाई कर रहे हैं और आप में धीरज नहीं है. हमने मुकदमा नहीं किया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कितनी हेयरिंग की है. इस देश के पूर्व एमपी ने सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा किया था कि ये तीनों कानून असंवैधानिक हैं, इसमें सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 12 महीने में एक मिनट भी अपना नहीं दिया है.
यादव ने इसके साथ ही कहा, गाजियाबाद में भी, सिंघू बॉर्डर पर भी, टीकरी में भी जाम है, लोग परेशान हो रहे हैं और ये बहुत दुख की बात है लेकिन सवाल ये है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है? आप बॉर्डर पर जाकर देख लीजिए कि क्या किसानों ने बॉर्डर बंद किया है या पुलिस ने? ये सवाल मैंने नहीं जस्टिस बोबडे ने किया है. सिंघू बॉर्डर पर आकर देखिए एक नहीं तीन-तीन बैरीकेड्स हैं, खुदाई की हुई है, कीलें लगाई हैं, क्या ये किसानों ने किया है? हम मांग करते हैं कि पुलिस बैरीकेड्स खोल दे, क्यों नहीं पुलिस बैरीकेड्स खोल देती. सिंघू बॉर्डर पर दोनों तरफ नेशनल हाईवे हैं, दोनों तरफ सड़क खुली हुई है, लेकिन समस्या ये है कि वो सड़क टूटी हुई है, वहां केवल ट्रैक्टर ही चल सकते हैं, क्या इसके लिए भी किसान जिम्मेदार हैं? क्यों नहीं हरियाणा सरकार सड़क रिपेयर करवाती, वो सड़क दिल्ली में खुलनी चाहिए, वहां पुलिस ने क्यों बैरीकेड लगवाए हुए हैं? दिल्ली पुलिस कह रही है कि किसानों ने रास्ता रोका है, यदि दिल्ली पुलिस बैरीकेड्स खोल दे तो हमें कोई एतराज नहीं है.
उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि, यह किसान आंदोलन ना किसी व्यक्ति के सहारे खड़ा है ना किसी एक व्यक्ति के खिलाफ. हम बस तीन कानूनों को रद्द करवाना चाहते हैं, एमएसपी की गारंटी चाहते हैं. वो हमें चाहे, नरेंद्र मोदी दे दें, अमिल शाह दे दें, नरेंद्र तोमर दे दें. हमें इससे कोई मतलब नहीं है. इन काले कानूनों की वापसी के बारे में कोई समझौता नहीं है. आंदोलन को लंबा खींचने की हमारी कोई नियत नहीं है, कल सरकार बात मान ले तो तीन दिन के अंदर अपने तंबू उखाड़कर चले जाएंगे. आंदोलन खीचने का फैसला सरकार कर रही है, मोदी जी जितना लंबा खीचेंगे ये उतना उनके लिए महंगा सौदा होगा. हमारी तरफ से इसे उत्तर प्रदेश चुनाव तक खीचना या 2024 तक खीचने की कोई मंशा नहीं है.
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