सुप्रीम कोर्ट ने उस जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें योगाभ्यास को देश के सभी स्कूलों में कक्षा एक से आठवीं तक के छात्रों को आवश्यक रूप से करवाने का आदेश देने का आग्रह किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम किसी पर योग जबरन लागू नहीं करा सकते. यह सरकार और संबंधित पक्षों का काम है कि वह पाठ्यक्रम में योग लागू करे या नहीं. CJI टीएस ठाकुर ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि ऐसे प्रदूषण में कोई योग कर सकता है? याचिकाकर्ता लोगों को जाकर योग करने को प्रोत्साहित करें. चाहे तो पहले से चल रहे एक मामले में हस्तक्षेप कर सकते हैं.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया था कि स्वास्थ्य के अधिकार को योग और स्वास्थ्य शिक्षा के बिना सुनिश्चत नहीं किया जा सकता. याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 21 (जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता का अधिकार) को अनुच्छेद 39 ई, एफ और 47 के साथ पढ़ा जाना चाहिए, जिसमें राज्यों का यह कर्तव्य बताया गया है कि वे नागरिकों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए उचित कदम उठाएं.
साथ ही इस बारे में आवश्यक सूचनाएं, निर्देश और प्रशिक्षण उपलब्ध करवाएं. याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क, 2005 कहता है कि योग प्राथमिक शिक्षा का आवश्यक विषय है. इसे अन्य विषयों के साथ बराबरी का दर्जा देने की जरूरत है.
देश में 20 करोड़ बच्चे प्राइमरी तथा जूनियर स्तर पर सरकारी खर्च पर पढ़ रहे हैं. इन बच्चों को योग एक आवश्यक विषय के रूप में पढ़ाना चाहिए. योग को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क, 2005 तथा शिक्षा के अधिकार कानून 2009 की धारा 7(6) के तहत अधिसूचित करना चाहिए.
याचिका में कहा गया है कि मानव संसाधन मंत्रालय, एनसीआरटी, एनसीटीई और सीबीएसई को निर्देश दिया जाए कि वे एक से लेकर 8वीं के छात्रों के लिए योगाभ्यास और स्वास्थ्यशिक्षा की एक मानक पुस्तक तैयार करें.
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