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अभी विराट का विदागान न लिखिए

प्रियदर्शन
  • देश,
  • Updated:
    अक्टूबर 23, 2025 21:56 pm IST
    • Published On अक्टूबर 23, 2025 21:55 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 23, 2025 21:56 pm IST
अभी विराट का विदागान न लिखिए

प्रियदर्शन

हमारे समय में स्मृति सबसे तेज़ी से उड़ जाने वाली चीज़ है- भाप की तरह. ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर लगातार दो मैचों में विराट कोहली शून्य पर क्या आउट हुए, क्रिकेट प्रेमियों और जानकारों में उनका विदागान लिखने की होड़ लग गई. लेकिन जिन्होंने इस पूरी सदी में विराट कोहली को खेलते, संघर्ष करते, गिरते और खड़ा होते देखा है, वे यह मानने की भूल नहीं कर सकते कि विराट का युग बीत चुका है. ज़्यादा समय नहीं बीता है, इसी साल चैंपियन्स ट्रॉफ़ी में उन्होंने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ नाबाद शतक लगाया था और मैन ऑफ द मैच बने थे. उसके बाद ऑस्ट्रेलिया जैसी टीम के ख़िलाफ़ उनके ही 84 नाबाद रन थे, जिन्होंने टीम को जीत दिलाई और फाइनल तक पहुंचाया.

महज तीन मैचों की नाकामी पर विराट को ख़ारिज कर देना दरअसल एक महान खिलाड़ी के साथ ही नहीं, अपने विवेक के साथ भी अन्याय है और अपनी स्मृति के साथ भी. यह सच है कि विराट में पहले वाली रनों की भूख अब नहीं दिखती, शायद उनकी चपलता पर भी फ़र्क पड़ा है, लेकिन वे अब भी ज़रूरत पड़ने पर लंगर डाल सकते हैं और ज़रूरत पड़ने पर तूफ़ान मचा सकते हैं. वनडे मैचों में 57 पार के औसत से जो बल्लेबाज़ बल्लेबाज़ी करता रहा हो, उसे तीन मैचों की नाकामी के आधार पर कोई कैसे ख़ारिज कर सकता है? जिसने वनडे मैचों में 50 से ज़्यादा शतक लगाए हों, उसे दो शून्यों के आधार पर कैसे टीम से और आने वाले विश्व कप की योजना से बाहर किया जा सकता है?

इसमें संदेह नहीं कि मौजूदा भारतीय क्रिकेट के परिदृश्य में बहुत सारे खिलाड़ी हैं, जो वनडे टीम में दस्तक दे रहे हैं और कुछ बेहद प्रतिभाशाली बल्लेबाज़ हैं. शायद इस प्रतिभा का भी दबाव है कि भारतीय क्रिकेट विराट कोहली और राोहित शर्मा जैसे दिग्गजों से तत्काल मुक्ति पाने की सोचने की स्थिति में भी है. लेकिन ये वे बल्लेबाज़ हैं जो बार-बार अपनी लय हासिल करते रहे हैं और टीम के काम आते रहे हैं. इतनी जल्दी उनके लिए शिलालेख तैयार नहीं किया जा सकता.

वैसे शायद यह अधीरता भारतीय मानस में पुरानी रही है. यह 1983 का साल था, जब सुनील गावस्कर को सलाह दी जाने लगी कि वे क्रिकेट से संन्यास ले लें. 1983 के विश्व कप में भारत के हाथों पराजित और घायल क्लाइव लायड की वेस्ट इंडियन टीम बिल्कुल बदला लेने के इरादे से पांच टेस्ट खेलने भारत आई थी. कानपुर के पहले टेस्ट में गावस्कर शून्य और 7 रन पर आउट हो गए. मार्शल की तूफ़ानी गेंद के आगे शायद उनका बल्ला छूट गया था. सबने कहा, अब गावस्कर खत्म हो चुके हैं, वे खेलना छोड़ दें. लोग यह भी भूल गए कि उसके ठीक पहले पाकिस्तान के ख़िलाफ़ उन्होंने दोनों पारियों में अर्द्धशतक लगाए थे. गावस्कर ने लेकिन ठीक अगले टेस्ट में अपने खेलने का अंदाज़ बदला. अपनी सुरक्षात्मक बल्लेबाज़ी के लिए मशहूर यह बल्लेबाज़ वेस्ट इंडीज़ की पेस चौकड़ी पर किसी बाज की तरह टूट पड़ा. उन्होंने बस 94 गेंदों में शतक पूरा कर उस समय तक किसी सलामी बल्लेबाज़ के सबसे तेज़ शतक का विश्व रिकॉर्ड बना डाला. इसके बाद की कहानी सबको याद है. 1987 में जब पाकिस्तान के ख़िलाफ़ उन्होंने बेंगलुरु में आखिरी टेस्ट खेला तो एक बेहद मुश्किल पिच पर वो चट्टान की तरह डटे रहे. किवदंती यह है कि पाकिस्तानी गेंदबाज़ों ने बिशन सिंह बेदी से पूछा कि गावस्कर को कैसे आउट करें. बेदी ने शायद कहा कि वे अपनी गलती से ही आउट होंगे. 96 रन पर गावस्कर आउट हुए और पाकिस्तान ने मैच जीत लिया.

यही कहानी सचिन तेंदुलकर की है. 2005 से ही तेंदुलकर का सिर मांगा जाता रहा. वे टेनिस एल्बो से गुज़रे, कई और शारीरिक व्याधियों से. उन दिनों टीवी चैनल ग्राफिक्स बनाकर उनके शरीर के अलग-अलग हिस्सों में लगी चोटों का हिसाब बताया करते थे. इशारा साफ़ था कि तेंदुलकर ख़त्म हो चुके. लेकिन तेंदुलकर ने सबको गलत साबित किया. कुछ अपने खेल का ढंग बदला और शतक पर शतक लगाते रहे. वनडे और टेस्ट मैचों को मिलाकर सौ शतकों का ऐसा अनूठा रिकॉर्ड उनके हिस्से है, जिसका कोई जवाब नहीं.

आप भरोसा रखें कि विराट कोहली भी लौटेंगे. संभव है, अगले मैच में ही- या फिर उसके बाद के किसी मैच में. आख़िर क्रिकेट अनिश्चितताओं का ही खेल है. विराट के कंधों का बोझ अभी किसी नए खिलाड़ी पर डाल देंगे तो यह उसके साथ भी उचित नहीं होगा. विराट पर भरोसा रखें. उन्होंने ख़ुद को बार-बार बदला है. पहले वो कुछ मुंहफट, कुछ बिगड़े हुए खिलाड़ी लगते थे जिन्हें किसी भी सूरत में बस रन चाहिए थे. वे कभी महान और जादुई स्ट्रोकों के खिलाड़ी नहीं रहे. लेकिन वे रन बनाने की मशीन बने रहे. एकाग्रता और रनों की भूख ने उनके खेल में वह परफेक्शन पैदा की कि उन्होंने सबको पीछे छोड़ा. आने वाले वर्षों में उनके व्यक्तित्व के कई शालीन पहलू भी खुलते रहे हैं. तो संभव है, अपने अंतिम खेल-वर्षों में विराट फिर खुद को नई चुनौती के लिए तैयार करें और टीम इंडिया से अंतिम तौर पर विदा होने से पहले उसके लिए एक बड़ी धरोहर साबित हों.

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