विज्ञापन

प्रियदर्शन

  • img

    दम मारो दम! गॉडफादर टु ब्राजील, ड्रग्स की काली-अंधेरी दुनिया की कहानी

    ड्रग्स का संसार बड़ा होता जा रहा है. ब्राजील के रियो में ड्रग्स कार्टेल पर कार्रवाई तो बस एक इशारा भर है. नशे के इस कारोबार की कहानी...

  • img

    किस बात का नशा? हम एक बीमार समाज तो नहीं बना रहे हैं?

    भारत में भी ड्रग्स का यह संसार और कारोबार बड़ा होता जा रहा है- इसके प्रमाण बहुत सारे हैं. पंजाब में तो इसने एक महामारी जैसा रूप ले लिया था. बीच-बीच में तमाम विश्वविद्यालयों के आसपास ड्रग्स के धंधे की चिंताजनक ख़बरें आती रही हैं.

  • img

    अथ श्री जननायक कथा: गांधी इसलिए जननायक नहीं, महात्मा कहलाए

    बिहार में पिछड़ी राजनीति कर्पूरी ठाकुर को जननायक मानती रही. अब तो सब मानने लगे हैं, लेकिन एक दौर में उनकी पिछड़ी जाति को लेकर मज़ाक उड़ाया जाता रहा, तुकबंदियां की जाती रहीं.

  • img

    जातिवाद ज्यादा खतरनाक है या सांप्रदायिकता?

    नीतीश ने भी लालू यादव के मंडल की काट में जो राजनीति विकसित की, वह जातिगत अस्मिताओं को मज़बूत करने वाली ही थी. उन्होंने बस यह किया कि मंडल के कुछ और टुकड़े कर डाले. पिछड़ों में अतिपिछड़े और दलितों में महादलित खोज निकाले. मुसलमानों में भी अशरफ़ और पसमांदा मुसलमान का फ़र्क किया गया.

  • img

    विराट की विदाई का गीत गाने वालो, क्या आप यह सब भूल गए!

    यह 1983 का साल था, जब सुनील गावस्कर को सलाह दी जाने लगी कि वे क्रिकेट से संन्यास ले लें. 1983 के विश्व कप में भारत के हाथों पराजित और घायल क्लाइव लायड की वेस्ट इंडियन टीम बिल्कुल बदला लेने के इरादे से पांच टेस्ट खेलने भारत आई थी.

  • img

    विज्ञापनों की दुनिया रचने वाला खामोशी से चला गया

    आई तो बाद में बहन की रुलाई जैसी पोस्ट आई- एक्स पर इला अरुण की- कि भाई नहीं रहा. उन्होंने याद किया कि इस राखी पर जब गोवा में बड़े भाई को ऑनलाइन राखी भेजने की सारी कोशिशें नाकाम हो गईं तो उनकी दोस्त क्रिस्टीना ने उनकी ओर से राखी खरीदी और पीयूष पांडे की कलाई पर बांधी.

  • img

    गुरुदत्त की वह दास्तान, जिसमें रोशनी और अंधेरा साथ-साथ चलते रहे

    शुरुआती संघर्ष का दौर बीतने के बाद 'बाजी' के साथ गुरुदत्त जो नई शुरुआत करते हैं, उससे कई कामयाब फिल्मों का सिलसिला बनता है- ऐसी फिल्मों का जो आम लोगों को भी रास आती हैं और शास्त्रीय सिनेमा की शर्तों को भी पूरा करती हैं. हालांकि गुरुदत्त की कामयाबियों के समानांतर एक कहानी नाकामी की भी है.

  • img

    पंकज धीर चले गए, सबको महाभारत का कर्ण याद आया

    पंकज धीर चले गए. महाभारत का रौबीली मूंछों वाला कर्ण का वह किरदार फिर जिंदा हो गया. धीर ने कई रोल किए, लेकिन वह ताउम्र कर्ण ही रहे. पढ़िए कर्ण की कहानी...

  • img

    बीकानेर हाउस में अशोक भौमिक की 'कलात्मक विरासत'... इन चित्रों में समय बोलता है

    मसलन सत्तर के दशक में बनाई गई एक पेंटिंग है जिसके बारे में वे कहते हैं कि यह इमरजेंसी के दौरान बनाई गई. अचानक आपातकाल के दौरान की विभीषिका और इंदिरा गांधी की उन दिनों की छवि इस चित्र में उजागर हो उठती है. उस दौर में श्वेत-श्याम चित्रों की एक पूरी शृंखला है जो अशोक भौमिक के तत्कालीन रुझानों का सुराग देती है.

  • img

    35 साल में कोई अगड़ा सीएम नहीं.. बिहार में तो 'भूरा बाल साफ है'

    Bihar Elections: बिहार में भूरा बाल वह सफ़ाई है, जो लालू यादव ने बिना कुछ कहे कर डाली. क्योंकि अगर लालू यादव सत्तासीन नहीं हुए होते तो नीतीश का रास्ता भी नहीं बनता और जीतनराम मांझी के लिए भी गली नहीं खुलती.

  • img

    हिंदी दिवस विशेष: हिंदी तेरे कितने रूप

    एक और हिंदी का चलन इन दिनों मीडिया में बढ़ा है जिसमें अंग्रेज़ी शब्दों के इस्तेमाल पर ज़ोर है. यह हिंदी लेकिन अमूमन बहुत सपाट और स्मृतिविहीन जान पड़ती है.

  • img

    देवेन्द्र राज अंकुर को मिलेगा 'कारवां-ए-हबीब सम्मान' 2025

    समिति ने बहुमत से इस प्रतिष्ठित सम्मान के लिये देवेन्द्र राज अंकुर जी के नाम का चयन किया. 'कारवां-ए-हबीब' सम्मान की सलाहकार समिति के सदस्यों सुप्रसिद्ध साहित्यकार और नाटककार असग़र वजाहत, वरिष्ठ साहित्यकार उदयप्रकाश, वरिष्ठ रंग-निर्देशक, अभिनेता और रा. ना. वि. के पूर्व निदेशक रामगोपाल बजाज ने सर्वसम्मति से इस प्रतिष्ठित सम्मान के लिये देवेन्द्र राज अंकुर जी के नाम का अनुमोदन किया.

  • img

    अब हिंदी में आई यह दलित-कथा ज़रूर देखी जानी चाहिए

    'धड़क 2' को देखना भारत में जातिगत उत्पीड़न के उन प्रत्यक्ष और परोक्ष अनुभवों से आंख मिलाना है, जिसे वृहत्तर भारतीय समाज पहचानने से भी इनकार करता है- यह कहता हुआ कि यह तो किसी पुराने ज़माने या पिछड़े इलाक़े की बात लगती है.

  • img

    World Emoji day: क्या एक दिन शब्दों को बेदखल कर देंगे इमोजी?

    क्या धीरे-धीरे इमोज़ी ही हमारी भाषा बनती चली जाएगी? उसका अपना व्याकरण स्थिर हो जाएगा? क्या हम अक्षरों और शब्दों की दुनिया को पीछे छोड़ मुद्राओं और तस्वीरों से अपनी नई भाषा बनाएंगे?अभी यह बहुत दूर का सवाल है, लेकिन ताज़ा सच्चाई यह है कि अपने डिजिटल संवाद में हम लगातार इमोजी-निर्भर होते जा रहे हैं.

  • img

    टेनिस खेलती, गोली खाती लड़की

    कात्यायनी की कविता में वह शुक्रवार का दिन था. लेकिन इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक में टेनिस खेलने और सबको सिखाने का सपना देख रही राधिका यादव के जीवन में शुक्रवार नहीं आया.