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प्रियदर्शन

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    अलविदा कॉमरेड: टूट गया मार्क्सवादी आंदोलन का एक और सितारा, सीताराम येचुरी का निधन

    1992 में सीताराम येचुरी सीपीएम की पोलित ब्यूरो में चुने गए. 2015 में सीपीएम के महासचिव चुने गए 2018 और 2022 में उन्हें दूसरी और तीसरी बार सीपीएम के इस सर्वोच्च पद के लिए चुना गया.

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    प्रिया वर्मा को कविता संग्रह 'स्वप्न से बाहर पांव' के लिए मिला 2024 का भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार

    उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में जन्मी प्रिया वर्मा अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर हैं और पिछले 14 वर्ष से अध्यापन कर रही हैं. उनका संग्रह रज़ा फ़ाउण्डेशन से प्रकाशित है.

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    एक ख़त कमाल के नाम

    कमाल साहब, हम दोनों को जो चीज़ जोड़ती थी, वह भाषा भी थी- लफ़्ज़ों के मानी में हमारा भरोसा, शब्दों की नई-नई रंगत खोजने की हमारी कोशिश और अदब की दरबानी का हमारा जज़्बा. पत्रकारिता के सतहीपन ने आपको भी दुखी किया और मुझे भी.

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    सूर्य कुमार यादव की जाति के बहाने

    बेशक, यह स्थिति भी स्थायी नहीं रहेगी. सूर्य कुमार यादव या ऐसे दूसरे खिलाड़ियों का उदय बता रहा है कि पुरानी शक्ति-संरचनाएं टूट रही हैं और नई सामाजिक शक्तियां अपनी आर्थिक हैसियत के साथ अपना हिस्सा मांग और वसूल रही हैं. यह स्थिति सिर्फ किसी खेल में नहीं, हर क्षेत्र में देखी जा सकती है.

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    अब एक और हिंदी दिवस आ गया! 

    दिलचस्प यह है कि एक तरफ़ हिंदी के मसाले में रेत की यह मिलावट जारी है और दूसरी ओर शुद्धतावाद और पवित्रतावाद का प्रपंच भी चल रहा है.

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    अब विदेशी विश्वविद्यालयों से भी लीजिए ज्ञान!

    उच्च शिक्षा के निजीकरण के बाद उसके भूमंडलीकरण की इस कोशिश के कुछ निहितार्थ तो स्पष्ट हैं. उच्च शिक्षा अब ग़रीबों की हैसियत से बाहर होने जा रही है. क्योंकि वे जिन सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करते हैं, वे धीरे-धीरे आर्थिक और बौद्धिक रूप से विपन्न बनाए जा रहे हैं. यह सच है कि भारत के विश्वविद्यालय कभी भी बहुत साधन-संपन्न नहीं रहे.

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    नया साल और हिंदी-उर्दू का सवाल

    यह सच है कि हिंदी और उर्दू को सांप्रदायिक पहचान के आधार पर बांटने वाली दृष्टि बिल्कुल आज की नहीं है. उसका एक अतीत है और किसी न किसी तरह यह बात समाज के अवचेतन में अपनी जगह बनाती रही है कि हिंदी हिंदुओं की भाषा है और उर्दू मुसलमानों की.

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    बंद नोट और राजनीतिक नीयत का खोट

    सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही भी थी और मामला बंद देने का सुझाव दिया था. लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वकील पी चिदबंरम की इस दलील ने उसे अपना विचार बदलने को मजबूर किया कि इससे नोटबंदी जैसे फ़ैसलों की संवैधानिक स्थिति स्पष्ट होगी. ये फ़ैसला बीते दिनों को भले पलट न सके, लेकिन आने वाले दिनों के लिए नज़ीर बन सकता है. 

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    अभद्र भाषा से लेकर गंभीर बीमारी तक बस नक़ली चिंता 

    भारतीय राजनीति ने इस कुत्ता शब्द के और भी बुरे इस्तेमाल देखे हैं. 2014 से पहले प्रधानमंत्री पद की दौड़ में लगे तब के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछा गया कि 2002 के गुजरात दंगों का दर्द उन्हें नहीं है? 

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    बदरंग आस्था बनाम बेशरम रंग 

    एक दौर में राज कपूर, देवानंद और दिलीप कुमार की फिल्में भी ‘लड़कों को बिगाड़ने वाली’ मानी जाती थीं. बड़े-बूढ़े तो पूरी फिल्म संस्कृति को संदेह से और नाक-भौं सिकोड़ कर देखते थे.

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    ये अर्थव्यवस्था है नादान! 

    जिस डिजिटल लेनदेन का नगाड़ा अगले कई दिनों तक ज़ोर-शोर से बजाया जाता रहा और जिस तरह राष्ट्रीय मुद्रा में लेनदेन का लगभग अवमूल्यन करते हुए डिजिटल भुगतान को बढ़ावा दिया गया, उसका उस पहले भाषण में लेश मात्र भी ज़िक्र नहीं था.  

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    रज़ा फ़ाउंडेशन के कार्यक्रम- युवा-2022 में, सैयद हैदर रज़ा की दास्तान की हुई प्रस्तुति

    रज़ा फ़ाउंडेशन की तरफ से आयोजित दो दिवसीय युवा-2022 में सैयद हैदर रज़ा की दास्तान की प्रस्तुति की गयी. इस कार्यक्रम में भारतीय भाषाओं के छह लेखकों पर हिंदी के तीस युवा लेखक विचार रखने के लिए पहुंचे थे.

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    पुस्तक समीक्षा: आपकी जातिगत श्रेष्ठता के दंभ पर थूकती हैं ये कविताएं, इन्हें ख़ारिज कर दें

    कविता और भाषा के शास्त्रीय अनुशासन के आधार पर पंकज चौधरी की कविताओं को सीधे-सीधे ख़ारिज कर देने की इच्छा होती है. आख़िर ऐसी सपाट सच्चाइयां कौन लिखता है? कौन चाहता है कि इन्हें कविता माना जाए. अगर ये कविताएं हैं तो शब्दों का वह सुरुचिपूर्ण संसार क्या कहलाएगा जिसे हम कविता मानते हैं?

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    प्रियदर्शन का ब्लॉग: मुलायम सिंह यादव की विदाई और समाजवाद की विरासत

    मुलायम योद्धा थे. सारी मुश्किलों को पार करते हुए, सारी आलोचनाओं से आगे निकल कर 2012 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की जीत की बुनियाद उन्होंने ही रखी थी. इसमें शक नहीं कि उन्होंने अपने बेटे को बेहद मज़बूत विरासत सौंपी.

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    एक छोटे से गांव में जन्मे मुलायम सिंह यादव 3 बार बने UP के CM, ऐसा रहा उनका राजनीतिक सफर

    मुलायम सिंह यादव साल 1989 में पहली बार यूपी के मुख्यमंत्री बने. लेकिन 1991 में जनता दल टूटा गया. हालांकि 1993 में उन्होंने फिर यूपी में सरकार बनाई.