
- 1999 के चुनाव में मनमोहन सिंह को दक्षिणी दिल्ली सीट से बीजेपी के विजय कुमार मल्होत्रा ने करारी शिकस्त दी थी
- विजय कुमार मल्होत्रा ने लगभग 30 हजार मतों के अंतर से मनमोहन सिंह को चुनाव में हराया था
- मनमोहन सिंह साफ-सुथरी छवि और आर्थिक सुधारों के जनक होने के बाद भी चुनाव हार गए थे
भारतीय राजनीति के इतिहास में 1999 का लोकसभा चुनाव कई बड़े उलटफेरों के लिए याद किया जाता है. यह वही चुनाव था जब देश के पूर्व प्रधानमंत्री और आर्थिक सुधारों के जनक माने जाने वाले डॉ. मनमोहन सिंह को दक्षिणी दिल्ली लोकसभा सीट से करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी. कांग्रेस को उम्मीद थी कि उनकी साफ-सुथरी छवि, आर्थिक सुधारों का जादू और पंजाबी-सिख वोट बैंक उन्हें मजबूत बढ़त दिलाएगा, लेकिन दिल्ली में उस समय बीजेपी की लहर थी. संघ परिवार के मजबूत कैडर विजय कुमार मल्होत्रा ने संगठन और जनसंपर्क के बूते मनमोहन सिंह को हरा दिया. दिलचस्प यह भी है कि विजय मल्होत्रा ने ऐसा दांव खेला कि सिर्फ मनमोहन सिंह ही नहीं, बल्कि जगदीश टाइटलर और आरके धवन जैसे दिग्गज भी हार गए थे.
विजय कुमार मल्होत्रा ने लगभग 30 हजार मतों से दी थी मात
1999 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली की दक्षिणी सीट पर जबरदस्त मुकाबला देखने को मिला था. यहां कांग्रेस की ओर से पूर्व वित्त मंत्री और राज्यसभा सांसद डॉ. मनमोहन सिंह मैदान में थे, जबकि बीजेपी ने संघ परिवार से जुड़े वरिष्ठ नेता विजय कुमार मल्होत्रा को टिकट दिया. नतीजे में मनमोहन सिंह को कुल 2,31,2301 वोट मिले. इसके विपरीत विजय कुमार मल्होत्रा ने 3,61,230 वोट हासिल किए और निर्णायक बढ़त से विजयी रहे. इस हार ने न सिर्फ कांग्रेस को झटका दिया, बल्कि मनमोहन सिंह के राजनीतिक करियर में एक बड़ी विफलता भी जोड़ दी.

देश की राजनीति में छा गए थे विजय कुमार मल्होत्रा
चुनाव के समय मनमोहन सिंह भारतीय राजनीति में एक स्थापित और सम्मानित नाम थे. वे राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता प्रतिपक्ष थे और आर्थिक नीतियों को लेकर उनकी पहचान बेहद मजबूत थी. संसद के भीतर उनकी तर्कसंगत बहस और वित्तीय दृष्टिकोण ने उन्हें गंभीर और बौद्धिक नेता की छवि दी थी. कांग्रेस को भरोसा था कि लोकसभा चुनाव में उनकी यह छवि दिल्ली के शहरी वोटरों को आकर्षित करेगी. लेकिन यह उम्मीद पूरी नहीं हो सकी. नेता प्रतिपक्ष के रूप में उनकी पहचान के बावजूद वे जमीनी स्तर पर आम मतदाताओं से तालमेल बिठाने में सफल नहीं रहे.

मल्होत्रा को कैडर पर अपनी पकड़ के दम पर मिली थी जीत
डॉ. मनमोहन सिंह को 1991 में शुरू हुए आर्थिक सुधारों का जनक कहा जाता है। वित्त मंत्री के रूप में उनके नेतृत्व में भारत ने उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की दिशा में ऐतिहासिक कदम बढ़ाए. कांग्रेस को उम्मीद थी कि दिल्ली जैसे शहरी और मध्यमवर्गीय क्षेत्र में उनकी यह उपलब्धि वोट में तब्दील होगी. शहरी वोटरों के बीच आर्थिक सुधारों की गूंज थी, लेकिन चुनावी जमीन पर यह समर्थन नहीं मिल पाया. रोजगार, स्थानीय मुद्दे और संगठन की मजबूती ने उनके सुधारों की छवि को पीछे छोड़ दिया और उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

कुशल रणनीतिकार माने जाते थे मल्होत्रा
विजय कुमार मल्होत्रा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से लंबे समय से जुड़े रहे थे. उनके पास न केवल संगठनात्मक अनुभव था, बल्कि बीजेपी और संघ परिवार के भीतर उनकी छवि जमीनी कार्यकर्ता और रणनीतिकार की थी. दिल्ली में उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती थी क्योंकि वे वर्षों से कार्यकर्ताओं के साथ सीधे संपर्क में रहते थे. चुनाव प्रचार के दौरान संघ और बीजेपी का पूरा कैडर उनके साथ मजबूती से खड़ा था. यही संगठनात्मक ताकत उन्हें जनता तक ले गई. उनकी मेहनत और जमीनी जुड़ाव ने इस चुनाव को उनके पक्ष में कर दिया और उन्होंने मनमोहन सिंह को हराया.

मनमोहन सिंह, जगदीश टाइटलर, आरके धवन जैसे दिग्गज हार गए थे चुनाव
1999 का लोकसभा चुनाव दिल्ली में बीजेपी के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ था. उस समय राजधानी में बीजेपी की ऐसी लहर थी जिसने कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को धराशायी हो गए थे. मनमोहन सिंह, जो कांग्रेस की शान माने जाते थे, चुनाव हार गए. इसी तरह जगदीश टाइटलर और आरके धवन जैसे दिग्गज नेताओं को भी हार का सामना करना पड़ा.
मनमोहन सिंह को नहीं मिला था पंजाबी वोट बैंक का साथ
दिल्ली की राजनीति में सिख और पंजाबी वोटरों हमेशा महत्वपूर्ण है यह वर्ग बड़ी संख्या में मौजूद हैं. कांग्रेस को विश्वास था कि डॉ. मनमोहन सिंह की सिख पहचान उन्हें इस वर्ग का मजबूत समर्थन दिलाएगी. लेकिन उम्मीद के विपरीत, यह वोट बैंक निर्णायक साबित नहीं हो सका. बीजेपी ने भी पंजाबी-सिख समुदाय में गहरी पैठ बनाई और संगठनात्मक स्तर पर उनकी नब्ज पकड़ी।.नतीजतन, मनमोहन सिंह की हार को बड़ा उलटफेर माना गया.

देश भर में बीजेपी को मिली थी जीत
1999 का लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय राजनीति में भी बीजेपी के उभार का प्रतीक था. केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को मजबूत जनादेश मिला था. दिल्ली की सातों सीटों पर बीजेपी ने शानदार जीत दर्ज की थी और कांग्रेस बुरी तरह पिछड़ गई थी. यह चुनाव न सिर्फ दिल्ली में, बल्कि पूरे देश में बीजेपी के लिए निर्णायक मोड़ साबित हुआ था.
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