नायडू के नामांकन के दौरान एनडीए के वरिष्ठ नेता मौजूद रहे.
उपराष्ट्रपति चुनाव में सत्तारूढ़ एनडीए की तरफ से वेंकैया नायडू ने मंगलवार को पीएम नरेंद्र मोदी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी की मौजूदगी में तकरीबन सुबह 11.30 बजे नामांकन किया है. पर्चा भरने के बाद नायडू ने पीएम नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का आभार व्यक्त करने के बाद कहा कि पार्टी ने मां की तरह ख्याल रखा. उधर कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए ने गोपाल कृष्ण गांधी को इस पद के लिए अपना उम्मीदवार बनाया है. वह भी मंगलवार को ही अपना नामांकन भरेंगे. इस पृष्ठभूमि में आइए दोनों नेताओं से जुड़ी पांच बातों पर डालते हैं एक नजर :
एम वेंकैया नायडू (68)
1. आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में जन्मे नायडू कॉलेज के दिनों में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ गए. पहली बार 1972 में जय आंध्रा आंदोलन से सुर्खियों में आए.
2. 1975 में इमरजेंसी में जेल भी गए थे. महज 29 साल की उम्र में 1978 में पहली बार विधायक बने. 1983 में भी विधानसभा पहुंचे और धीरे-धीरे राज्य में भाजपा के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे.
3. नायडू पहली बार कर्नाटक से राज्यसभा के लिए 1998 में चुने गए. इसके बाद से ही 2004, 2010 और 2016 में वह राज्यसभा के सांसद बने.
4. 1999 में एनडीए की जीत के बाद उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में ग्रामीण विकास मंत्रालय का प्रभार दिया गया. 2002 में वे पहली बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. वे दिसंबर 2002 तक अध्यक्ष रहे.
5. साल 2004 में नायडू राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, लेकिन एनडीए की हार के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया. 2014 में बीजेपी को मिली ऐतिहासिक जीत के बाद उन्हें शहरी विकास मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया.
वीडियो
गोपाल कृष्ण गांधी (71)
1. गोपाल कृष्ण गांधी महात्मा गांधी के सबसे छोटे पौत्र हैं. वह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और राजनयिक रहे हैं और सिविल सोसायटी की नामी शख्सियत हैं. इससे पहले राष्ट्रपति चुनाव के लिए लगभग विपक्ष के सभी दलों के बीच पहले राउंड की शुरुआती चर्चा में भी उनका नाम उभरा था और किसी ने उनके नाम पर ऐतराज नहीं जताया था.
2. महात्मा गांधी के सबसे छोटे पौत्र गोपाल गांधी की पारिवारिक जड़ें गुजरात में हैं. संभवतया इन्हीं वजहों से नीतीश-लालू से लेकर सपा और बसपा को उनकी उम्मीदवारी सूट करती है.
3. कांग्रेस से भी गोपाल गांधी के अच्छे रिश्ते हैं. उसकी बानगी इस बात से समझी जा सकती है कि कांग्रेस ने ही 2004 में उनको पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया था.
4. पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकार के समय गांधी की राज्यपाल के रूप में सक्रियता की तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी भी प्रशंसक रहीं. इस लिहाज से तृणमूल भी उनके नाम पर मुहर लगाने में गुरेज नहीं करेगी.
5. नौकरशाह से लेकर राजनयिक राजदूत के लंबे अनुभव के धनी गांधी लेखन और बौद्धिक जगत में अपनी खास पहचान रखते हैं.
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एम वेंकैया नायडू (68)
1. आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में जन्मे नायडू कॉलेज के दिनों में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ गए. पहली बार 1972 में जय आंध्रा आंदोलन से सुर्खियों में आए.
2. 1975 में इमरजेंसी में जेल भी गए थे. महज 29 साल की उम्र में 1978 में पहली बार विधायक बने. 1983 में भी विधानसभा पहुंचे और धीरे-धीरे राज्य में भाजपा के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे.
3. नायडू पहली बार कर्नाटक से राज्यसभा के लिए 1998 में चुने गए. इसके बाद से ही 2004, 2010 और 2016 में वह राज्यसभा के सांसद बने.
4. 1999 में एनडीए की जीत के बाद उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में ग्रामीण विकास मंत्रालय का प्रभार दिया गया. 2002 में वे पहली बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. वे दिसंबर 2002 तक अध्यक्ष रहे.
5. साल 2004 में नायडू राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, लेकिन एनडीए की हार के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया. 2014 में बीजेपी को मिली ऐतिहासिक जीत के बाद उन्हें शहरी विकास मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया.
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गोपाल कृष्ण गांधी (71)
1. गोपाल कृष्ण गांधी महात्मा गांधी के सबसे छोटे पौत्र हैं. वह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और राजनयिक रहे हैं और सिविल सोसायटी की नामी शख्सियत हैं. इससे पहले राष्ट्रपति चुनाव के लिए लगभग विपक्ष के सभी दलों के बीच पहले राउंड की शुरुआती चर्चा में भी उनका नाम उभरा था और किसी ने उनके नाम पर ऐतराज नहीं जताया था.
2. महात्मा गांधी के सबसे छोटे पौत्र गोपाल गांधी की पारिवारिक जड़ें गुजरात में हैं. संभवतया इन्हीं वजहों से नीतीश-लालू से लेकर सपा और बसपा को उनकी उम्मीदवारी सूट करती है.
3. कांग्रेस से भी गोपाल गांधी के अच्छे रिश्ते हैं. उसकी बानगी इस बात से समझी जा सकती है कि कांग्रेस ने ही 2004 में उनको पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया था.
4. पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकार के समय गांधी की राज्यपाल के रूप में सक्रियता की तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी भी प्रशंसक रहीं. इस लिहाज से तृणमूल भी उनके नाम पर मुहर लगाने में गुरेज नहीं करेगी.
5. नौकरशाह से लेकर राजनयिक राजदूत के लंबे अनुभव के धनी गांधी लेखन और बौद्धिक जगत में अपनी खास पहचान रखते हैं.
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