उत्तरकाशी टनल में 18 मीटर की ड्रिलिंग बची, आज रात या कल सुबह तक बाहर निकाले जा सकते हैं 41 मजदूर

Uttarkashi Tunnel Rescue Operation: सिलक्यारा टनल हादसा 12 नवंबर की सुबह 4 बजे हुआ था. टनल के एंट्री पॉइंट से 200 मीटर अंदर 60 मीटर तक मिट्टी धंसी. इसमें 41 मजदूर अंदर फंस गए.

खास बातें

  • 6 इंच की पाइपलाइन से मजूदरों को भेजा जा रहा खाना
  • ऑगर मशीन से ड्रिलिंग का काम जारी
  • 12 नवंबर की सुबह धंस गया था टनल का हिस्सा
नई दिल्ली/उत्तरकाशी:

उत्तराखंड के उत्तरकाशी के निर्माणाधीन सिल्क्यारा टनल ( Uttarkashi Tunnel Collapse) में 41 मजदूरों के रेस्क्यू (Rescue Operation) का बुधवार (22 नवंबर) को 11वां दिन है. टनल के एंट्री पॉइंट से अमेरिकी ऑगर मशीन के जरिए करीब 42 मीटर तक 800 mm (करीब 32 इंच) का पाइप ड्रिल कर चुकी है. अब लगभग 18 मीटर की ड्रिलिंग बाकी है. बाकी ड्रिलिंग का काम गुरुवार सुबह तक पूरा होने की उम्मीद है. ड्रिलिंग का काम पूरा होने के बाद यहां से 32 इंच के पाइप को अंदर डाला जाएगा. इसके जरिए मजदूर रेंगते हुए बाहर निकल आएंगे. 

उत्तराखंड के सड़क और परिवहन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी महमूद अहमद ने कहा कि ऑगर ड्रिलिंग मशीन को देर रात 12.45 बजे चालू किया गया था. अब तक 18 मीटर की ड्रिलिंग हो चुकी है. उन्होंने बताया, "मुझे यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि कुल 39 मीटर की ड्रिलिंग पूरी हो चुकी है. अनुमान है कि मजदूर 57 मीटर नीचे फंसे हुए हैं. इसलिए अब सिर्फ 18 मीटर की ड्रिलिंग ही रह गई है. इसे जल्द पूरा कर लिया जाएगा."

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पाइपों की वेल्डिंग में लगता है ज्यादा समय
अहमद ने यह भी कहा कि रेस्क्यू ऑपरेशन में सबसे ज्यादा समय पाइपों की वेल्डिंग में लगता है, जिसे ड्रिल किए गए छेदों में डाला जाना है. ताकि श्रमिकों को वहां से निकलने का रास्ता मिल सके. उन्होंने आगे बताया, "वेल्डिंग सबसे महत्वपूर्ण है... इसमें समय लगता है. ड्रिलिंग करने में ज्यादा समय नहीं लगता... इस वजह से 18 मीटर पाइप यानी तीन सेक्शन भेजने में देर रात से लगभग 15 घंटे लग गए. टनल के अंदर 21 मीटर अंदर एक एकस्ट्रा 800 मिमी पाइप भी डाली गई है."

देर रात या कल सुबह तक मिल सकती है अच्छी खबर
महमूद अहमद ने बुधवार को बताया कि अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन देर रात तक खुशखबरी मिल सकती है. उन्होंने बताया कि मजदूरों को सुबह टूथब्रश-पेस्ट, टॉवल, अंडरगारमेंट्स और नाश्ता भेजा गया. मजदूरों ने मोबाइल और चार्जर की भी डिमांड की थी, उन्हें वह भी भेजा गया है. सभी मजदूर ठीक हैं. उन्होंने बताया कि मलबे के साथ एक लोहे की रॉड भी आई है. हमें खुशी है कि इस (रॉड) ने हमारे लिए कोई समस्या पैदा नहीं की..." 

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मलबे के गिरने के साथ-साथ भारी-ड्रिलिंग मशीनों के बार-बार खराब होने के कारण रेस्क्यू ऑपरेशन धीमा पड़ गया था. पिछले सप्ताह एक मशीन मलबे के अंदर बड़े पत्थर से टकरा गई थी, जिससे टनल की छत में दरार पड़ने के कारण तीन दिनों से अधिक समय तक ड्रिलिंग रोकनी पड़ी थी. महमूद अहमद ने कहा, "यह हमारे लिए बहुत खुशी की खबर है कि हम तेज रफ्तार से काम कर रहे हैं. 

पांच सरकारी एजेंसियों को भी रेस्क्यू ऑपरेशन में लगाया गया
तेल और प्राकृतिक गैस निगम समेत पांच सरकारी एजेंसियों को इस व्यापक ऑपरेशन में शामिल किया गया है. मजदूरों को कमजोरी हुई, तो NDRF की टीम ने उन्हें स्केट्स लगी टेंपररी ट्रॉली के जरिए बाहर खींचकर निकालने की भी तैयारी की है.

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उत्तराखंड प्रशासन ने साइट पर 40 एंबुलेंस मंगवाई
रेस्क्यू ऑपरेशन के करीब पहुंचने की स्थिति को देखते हुए उत्तराखंड प्रशासन ने घटनास्थल पर 40 एंबुलेंस मंगवाई हैं. इसके अलावा डॉक्टरों की टीम भी पहुंच गई है. चिल्यानीसौड़, उत्तरकाशी और AIIMS ऋषिकेश को अलर्ट मोड पर रखा गया है. मजदूरों को एयरलिफ्ट करने की भी व्यवस्था की गई है.

कब हुआ हादसा?
सिलक्यारा टनल हादसा 12 नवंबर की सुबह 4 बजे हुआ था. टनल के एंट्री पॉइंट से 200 मीटर अंदर 60 मीटर तक मिट्टी धंसी. इसमें 41 मजदूर अंदर फंस गए. टनल के अंदर फंसे मजदूर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के हैं. चारधाम रोड प्रोजेक्ट के तहत ये टनल बनाई जा रही है. 

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