
Nawab Abdul Samad Tomb: उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में कुछ ऐसा हुआ है, जिसने 1992 में हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस की याद दिला दी. यहां एक मकबरे पर अचानक भगवा झंडे लहराने लगे और सैकड़ों लोगों ने धावा बोल दिया. ये सब नजारा देखकर पुलिस के हाथ-पैर फूल गए और मौके पर तमाम बड़े अधिकारियों को पहुंचना पड़ा. आज हम आपको बताएंगे कि ये मकबरा किसका है और इसका पूरा इतिहास क्या है.
कैसे शुरू हुआ पूरा विवाद?
सबसे पहले ये जान लेते हैं कि ये मामला कहां से शुरू हुआ. 8 अगस्त को तमाम हिंदू संगठनों के नेता डीएम के पास गए और उन्हें एक ज्ञापन दिया. इस ज्ञापन में कहा गया था कि फतेहपुर में मौजूद नवाब अब्दुल समद का मकबरा कोई मकबरा नहीं, बल्कि एक शिव मंदिर है. क्योंकि अंदर दीवारों पर त्रिशूल, बेलपत्र, कमल के फूल और शिव का प्रतीक बना हुआ है. उन्होंने ये भी ऐलान किया कि 11 अगस्त को इस जगह की सफाई कर जन्माष्टमी मनाई जाएगी. डीएम ने इसकी इजाजत देने से इनकार कर दिया और साफ शब्दों में कहा कि ऐसा करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी.
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बीजेपी नेता ने भड़काई चिंगारी!
इस ज्ञापन के बाद पूरा प्रशासन सतर्क हो जाता है और इस जगह पर बैरिकेडिंग की जाती है. साथ ही मौके पर पुलिस बल भी तैनात किया जाता है. इसके बाद 10 अगस्त को फतेहपुर बीजेपी के जिला अध्यक्ष मुखलाल पाल की तरफ से इस पूरे मामले में चिंगारी भड़काने का काम किया गया. उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ऐलान किया कि वो मकबरे में जाकर पूजा और आरती करेंगे.
11 अगस्त को कई हिंदू संगठनों से जुड़े करीब दो हजार लोग बैरिकेडिंग तोड़कर फतेहपुर के इस मकबरे में पहुंच जाते हैं और वहां भगवा झंडा लहराने की कोशिश करते हैं. इसके अलावा अंदर पूजा-पाठ भी शुरू हो गया. दोनों समुदायों में माहौल बिगड़ता देख पुलिस आखिरकार एक्शन में आई और लाठीचार्ज हुआ. बवाल इतना ज्यादा हो गया कि मामले को शांत कराने के लिए करीब 10 थानों की पुलिस बुलानी पड़ी.
कौन थे नवाब अब्दुल समद?
मुस्लिम पक्ष की तरफ से बताया जा रहा है कि ये मकबरा करीब 500 साल पुराना है, जिसे अकबर के पोते ने बनवाया था. मुस्लिम समुदायों का कहना है कि ये जगह पहले से ही कागजों में दर्ज है. सरकारी रिकॉर्ड में इसका नाम मकबरा मांगी के नाम से दर्ज है. यहां पर अबू मोहम्मद और नवाब अबू समद की मजारें मौजूद हैं. अब्दुल समद खान लाहौर के एक ताकवर सूबेदार थे और मुगल सेना के काफी वफादार माने जाते थे. 18वीं शताब्दी के दौर में जो भी राजनीतिक घमासान हुए, उनमें नवाब अब्दुल समद का भी रोल रहा. यही वजह है कि फतेहपुर में उनके नाम पर मकबरा बनाया गया, जहां उनका शव दफ्न है.
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