
- बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट रिवीजन (SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है.
- चुनाव आयोग ने कहा कि मतदाता की नागरिकता जांच करने और सूची में नाम शामिल करने का संवैधानिक अधिकार उसके पास है.
- सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग द्वारा पहचान दस्तावेजों की संख्या बढ़ाने को मतदाताओं के हित में बताया.
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट रिवीजन यानी SIR (Bihar SIR Hearing On Supreme Court) को लेकर सूबे में सियासी घमासान मचा हुआ है. इस सियासी खींचतान के बीच सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर आज भी सुनवाई चल रही है. वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अपनी दलीलों में सुप्रीम कोर्ट के लाल बाबू फैसले का जिक्र किया, जिसमें पिछले चुनावों में मतदान कर चुके मतदाताओं को सूची से बाहर करने के संबंध में दिशानिर्देश दिए गए हैं. जिन मामलों में नागरिकता को लेकर संदेह है, वहां ERO फैसला लेने से पहले गृह मंत्रालय सहित संबंधित प्राधिकारियों से परामर्श कर सकता है.
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सुप्रीम कोर्ट में SIR पर बड़ी सुनवाई LIVE:
अभिषेक मनु सिंघवी ने क्या कहा?
मनमाने तरीके से बिहार के 65 लाख वोटरों के नाम काटेः सिंघवी
SIR पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा- बिहार के बाद पश्चिम बंगाल में भी यह प्रक्रिया शुरू होगी. वहाँ के राज्य चुनाव आयोग ने पहले ही कह दिया है.
बिहार में "नॉन- इंन्कलूजन" जैसे मनमोहक शब्द के ज़रिए 65 लाख मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए हैं. मनमाने ढंग से और बिना किसी उचित प्रक्रिया के लाखों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर दिया जाएगा. मतदाता सूची संशोधन के लिए अनुचित रूप से कम समय सीमा है. कोई उचित उपाय नहीं, कोई नोटिस नहीं, कोई सुनवाई नहीं.
वोटरों के नाम हटाने के नियमों का आयोग नहीं कर रहा पालनः सिंघवी
सिंघवी ने आगे कहा कि यह स्वीकार किया गया है कि 65 लाख मतदाता सूची से बाहर हैं. उन्हें बिना किसी सुनवाई के बाहर कर दिया गया है और उन्हें मतदाता सूची से बाहर घोषित कर दिया गया है क्योंकि आप मर चुके हैं या स्थायी रूप से स्थानांतरित/अनुपस्थित हैं और कुछ मतदाता पहले से ही कहीं और नामांकित हैं.
मतदाताओं के नाम हटाने के लिए नियमों की एक विस्तृत सूची है जिसका पालन चुनाव आयोग द्वारा नहीं किया गया. यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विरुद्ध है. चुनाव आयोग ने आवश्यक मानक संचालन प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया है. वर्तमान चुनावों के तहत चुनाव वर्ष में स्वतः संज्ञान लेकर कोई नाम हटाया नहीं जा सकता.
इससे पहले उन्होंने कहा कि अगर ERO अभी भी निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है, तो उसे पहले सुप्रीम कोर्ट के लाल बाबू मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का संदर्भ लेना चाहिए. उन्होंने कहा कि असम में, नागरिकता से संबंधित विवादित मामलों पर निर्णय लेने के लिए विदेशी ट्रिब्यूनल है. इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि सिविल कोर्ट को इस मामले में अधिकार नहीं है.
ADR - सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश के बावजूद आधार, वोटर आईडी और EPIC को दस्तावेजों में शामिल नहीं किया गया.
- गोपाल शंकरनारायणन ने पूरी प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की
- कहा कि यह प्रक्रिया देश में कहीं भी नहीं की जा सकती
- EPIC कार्ड पर भी विचार नहीं किया गया। अब हम इस प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं
- इससे बंगाल को भी फायदा होगा
- आप सिर्फ़ एक कट-ऑफ़ तारीख देकर मतदाता सूची से नहीं हटा सकते
- शुरुआत से ही यह मृत है
इस पर जस्टिस कांत ने कहा- तो आपके तर्कों के अनुसार, ऐसा कहीं भी नहीं किया जा सकता? लेकिन मतदाता सूची स्थिर नहीं रह सकती.
गोपाल : संशोधन ज़रूर हो सकते हैं. आप संशोधन कर सकते हैं, लेकिन इस तरह नहीं.
जस्टिस बागची ने सिंघवी से क्या पूछा?
जस्टिस बागची ने सिंघवी से कहा कि हमें आधार को बाहर करने को लेकर आपका तर्क समझ आ गया है. लेकिन दस्तावेज़ों की संख्या का मुद्दा वास्तव में मतदाताओं के अनुकूल है, उनके ख़िलाफ नहीं. उन दस्तावेज़ों की संख्या पर गौर करें जिनसे आप नागरिकता साबित कर सकते हैं.
जब सिंघवी आधार, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र स्वीकार न किए जाने की शिकायत करते रहे, तो जस्टिस जयमाल्या बागची ने कहा कि हम आधार के बारे में आपके बहिष्करण संबंधी तर्कों को समझते हैं. लेकिन देखिए, चुनाव आयोग पहचान के लिए दस्तावेज़ों की संख्या बढ़ा रहा है, जबकि संक्षिप्त संशोधन के दौरान पहचान साबित करने के लिए केवल 7 दस्तावेज़ों की अनुमति थी, अब इसे बढ़ाकर 11 कर दिया गया है. यह मतदाता हितैषी है, बहिष्करणकारी नहीं. उन दस्तावेज़ों की संख्या पर गौर कीजिए जिनके आधार पर आप नागरिकता साबित कर सकते हैं.
जस्टिस कांत ने कहा कि अगर उन्होंने 11 दस्तावेज़ों पर ज़ोर दिया गया होता तो यह मतदाता विरोधी होता. लेकिन अगर कोई एक दस्तावेज़ मांगा जाता है तो यह मतदाता हितैषी है.
SIR मतदाताओं के खिलाफ क्यों नहीं?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग ने पहचान पत्र के दस्तावेजों की संख्या में वृद्धि ही की है. आधार को लेकर याचिकाकर्ताओं की मांग हो सकती है, लेकिन समरी रिवीजन में जहां 7 दस्तावेज मान्य थे वहीं SIR में 11 दस्तावेज मान्य हैं.अगर चुनाव आयोग कहता कि सभी 11 दस्तावेज देना अनिवार्य है उसी स्थिति में इस SIR को मतदाताओं के खिलाफ कहा जा सकता है. लेकिन यहां तो 11 में से एक दस्तावेज ही मांगा जा रहा है.
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में क्या-क्या हुआ था?
बता दें कि इस मामले में मंगलवार को भी सुनवाई हुई थी, दोनों ही पक्षों ने अपनी-अपनी दलीलें दी. ऐसा माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट SIR को लेकर आज कोई बड़ा फैसला सुना सकता है. आपको बता दें कि पहले दिन की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कई अहम टिप्पणियां भी की थीं. कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग सही कह रहा है कि आधार को नागरिकता के निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है. ज्यादा से ज्यादा यह किसी की पहचान का प्रमाण हो सकता है. आधार ऐक्ट की धारा 9 ऐसा कहती है.
वहीं, चुनाव आयोग ने सुनवाई के दौरान कोर्ट से कहा कि नियमों के अनुसार चुनाव आयोग को शामिल न किए गए लोगों की अलग सूची तैयार करने की आवश्यकता नहीं है.नियमों के अनुसार चुनाव आयोग को किसी को शामिल न किए जाने का कारण प्रकाशित करने की आवश्यकता नहीं है.ऐसी किसी भी सूची को अधिकार के रूप में नहीं मांगा जा सकता है.जिन लोगों को शामिल नहीं किया गया है, वे सभी इसका उपायों का सहारा ले सकते हैं.चुनाव आयोग ने कहा कि उसके पास ऐसा करने का अधिकार है.उसके पास यह निर्धारित करने का संवैधानिक कर्तव्य और अधिकार है कि मतदाताओं द्वारा नागरिकता की आवश्यकता पूरी की गई है या नहीं, लेकिन मतदाता के रूप में अयोग्य ठहराए जाने के कारण किसी व्यक्ति की नागरिकता समाप्त नहीं की जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार की सुनवाई के UPDATES
आधार कोई पक्का सबूत नहीं... SIR की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट का बड़ा बयान
SIR पर मंगलावर को जारी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड को लेकर भी बड़ी टिप्पणी की थी. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान कहा था कि आधार कार्ड को निवास का अंतिम और पक्का सबून नहीं माना जा सकता है.
मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कोर्ट मे अपनी दलीलें दी, कोर्ट ने भी उनकी दलीलों पर प्रतिक्रिया दी. चलिए जानते हैं कि आखिर कपिल सिब्बल ने मंगलवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान क्या कुछ कहा था.
कपिल सिब्बल ने क्या कहा?
सिब्बल: नए वोटर को मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए फॉर्म 6 भरना होता है. उसी फॉर्म में डेट ऑफ बर्थ के लिए दस्तावेजी सबूत की सूची में आधार कार्ड को दूसरे नंबर पर रखा गया है, लेकिन SIR में चुनाव आयोग आधार को स्वीकार नहीं कर रहा है.
- सिब्बल: अगर कोई व्यक्ति कहता है कि मैं भारत का नागरिक हूं तो इसे सिद्ध करने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर है. एक नागरिक सिर्फ जानकारी दे सकता है, जिसे किसी नागरिक भारतीय होने पर संदेह है ये उस सरकारी विभाग को ही साबित करना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट : पहले हम प्रक्रिया की जांच करेंगे. इसके बाद हम वैधता पर विचार करेंगे.
- सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा: हमें कुछ तथ्य और आंकड़े चाहिए होंगे
- चुनाव आयोग: ये केवल ड्राफ्ट रोल है, नागरिकों को आपत्ति दर्ज करने का मौका दिया गया.
- सुप्रीम कोर्ट: यदि वास्तव में मृत व्यक्ति को जीवित और जीवित व्यक्ति को मृत दिखाया गया है, तो हम चुनाव आयोग से जवाब-तलब करेंगे.
- सुप्रीम कोर्ट: पीड़ित पक्ष अदालत के समक्ष क्यों नहीं आते?
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