जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है. गृह मंत्रालय (एमएचए) ने राज्यसभा को बताया कि जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी दर 18.3 प्रतिशत है. यह जेके प्रशासन द्वारा शुरू किए गए कई प्रयासों और पहलों के बावजूद है. गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्य सभा में बताया, “राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा आयोजित आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के परिणामों से, अप्रैल-जून 2021 की अवधि के लिए विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर में शिक्षित युवाओं के लिए बेरोजगारी दर का अनुमान उपलब्ध नहीं है. जुलाई 2020-जून 2021 के दौरान एनएसएसओ द्वारा आयोजित पीएलएफएस, जम्मू और कश्मीर के लिए 15-29 वर्ष आयु वर्ग के व्यक्तियों के बीच सामान्य स्थिति के अनुसार बेरोजगारी दर का अनुमान 18.3 प्रतिशत था.“
दिलचस्प बात यह है कि वर्तमान में बेरोजगारी दर का राष्ट्रीय औसत 8 प्रतिशत के आसपास है. मंत्री ने यह भी कहा कि जेके सरकार ने अपनी स्वयं की स्थायी आय सृजन इकाइयों की स्थापना के लिए सब्सिडी वाले ऋण प्रदान करके विभिन्न विभागों के माध्यम से विभिन्न स्वरोजगार योजनाओं को लागू करके बेरोजगारी को कम करने के लिए कई पहल की हैं.
गृह राज्य मंत्री (गृह) नित्यानंद राय ने कहा, "रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए मिशन यूथ, ग्रामीण आजीविका मिशन, हिमायत, पीएमईजीपी, अवसर, तेजस्वनी जैसी कई स्वरोजगार योजनाएं लागू की जा रही हैं."
गृह मंत्रालय ने संसद को यह भी बताया कि जम्मू-कश्मीर सरकार ने सरकार में भर्तियों के क्षेत्र सहित कई शासन सुधार किए हैं. अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद, बड़े पैमाने पर भर्ती अभियान चलाया गया है और जम्मू और कश्मीर सरकार ने 29,295 रिक्तियां भरी हैं. भर्ती एजेंसियों ने 7924 रिक्तियों का विज्ञापन किया है और 2504 रिक्तियों के संबंध में परीक्षाएं आयोजित की गई हैं, संसद में पेश लिखित उत्तर में कहा गया है कि सरकार में रिक्तियों की पहचान और भर्ती एक सतत और चालू प्रक्रिया है. इसे त्वरित भर्ती अभियान के तहत लिया जाता है.
बिहार के कांग्रेस नेता अखिलेश प्रसाद सिंह ने सवाल उठाया, "क्या अनुच्छेद 370 को रद्द करने के बाद सरकार ने वादा किया था कि यह अधिनियम क्षेत्र में एक नई सुबह लाएगा और वहां के युवाओं के विकास में मदद करेगा." जेके के एक वरिष्ठ नौकरशाह बताते हैं, ''जेके में बेरोजगारी संकट मुख्य रूप से कर्मचारियों की छंटनी, सरकारी विभागों के विलय और सुस्त भर्ती प्रक्रिया के कारण है.''
उनके अनुसार इस संकट को अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता, बल्कि यह कई कारणों से निर्देशित है. वह आगे कहते हैं, "राजनीतिक अस्थिरता, सुरक्षा के मुद्दे और शैक्षिक और औद्योगिक बुनियादी ढांचे की कमी का विशेष रूप से कश्मीर क्षेत्र पर प्रभाव पड़ा है."
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