Mumbai News: महाराष्ट्र की राजनीति में 'ठाकरे बनाम ठाकरे' की दो दशक पुरानी जंग अब इतिहास बन चुकी है. शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) और MNS प्रमुख राज ठाकरे (Raj Thackeray) के बीच गठबंधन (Alliance) का ऐलान होने के बाद अब सबसे बड़ा अपडेट सीटों के बंटवारे (Seat Sharing) को लेकर आ रहा है. सूत्रों की मानें तो आगामी निकाय चुनावों (BMC समेत 29 नगर निगम) के लिए 'बड़े भाई' की भूमिका में उद्धव ठाकरे ही नजर आएंगे.
BMC चुनाव 2026: उद्धव 145, राज 70 और शरद पवार महज 12?
मुंबई नगर निगम (BMC) की 227 सीटों के लिए जो शुरुआती फॉर्मूला छनकर बाहर आया है, उसने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है. सूत्रों के मुताबिक, मराठी गढ़ों पर अपनी पकड़ मजबूत रखने के लिए उद्धव ठाकरे करीब 145 सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं. वहीं, राज ठाकरे की पार्टी को मुंबई में 70 सीटें मिलने की संभावना है. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि महाविकास अघाड़ी के सहयोगी शरद पवार गुट के लिए केवल 12 सीटें छोड़ने की तैयारी है.
मराठी बहुल सीटों पर फंसा पेंच सुलझा! किसे मिलेगी तवज्जो?
जानकारी के मुताबिक, मुंबई के मराठी बहुल इलाके दादर, माहिम, विक्रोली, भांडुप, को लेकर पेंच फंसा था, पर अब बात बन चुकी है. मुंबई के अलावा पुणे, नवी मुंबई, ठाणे और नासिक महापालिकाओं के लिए भी बातचीत अंतिम चरण में है. नासिक में MNS की मजबूत स्थिति को देखते हुए वहां राज ठाकरे को ज्यादा तवज्जो मिल सकती है.
12 साल बाद टूटा 'अहंकार', अस्तित्व की लड़ाई ने मिलाए हाथ
उद्धव और राज ठाकरे का एक साथ आना केवल पारिवारिक मिलन नहीं, बल्कि राजनीतिक वजूद बचाने की मजबूरी भी है. उद्धव ने 12 साल पहले 'सामना' के जरिए सुलह की कोशिश की थी, जिसे राज ने ठुकरा दिया था. समय बीता और एकनाथ शिंदे की बगावत ने उद्धव की शिवसेना को कमजोर किया. वहीं पिछले चुनावों में MNS का ग्राफ भी गिरा. 'बंटेंगे तो कटेंगे' के जवाब में उद्धव का 'लड़ेंगे तो टूटेंगे' का नारा अब इस गठबंधन की नई पहचान है.
राज बनाम उद्धव: उत्तराधिकार की वो पुरानी जंग
1990 के दशक में राज ठाकरे को बाल ठाकरे का स्वाभाविक उत्तराधिकारी माना जाता था. उनकी शैली, कार्टून बनाने का शौक और आक्रामकता बिल्कुल अपने चाचा जैसी थी. लेकिन 1996 के रमेश किनी कांड ने राज ठाकरे की छवि को धक्का पहुंचाया. राज जब कानूनी लड़ाइयों में उलझे थे, उद्धव ने संगठन पर अपनी पकड़ मजबूत की. इसके चलते मतभेद इतने बढ़े कि राज ने अपनी राह अलग कर ली और MNS बनाई, जिसने सालों तक शिवसेना के मराठी वोटों में सेंध लगाई.
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