मणिपुर में लोकसभा चुनाव (Loksabha Elections 2024) के लिए मतदान होने में दो सप्ताह से भी कम समय बचा है, लेकिन न तो राज्य में राजनीतिक दलों के पोस्टर दिख रहे हैं, न बड़ी रैलियां हो रही हैं और न ही नेताओं की आवाजाही दिख रही है. राज्य में चुनाव के नाम पर केवल स्थानीय निर्वाचन अधिकारियों के लगाए कुछ होर्डिंग दिख रहे हैं, जिनके जरिए लोगों से मताधिकार के इस्तेमाल का अनुरोध किया गया है.
किसी भी राजनीतिक दल के नेता ने दौरा नहीं किया
एक ओर जहां भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जैसी प्रमुख हस्तियों को स्टार प्रचारकों के रूप में सूचीबद्ध किया है, वहीं कांग्रेस के प्रचारकों की सूची में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अन्य प्रमुख नेता शामिल हैं. हालांकि किसी ने भी अब तक मणिपुर का दौरा नहीं किया है.
मणिपुर के मुख्य निर्वाचन अधिकारी प्रदीप झा ने बताया, ''निर्वाचन आयोग की ओर से चुनाव प्रचार पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. आदर्श आचार संहिता के दायरे में आने वाली किसी भी चीज की अनुमति है.''
मुश्किल स्थिति से निपटने के लिए भाजपा के उम्मीदवार थौनाओजम बसंत कुमार सिंह, कांग्रेस के अंगोमचा बिमोल अकोइजम, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के महेश्वर थौनाओजम और मणिपुर पीपुल्स पार्टी (एमपीपी) समर्थित राजमुकर सोमेंद्रो सिंह अनोखे समाधान के साथ आगे आए हैं.
घर-घर प्रचार के लिए स्वयंसेवकों की टीमों को तैनात करने वाले महेश्वर थौनाओजम ने कहा, 'बेहतर होता अगर मैं जनसभाओं को संबोधित करता और रैलियां करता, लेकिन मैंने अभियान को सीमित रखने का फैसला किया है.' उन्होंने कहा, 'मौजूदा स्थिति में मतदाता अपने वोट के महत्व को जानते हैं और सोच-समझकर चुनाव करेंगे.'
राज्य के निवर्तमान शिक्षा एवं कानून मंत्री बसंत कुमार सिंह इस बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. वह अपने आवास और पार्टी कार्यालय में छोटी-छोटी बैठकें कर रहे हैं.
इंफाल में कांग्रेस कार्यालय पर राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा और अकोइजाम के समर्थन में पोस्टर लगे हुए हैं.
भाजपा की मणिपुर इकाई की अध्यक्ष ए. शारदा देवी ने से कहा, ''चुनाव हमारे लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन हम धूमधाम और दिखावा करके लोगों के घावों पर नमक नहीं छिड़क सकते. चुनाव भी एक त्योहार की तरह है, लेकिन हम मौजूदा स्थिति के कारण त्योहार को जोर-शोर से नहीं मना सकते.''
मणिपुर में स्थिति नियंत्रण में है- अधिकारी
अधिकारी ने नाम सार्वजनिक नहीं करने का अनुरोध करते हुए कहा, 'हालांकि स्थिति फिलहाल नियंत्रण में है, लेकिन किसी भी तरह का जोरदार अभियान राज्य की कानून-व्यवस्था के लिए हानिकारक हो सकता है और कोई भी पार्टी यह जोखिम नहीं लेना चाहती है.'
जातीय संघर्ष में 219 लोगों की मौत हुई है
अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' आयोजित किए जाने के बाद पिछले साल तीन मई को राज्य में शुरू हुए जातीय संघर्ष में कम से कम 219 लोग मारे गए हैं. इसके अलावा 50,000 से अधिक आंतरिक रूप से विस्थापित लोग फिलहाल पांच घाटी जिलों और तीन पहाड़ी जिलों के राहत केंद्रों में रह रहे हैं.
कार्यकर्ता आए, मगर उम्मीदवार नहीं
दो बच्चों की मां और मैतेई बहुल क्वाकीथेम क्षेत्र में एक राहत शिविर में रह रहीं दीमा ने कहा, 'पार्टियों के कुछ कार्यकर्ता एक या दो बार आए हैं, लेकिन कोई उम्मीदवार नहीं आया. अगर वे आएंगे तो उन्हें पता चलेगा कि हम किस स्थिति में शिविरों में रह रहे हैं. राज्य में समाधान या शांति की कोई संभावना नहीं दिख रही है.'
इस बीच, कुकी समुदाय बहुल मोरेह और चुराचांदपुर जैसे क्षेत्रों में भी ऐसे ही हालात हैं. कुछ कुकी गुटों और सामाजिक समूहों ने चुनावों के बहिष्कार का भी आह्वान किया है.
कारोबारी गतिविधियां शुरू होने और संस्थानों के खुलने से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में स्थिति सामान्य दिखने के बावजूद सुरक्षाबलों की व्यापक उपस्थिति लंबे समय से जारी तनाव और आबादी के सामने मौजूद चुनौतियों को उजागर करती है.
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