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This Article is From Sep 23, 2016

ट्रिपल तलाक महिलाओं के साथ लिंग आधारित भेदभाव, सुप्रीम कोर्ट में विरोध करेगी केंद्र सरकार

ट्रिपल तलाक महिलाओं के साथ लिंग आधारित भेदभाव, सुप्रीम कोर्ट में विरोध करेगी केंद्र सरकार
प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली: केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में ट्रिपल तलाक का विरोध करेगी. सूत्रों के मुताबिक सरकार सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करेगी. सरकार का मानना है कि ट्रिपल तलाक महिलाओं के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव है.

सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार का मत है कि ट्रिपल तलाक महिलाओं के साथ भेदभावपूर्व और अतार्किक है. शरिया कानून के तहत ट्रिपल तलाक को धर्मनिरपेक्ष देश में गलत तरीके से रखा गया. मुद्दे पर विचार यूनिफार्म सिविल कोड के तहत नहीं बल्कि लिंग के आधार पर भेदभाव के तौर पर किया गया है.

सर्वोच्च न्यायालय ने गत सोमवार को मुस्लिम महिलाओं के वैवाहिक मामलों से संबंधित अधिकार पर केंद्र सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के लिए सोमवार को चार सप्ताह का समय दिया है. इनमें तीन तलाक के साथ-साथ तलाक व गुजारा भत्ते की बात भी शामिल है. सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर व न्यायमूर्ति न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने महाधिवक्ता रंजीत कुमार के अनुरोध पर केंद्र सरकार को यह समय दिया है.

वैवाहिक मामलों में मुस्लिम महिलाओं के अधिकार के मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लेते हुए शीर्ष न्यायालय ने याचिका दायर करने का निर्देश दिया था, जिसके आलोक में जवाब देने के लिए महाधिवक्ता ने समय मांगा था. अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपने जवाब में तीन बार तलाक और बहुविवाह का यह कहते हुए बचाव किया था कि अदालतों को कुरान और शरिया कानून से संबधित मुद्दों की जांच करने का अधिकार नहीं है.

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि धार्मिक मामलों में कोर्ट दखल नहीं दे सकता. तीन तलाक के मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है. हलफनामे में बोर्ड ने कहा है कि पर्सनल लॉ को सामाजिक सुधार के नाम पर दोबारा से नहीं लिखा जा सकता. तलाक की वैधता सुप्रीम कोर्ट तय नहीं कर सकता है.

पहले कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट यह मामला तय कर चुका है. मुस्लिम पर्सनल लॉ कोई कानून नहीं है जिसे चुनौती दी जा सके, बल्कि यह कुरान से लिया गया है. यह इस्लाम धर्म से संबंधित सांस्कृतिक मुद्दा है.

बोर्ड ने हलफनामा में कहा कि तलाक, शादी और देखरेख अलग-अलग धर्म में अलग-अलग हैं. एक धर्म के अधिकार को लेकर कोर्ट फैसला नहीं दे सकता. कुरान के मुताबिक तलाक अवांछनीय है लेकिन जरूरत पड़ने पर दिया जा सकता है. इस्लाम में यह पॉलिसी है कि अगर दंपती के बीच में संबंध खराब हो चुके हैं तो शादी को खत्म कर दिया जाए. तीन तलाक की इजाजत है क्योंकि पति सही निर्णय ले सकता है, वह जल्दबाजी में फैसला नहीं लेते. तीन तलाक तभी इस्तेमाल किया जाता है जब वैलिड ग्राउंड हो.

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