मध्यप्रदेश में 160 ड्रोन महिलाओं को ट्रेनिंग देकर ड्रोन दीदी बनाया गया लेकिन ड्रोन की बैट्री में आई दिक्कत से वो लगभग घर बैठ गईं .ये मामला ग्रामीण इलाकों का है, लेकिन फरवरी 2024 में तो राजधानी से ड्रोन ने उड़ान भरी कहा गया था कि ये ड्रोन दूरदराज़ के इलाकों में ज़िंदगी बचाने निकलेगा लेकिन बीस महीने बाद ये सपना भी कमरे में बंद पड़ा है . कुल मिलाकर उद्घाटन के वक्त सुर्खियां और फिर पूछनेवाला कोई नहीं.आपको बता दें कि फरवरी 2024 में एम्स भोपाल से उड़ी थी उम्मीदों की उड़ान. उस दौरान कहा गया था ये ड्रोन अब जान बचाएगा,दूरदराज़ के गांवों तक मुफ़्त में दवाइयां पहुंचाएगा.लेकिन बीस महीने बाद ये करोड़ों का सपना अब बस एक शोपीस बनकर रह गया है.
दस लाख की लागत से खरीदा गया एम्स भोपाल का यह ड्रोन फरवरी 2024 में लॉन्च हुआ था. दावा था कि ये ड्रोन 100 किलोमीटर तक मुफ़्त दवाइयां पहुंचाएगा. पहले ही ट्रायल में इस ड्रोन ने गौहरगंज तक सिर्फ़ 20 मिनट में जीवनरक्षक दवाइयां पहुंचाई.वापसी में मरीज का ब्लड सैंपल भी लेकर लौटा. इसे स्वास्थ्य सेवाओं में तकनीकी क्रांति बताया गया लेकिन 20 महीने बाद ये तकनीकी क्रांति एम्स के एक कमरे में धूल में सनी है .हालांकि एम्स का दावा है कि पहले सिर्फ ट्रायल हुआ था.
AIIMS भोपाल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ.विकास गुप्ता ने बताया कि ट्रायल के दौरान कुछ बजट नहीं था. एक कंपनी ने मदद की थी, वो ख़ुद आगे आई थी और उसने ट्रायल करवाया था. लेकिन कमर्शियल करते हैं तो जो ड्रोन कंपनी है उसका एक वैल्यू होता है, हमने ट्रायल में 50 किमी ट्रैवल करवाया था कोशिश है की 200 तक करवा लें. हालांकि 20 महीने के ट्रायल को समझना थोड़ा मुश्किल है लेकिन एम्स से सफाई की मरहम पट्टी आई है कि प्रोजेक्ट को और बड़े पैमाने पर बढ़ाने की तैयारी है.
डॉ.विकास गुप्ता ने आगे कहा कि एमपी-सीजी में ट्राइबल पॉपुलेशन ज़्यादा है, वहां दवाई और टेस्ट की सुविधा मुश्किल है. हमने एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट डॉक्यूमेंट तैयार किया है ताकि बेहतर ड्रोन कंपनियों से सहयोग मिल सके. इसके माध्यम से देखेंगे की कौन हमे मदद कर सकता है. कितना खर्चा हो रहा है. हमें उम्मीद है की यह एक सक्सेस होगी. हां, यह बड़ा प्रोजेक्ट है ज़्यादा दूरी का प्रोजेक्ट है तो बेहतर और अच्छे ड्रोंस लगेंगे. थोड़ा समय ज़रूर लगेगा लेकिन हम काम कर रहे हैं.
ये ड्रोन, एम्स के एक कमरे में बंद पड़ा है.एक वजह ये भी है कि प्रोजेक्ट चलाने वाली कर्मचारी के पैर में चोट आई और उसके बाद प्रोजेक्ट पर ‘तालाबंदी' हो गई .वहीं, एम्स आए मरीज़ों के तीमारदारों का कहना है कि प्रोजेक्ट आगे बढ़ता तो उन्हें बहुत मदद मिलती है.
एनडीटीवी ने एम्स में इलाज करा रहे कुछ मरीजों के परिजनों से भी बात की है. ऐसे ही एक मरीज के परिजन जाहिदा खान ने हमें बताया कि इसके होने से हमारी बहुत सहायता हो जाएगी, आने-जाने का समय और पैसा बचेगा. अभी दो दिन से यहां आए हैं, कब जांच होगी कब इलाज होगा, अभी इसका पता नहीं है. वहीं, दवाई मिल जाए तो काम आसान हो जाए. एक अन्य मरीज के परिजन ने बताया कि अगर यह फैसिलिटी मिल जाए तो बहुत समय बचेगा.गरीब हैं तो साधन ढूंढना पड़ता है, भटकना पड़ता है, इसलिए दिक्कत होती है. यानी कुल मिलाकर फिलहाल का गणित तो यही है, दस लाख का ड्रोन, बीस महीने की चुप्पी और अनगिनत उम्मीदें जो अबतक उड़ान नहीं भर पाईं.
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