'वक्फ एक्ट खत्म करने से जबरन कब्जा करने वालों को होगा फायदा': याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा

जस्टिस जोसेफ ने उपाध्याय का ध्यान हिंदू धर्मों पर विभिन्न राज्य कानूनों के प्रावधानों की ओर आकर्षित किया, जो यह कहते हैं कि बोर्ड के सदस्य हिंदू होने चाहिए. इन दलीलों के बाद याचिकाकर्ता ने विचार करने के लिए दो हफ्ते की मोहलत मांगी.

'वक्फ एक्ट खत्म करने से जबरन कब्जा करने वालों को होगा फायदा': याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ एक्ट को चुनौती देने वाली याचिका को लेकर याचिकाकर्ता पर सवाल उठाए हैं. जस्टिस केएम जोसफ और हृषिकेश रॉय की अगुआई वाली पीठ ने याचिकाकर्ता बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय को कहा कि क्या आपको पता है कि वक्फ एक्ट को खत्म करने का सबसे ज्यादा फायदा किसे होगा? सबसे ज्यादा फायदे में रहेंगे वक्फ की संपत्ति पर अवैध जबरन कब्जा करने वाले.

जस्टिस जोसफ ने कहा कि मुझे याचिका में लगाए गए इस इल्जाम से झटका लगा, क्योंकि आपने लिखा है कि ट्रिब्यूनल का सदस्य अपनी धार्मिक मान्यता के मुताबिक ही अपने आधिकारिक निर्णय भी करेगा. आपको याद रखना चाहिए की वक्फ वैधानिक निकाय है, लेकिन उसका सभी जमीन पर स्वामित्व नहीं है. हमें इस बारे में धार्मिक सीमाओं से ऊपर उठकर सोचना चाहिए. अगर हम इस कानून को रद्द कर दें तो वक्फ चलाने वाले तो आजाद हो जाएंगे.

कोर्ट ने पूछा, क्या अनुच्छेद 139(a) के तहत ऐसी याचिकाओं पर हमारा सुनना ही जरूरी है? क्या वक्फ एक्ट में कुछ भी समानता के खिलाफ यानी गैर बराबरी वाला है?  अगर आपकी इस दलील पर सुनवाई हो तो अतिक्रमण करने वाले बहुत खुश होंगे. अगर आप वक्फ एक्ट को खत्म करवा देते हैं तो जिन लोगों के पास वक्फ है, वे खुलेआम दौड़ेंगे. जो आखिरी हंसेगा वह अतिक्रमण करने वाला होगा. 

जज ने कहा कि हमारी राय है कि वक्फ अधिनियम नियमों में लाता है. आप भेदभाव का आरोप कैसे लगा सकते हैं. मुझे दुख होता है कि आपने इसे धर्म के नाम पर रखा है, हमें इससे आगे की बात करनी चाहिए. मीडिया के कुछ वर्गों में कुछ गलतफहमी के आधार पर बातचीत चल रही है. पूरी तरह से गलतफहमी, हमने हिंदू बंदोबस्ती पर राज्य कानूनों की एक सूची तैयार की है. उनके पास प्रावधान हैं जो कहते हैं कि सदस्य को हिंदू धर्म का पालन करना चाहिए.

कोर्ट ने कहा, मुझे अपना झटका व्यक्त करना चाहिए कि हमें कहना चाहिए, हमारे पास एक ट्रिब्यूनल है और अगर कोई व्यक्ति नियुक्त किया जाता है, तो वह व्यक्ति धर्म के आधार पर फैसला करेगा? ऐसा कैसे कहा जा सकता है? उस व्यक्ति के धर्म को भूल जाइए जो धर्म का सदस्य बनने जा रहा है. जिस क्षण कोई व्यक्ति न्यायिक मंच पर बैठता है, वो धर्म को नहीं देखता है.

जस्टिस जोसेफ ने उपाध्याय का ध्यान हिंदू धर्मों पर विभिन्न राज्य कानूनों के प्रावधानों की ओर आकर्षित किया, जो यह कहते हैं कि बोर्ड के सदस्य हिंदू होने चाहिए. इन दलीलों के बाद याचिकाकर्ता ने विचार करने के लिए दो हफ्ते की मोहलत मांगी. क्योंकि उन्होंने तो सिर्फ वक्फ बोर्ड के गठन की प्रक्रिया और अर्हता पर सवाल उठाए हैं. ट्रिब्यूनल के लिए तो कुछ कहा ही नहीं है. याचिकाकर्ता के वकील रंजीत कुमार ने कहा कि वह पीठ द्वारा उठाए गए सवालों पर विचार करेंगे और वापस आएंगे.

जस्टिस एम जोसेफ की टिप्पणी अधिवक्ता और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए आई. जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट में दायर अपनी याचिका को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग करते हुए वक्फ अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है. उपाध्याय ने दलील दी कि इसे SC में लंबित 55 याचिकाओं के साथ सुना जा सकता है, जिनमें एक मुद्दा उठाया गया है कि क्या इस्लाम को मानने वाले किसी व्यक्ति द्वारा स्थापित प्रत्येक धर्मार्थ ट्रस्ट अनिवार्य रूप से वक्फ है.

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यह टिप्पणी तब आई जब अश्विनी उपाध्याय की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने दलील दी कि ये सभी धर्मों पर लागू होना चाहिए. अगली सुनवाई दस अक्टूबर को होगी.