प्रतीकात्मक फोटो.
मुंबई:
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक के पास पर्याप्त नकदी है, जो 30 दिसंबर के बाद भी उपलब्ध रहेगी. लेकिन क्या नोटबंदी के ऐलान वाले दिन यानी 8 नवंबर को भी हालात ऐसे ही थे? हकीकत में उस दिन नए नोटों का अनुपात रद्द किए गए नोटों की तुलना में एक-चौथाई से कम यानी सिर्फ 24.11% ही था. यही नहीं सूचना के अधिकार से मिली जानकारी के मुताबिक उस दिन आरबीआई के पास 500 का एक भी नया नोट नहीं था.
वित्तमंत्री ने कहा है कि "पूरी तैयारी के साथ यह फैसला लिया गया था. नोटबंदी की घोषणा के बाद एक भी दिन ऐसा नहीं हुआ, जिस दिन आरबीआई ने बैंकिंग प्रणाली के माध्यम से पर्याप्त धन की आपूर्ति न की हो." लेकिन जो आंकड़े आए हैं उन्हें देखकर लगता है कि नोटबंदी के दौरान बैंक और एटीएम के बाहर लंबी कतार का जिम्मेदार रिजर्व बैंक भी है. आरटीआई से मिले दस्तावेजों के मुताबिक 8 नवंबर को भारतीय रिजर्व बैंक के पास 10, 20, 50, 100, 500 और 1000 रुपए के कुल 23,93,753.39 करोड़ के नोट उपलब्ध थे, जिसमें 500 रुपये का एक भी नया नोट रिजर्व बैंक में मौजूद नहीं था.
आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली के मुताबिक जो पुराना स्टॉक था उसमें करीब 24 लाख करोड़ रुपये की करेंसी उपलब्ध थी जिसमें 500-1000 रुपये के नोटों की कीमत 21 लाख करोड़ थी जिसकी वजह से लोगों की बहुत तकलीफ हुई. रद्दी नोटों के ऐवज़ में 2000 के नए छपे नोटों का मूल्य 4.95 लाख करोड़ था. यानी कहीं न कहीं लगभग डेढ़ महीने बाद भी अगर कतार छोटी नहीं हो रही तो उसकी बड़ी वजह बदइंतजामी भी है. आरटीआई से मिले आंकड़ों से साफ है कि अर्थव्यवस्था को लेकर इतना बड़ा कदम उठाने से पहले न तो पूरी स्थिति का आकलन किया गया और न ही समुचित उपाय.
वित्तमंत्री ने कहा है कि "पूरी तैयारी के साथ यह फैसला लिया गया था. नोटबंदी की घोषणा के बाद एक भी दिन ऐसा नहीं हुआ, जिस दिन आरबीआई ने बैंकिंग प्रणाली के माध्यम से पर्याप्त धन की आपूर्ति न की हो." लेकिन जो आंकड़े आए हैं उन्हें देखकर लगता है कि नोटबंदी के दौरान बैंक और एटीएम के बाहर लंबी कतार का जिम्मेदार रिजर्व बैंक भी है. आरटीआई से मिले दस्तावेजों के मुताबिक 8 नवंबर को भारतीय रिजर्व बैंक के पास 10, 20, 50, 100, 500 और 1000 रुपए के कुल 23,93,753.39 करोड़ के नोट उपलब्ध थे, जिसमें 500 रुपये का एक भी नया नोट रिजर्व बैंक में मौजूद नहीं था.
आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली के मुताबिक जो पुराना स्टॉक था उसमें करीब 24 लाख करोड़ रुपये की करेंसी उपलब्ध थी जिसमें 500-1000 रुपये के नोटों की कीमत 21 लाख करोड़ थी जिसकी वजह से लोगों की बहुत तकलीफ हुई. रद्दी नोटों के ऐवज़ में 2000 के नए छपे नोटों का मूल्य 4.95 लाख करोड़ था. यानी कहीं न कहीं लगभग डेढ़ महीने बाद भी अगर कतार छोटी नहीं हो रही तो उसकी बड़ी वजह बदइंतजामी भी है. आरटीआई से मिले आंकड़ों से साफ है कि अर्थव्यवस्था को लेकर इतना बड़ा कदम उठाने से पहले न तो पूरी स्थिति का आकलन किया गया और न ही समुचित उपाय.
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