उच्चतम न्यायालय ने 1993 के बम विस्फोट मामले में दोषी खालिस्तानी आतंकवादी देविंदरपाल सिंह भुल्लर की मौत की सजा घटाकर आज इसे उम्रकैद में तब्दील कर दिया। न्यायालय ने उसकी दया याचिका को निपटाने में विलंब और उसकी स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर यह फैसला किया।
प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली चार न्यायाधीशों की पीठ ने उसकी दया याचिका को निपटाने में सरकार की ओर से हुई देरी और उसकी वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर उसे जीवनदान दे दिया।
केन्द्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय को गुरुवार को सूचित किया था कि खालिस्तानी आतंकी देविन्दरपाल सिंह भुल्लर की मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने पर उसे 'कोई परेशानी नहीं' है और दया याचिकाओं के निबटारे में विलंब के आधार पर मौत की सजा उम्र कैद में तब्दील करने की शीर्ष अदालत की व्यवस्था के आलोक में उसकी याचिका मंजूर की जानी है।
प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती ने कहा, 'यह एक ऐसा मामला है जिसमें अनुमति दी जाएगी क्योंकि दोषी की दया याचिका का निबटारा आठ साल के विलंब से किया गया था।' न्यायाधीशों ने था कहा कि इस मामले में अब 31 मार्च को संक्षिप्त आदेश सुनाया जाएगा।
अटार्नी जनरल ने कहा कि वह इस बारे में वक्तव्य दे रहे हैं क्योंकि 21 जनवरी के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए केन्द्र सरकार की याचिका खारिज की जा चुकी है।
वाहनवती ने कहा, 'अत: हमें 21 जनवरी के फैसले का पालन करना होगा और इसमें हमें कोई परेशानी नहीं है।' उन्होंने कहा कि भुल्लर की पत्नी नवनीत कौर की सुधारात्मक याचिका के गुण दोष पर गौर करने की अब कोई आवश्यकता नहीं है।
न्यायालय ने 31 जनवरी को भुल्लर को फांसी देने पर रोक लगाते हुए अपने उस फैसले पर पुनर्विचार करने पर सहमति दे दी थी जिसके तहत 1993 के दिल्ली बम विस्फोट कांड में उसकी मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने की अपील ठुकरा दी गयी थी।
न्यायालय ने इस मामले में केन्द्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी करने के साथ ही इहबास संस्थान से भुल्लर के स्वास्थ्य के बारे में रिपोर्ट मांगी थी।
शीर्ष अदालत के 21 जनवरी के फैसले के बाद भुल्लर की पत्नी ने यह याचिका दायर की थी। इस निर्णय में न्यायालय ने कहा था कि मौत की सजा पाये कैदी की दया याचिका के निबटारे में अत्यधिक विलंब उसकी सजा को उम्र कैद में तब्दील करने का आधार हो सकता है। भुल्लर की पत्नी ने याचिका में कहा था कि इस नई व्यवस्था के आलोक में उसके पति के मामले पर आए न्यायालय के निर्णय पर नए सिरे से विचार किया जाए।
उल्लेखनीय है कि राजधानी में भारतीय युवक कांग्रेस के मुख्यालय पर सितंबर, 1993 में हुए बम विस्फोट के मामले में भुल्लर को मौत की सजा सुनायी गयी थी। इस हमले में नौ व्यक्ति मारे गए थे और युवक कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष एम एस बिट्टा सहित 25 अन्य जख्मी हो गए थे।
भुल्लर को अगस्त, 2001 में निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी जिसकी पुष्टि 2002 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कर दी थी। बाद में उच्चतम न्यायालय ने 26 मार्च, 2002 को भुल्लर की अपील खारिज कर दी थी। भुल्लर की पुनर्विचार याचिका 17 दिसंबर, 2002 को और फिर सुधारात्मक याचिका 12 मार्च 2003 को खारिज हो गई थी।
इसी बीच, 14 जनवरी, 2003 को भुल्लर की ओर से राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की गई। राष्ट्रपति ने आठ साल से भी अधिक समय के विलंब के बाद 14 मई, 2011 को उसकी दया याचिका खारिज कर दी थी।
इसके बाद एक बार फिर भुल्लर ने विलंब के आधार पर मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील कराने के लिये शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी लेकिन न्यायालय ने उसे भी खारिज कर दिया था।
इसी बीच, 21 जनवरी को न्यायालय ने अपनी महत्वपूर्ण व्यवस्था में कहा कि दया याचिका के निबटारे में अत्यधिक विलंब मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने का आधार हो सकता है। इसके बाद एक बार फिर भुल्लर की पत्नी नवनीत कौर ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
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