- कर्नाटक के चित्रदुर्ग में एक स्लीपर बस और लॉरी की टक्कर में दस यात्री जिंदा जल गए
- हादसे में लॉरी के चालक और क्लीनर की मौके पर मौत हो गई, शवों की पहचान के लिए डीएनए परीक्षण किया जाएगा
- जर्मनी, चीन और इंग्लैंड जैसे देशों ने सुरक्षा कारणों से स्लीपर बसों पर प्रतिबंध लगा दिया है
कर्नाटक के चित्रदुर्ग में बीती रात एक रूह कंपा देने वाला मंजर देखने को मिला. रात के सन्नाटे में जब स्लीपर बस में सवार 30 से ज्यादा यात्री गहरी नींद में थे, तभी एक बेकाबू लॉरी डिवाइडर तोड़ते हुए बस से टकरा गई. टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि बस ने तुरंत आग पकड़ ली. सो रहे यात्रियों को संभलने तक का मौका नहीं मिला और 10 लोग जिंदा जल गए. इस हादसे ने एक बार फिर स्लीपर बसों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
बस के ड्राइवर और क्लीनर ने कूदकर जान बचा ली, जबकि लॉरी के ड्राइवर-क्लीनर की मौके पर ही मौत हो गई. शव इस कदर जल चुके हैं कि उनकी पहचान के लिए अब DNA टेस्ट का सहारा लिया जाएगा. फॉरेंसिक टीम ने मौके से सैंपल जुटा लिए हैं.
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PM मोदी ने जताया दुख
पीएम मोदी ने इस हादसे पर गहरा शोक व्यक्त किया है. केंद्र सरकार ने मृतकों के परिजनों को 2-2 लाख रुपये और घायलों को 50-50 हजार रुपये की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है.
दुनिया के इन देशों में आखिर क्यों बैन हैं स्लीपर बसें?
भारत में स्लीपर बसों का क्रेज बढ़ रहा है, लेकिन दुनिया के कई विकसित देशों ने इन्हें प्रतिबंधित कर दिया है.
जर्मनी
बसों की ऊंची बनावट की वजह से कई बार बसें पलट गईं. इसके बाद जर्मनी ने साल 2006 में ही स्लीपर बसों को बैन कर दिया था. हादसे के दौरान ऊपरी बर्थ पर सो रहे यात्री अक्सर उछलकर गंभीर चोट का शिकार होते थे.
चीन
252 मौतों के बाद लिया कड़ा फैसला. चीन में कभी रेल नेटवर्क की कमी के कारण ये बसें लाइफलाइन थीं, लेकिन 2009 से 2012 के बीच हुए 13 हादसों में जब 252 लोगों की जान गई, तो सरकार जाग गई. 2012 में नई स्लीपर बसों के रजिस्ट्रेशन पर रोक लगी और 2018 तक सड़कों से पुरानी बसें भी हटा दी गईं.
इंग्लैंड
सुरक्षा मानकों पर फेल इंग्लैंड में 1920 के दशक में ये बसें बहुत पॉपुलर थीं, लेकिन सुरक्षा चिंताओं की वजह से साल 2017 में इन्हें पूरी तरह बंद कर दिया गया.
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