प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पांच अप्रैल को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने अपनी जनहित याचिका में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को खत्म किए जाने की मांग की है ताकि इतिहास की गलतियों को सुधारा जाए.

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पांच अप्रैल को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पांच अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा.

नई दिल्ली:

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट पांच अप्रैल को सुनवाई करेगा. याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने मामले में जल्द सुनवाई की मांग की थी. इस मामले में 9 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से उसका पक्ष पूछा था. केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए फरवरी के अंत तक का समय दिया था. मुस्लिम पक्षकारों ने कानून को चुनौती देने वालों की याचिकाओं का विरोध किया है. उनका कहना है कि इस कानून को चुनौती नहीं दी जा सकती.

मुस्लिम पक्षकारों का यह भी कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा जवाब में देरी के चलते ज्ञानवापी और मथुरा में यथास्थिति से छेड़छाड़ की कोशिश हो रही है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो याचिका के सुनवाई योग्य होने पर प्रारंभिक आपत्ति पर सुनवाई के दौरान विचार करेगा. 9 सितंबर 2022 को प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को तीन जजों की बेंच के पास भेजा गया था. सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं पर केंद्र सराकर को नोटिस जारी किया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को 31 अक्तूबर तक जवाब दाखिल करने को कहा था. बाद में 12 दिसंबर तक जवाब देने को कहा था. 

याचिकाओं में कहा गया है यह कानून संविधान द्वारा दिए गए न्यायिक समीक्षा के अधिकार पर रोक लगाता है. कानून के प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत दिए गए अदालत जाने के मौलिक अधिकार के चलते निष्प्रभावी हो जाते हैं. ये ऐक्ट समानता, जीने के अधिकार और पूजा के अधिकार का हनन करता है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2021 में 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (पूजा स्थल कानून)  की वैधता का परीक्षण करने पर सहमति जताई थी.

बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने अपनी जनहित याचिका में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को खत्म किए जाने की मांग की है ताकि इतिहास की गलतियों को सुधारा जाए और अतीत में इस्लामी शासकों द्वारा अन्य धर्मों के जिन-जिन पूजा स्थलों और तीर्थ स्थलों का विध्वंस करके उन पर इस्लामिक ढांचे बना दिए गए, उन्हें वापस उन्हें सौंपा जा सकें, जो उनके असली हकदार हैं. अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के प्रावधान मनमाने और गैर संवैधानिक हैं. उक्त प्रा‌वधान संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26 एवं 29 का उल्लंघन करता है. केंद्र सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर ये कानून बनाया है.

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

यह भी पढ़ें-
शिवाजी महाराज पर महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल की टिप्पणी फौजदारी अपराध नहीं : अदालत
सावरकर हमारे आदर्श, उनका अपमान बर्दाश्त नहीं करेंगे : उद्धव ठाकरे की राहुल गांधी से दो टूक