असम में हिरासत केंद्रों में विदेशियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण अमाइकस ने कहा कि डिटेंशन सेंटर्स में अधिकतर को विदेशी /बंग्लादेशी बताया जा रहा है, लेकिन वो खुद को भारतीय बता रहे हैं. पांच साल से लोग अपने फैसले का इंतज़ार कर रहे हैं. ये अवधि 6 महीने होनी चाहिए. इन लोगों को हर हफ़्ते स्थानीय थाने में हाजिरी लगानी होती है, इसे मासिक कर देना चाहिए. इन लोगों को जमानत के लिए लाख रुपए श्योरिटी देनी होती है इसे 10 हज़ार कर देना चाहिए. इनकी बायोमीट्रिक पहचान तो ठीक है. वहीं कोर्ट ने कहा कि हमें सालों से बंद इन लोगों की रिलीज़ के आदेश देने में कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन ज़रूरत पड़ने पर ये कहां और कैसे मिलेंगे/आएंगे? इस बाबत आपको कोर्ट को सन्तुष्ट करना होगा.
अगर आप वर्षों से डिपोर्ट नहीं कर पा रहे तो दूसरे उपाय तो तलाशें. अब कोर्ट इस मामले को कल शुक्रवार को सुनेगा. दूसरी तरफ, डिटेंशन सेंटर्स से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए SG मेहता ने कहा कि हमारी मीटिंग्स चल रही हैं. हम कंसल्टेशन से आगे बढ़ रहे हैं. आपके आदेश के अनुपालन पर काम चल रहा है. इस पर कोर्ट ने कहा डेडलाइन में 2 महीने शेष हैं और पूछा कि क्या कदम उठाए हैं?. इस पर SG ने कहा कि 1000 अतिरिक्त ट्राइब्यूनल विभिन्न चरणों मे बना कर फाइनल रिव्यू का काम जल्दी किया जा रहा है. कोर्ट ने पूछा हमारे आदेश के बाद अब तक कितने ट्राइब्यूनल बनाए?
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SG ने जवाब दिया कि 100 और कहा कि हम इसके तहत रिटायर्ड अधिकारियों में जज, ज़िला जज और अन्य ज्यूडिशियल अफसरों को ट्राइब्यूनल में ज़िम्मेदारी देंगे. हालांकि कोर्ट ने पूछा कि क्या आपने इनका पूल बनाया है? इसके बाद CJI ने SG को इस बाबत फटकार लगाई. क्योंकि राज्य के मुख्य सचिव के पास भी जवाब नहीं था. कोर्ट ने SG से कहा अपना होमवर्क सही से करके कोर्ट में आइए. हमने याचिकाकर्ता के वकील को अमाइकस बनाया और इस समस्या के जल्दी और व्यवहारिक समाधान के लिए कुछ मोडयूलिटी तय करने को कहा है.
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